शफीकुर रहमान बर्क का बयान बसपा को देगा सियासी बढ़त?

Update: 2023-01-18 08:40 GMT
लखनऊ (आईएएनएस)| अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले सपा सांसद शफीकुर रहमान बर्क के एक बयान से बसपा की बढ़ रही मुस्लिम राजनीति को काफी बल मिलेगा। उत्तर प्रदेश की सियासत में मुस्लिम वोट काफी महत्वपूर्ण हैसियत रखता है। इसी को पाने के लिए सभी दल तेजी से कसरत कर रहे हैं।
राजनीतिक जानकर कहते हैं कि उनके इस बयान का सियासत के लिए काफी अहम है। दरअसल, बर्क ने बसपा मुखिया मायावती की तारीफ की है और कहा उनकी देश को जरूरत है।
सपा सांसद ने कहा, मायावती ने अपनी कौम के लिए खूब काम किया है। मैं उनकी पार्टी में रह चुका हूं। मैंने उनकी पार्टी से चुनाव जीता था, सपा हार गई थी। मायावती भी एक शख्सियत हैं। उनकी भी देश में जरूरत है। ओबीसी समाज के लोगों के साथ नाइंसाफी होती है, उसे रोकने के लिए उनकी भी जरूरत है। सपा सांसद के इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में तरह- तरह की चर्चा होने लगी।
सियासी जानकारों के मुताबिक, मुस्लिम वोट सपा के कोर वोटर माने जाते हैं। भाजपा और बसपा भी इन्हीं वोटों को खींचने में लगी है। हालांकि बसपा को लगातार सफलता भी मिल रही है। बर्क का बयान भी उस वक्त आया है जब मायावती ने एलान किया है कि वह लोकसभा चुनाव में किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। अकेले दम पर चुनाव लड़ेंगी। ऐसे में बर्क के बयान के बहुत मायने हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद से ही मायावती ने मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू किया था। चूंकि शफीकुर रहमान बर्क बसपा से 2009 में एक बार सांसद रह चुके हैं और उन्होंने सपा के प्रत्याशी को ही हराया था। राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है।
अगर बर्क बसपा में चले जाते हैं तो सपा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है। क्योंकि पश्चिम यूपी में एक और मजबूत मुस्लिम चेहरा पार्टी को मिल जायेगा। क्योंकि सपा के एक अहम चेहरे आजम खान इस वक्त खामोश हैं।
उधर कांग्रेस से आए इमरान मसूद भी कुछ दिनों बाद ही सपा से बसपा पहुंच गए। गुडु जमाली आजमगढ़ में वापसी कर ही चुके हैं। उधर अतीक की पत्नी भी बसपा में अपने को सुरक्षित कर चुकी हैं।
अमोदकांत कहते हैं कि बसपा लगातार मुस्लिम नेताओं को जोड़ने का काम कर रही है। उसे पता है कि पश्चिमी यूपी में जाटव मुस्लिम वोट को मजबूत कर लें तो 2024 में ठीक ठाक प्रदर्शन किया जा सकता है। बसपा की यह सक्रियता निश्चित तौर पर सपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।
राजनीतिक दलों के आंकड़ों की मानें तो यूपी में 18 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। विशेष तौर पर 11 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम निर्णायक हैं। इनमें भी 70 प्रतिशत से ज्यादा संख्या पसमांदा मुस्लिमों (पिछड़ों) की है। चूंकि यह पहले भी पार्टी के साथ रहे हैं, अब भाजपा की तरफ इनका रुझान होने से बसपा में खलबली है। पार्टी का तर्क है कि विधानसभा चुनाव में इस वर्ग ने सपा के साथ जाकर देख लिया। अब बसपा के साथ आएं तो सत्ता परिवर्तन हो सकता है।
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