SC/ST Case: आरक्षण को लेकर प्रोन्नति में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से खास मुद्दों पर मांगा संक्षिप्त नोट

सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-09-14 18:22 GMT

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर केंद्र और विभिन्न राज्यों की ओर से कानूनी पहलू स्पष्ट किए जाने की मांग पर मंगलवार को कहा कि यह कोर्ट नहीं बताएगा कि सरकार कैसे नीति लागू करे। एम.नागराज के फैसले में निर्देश जारी किए गए हैं, अब प्रत्येक राज्य को निर्णय लेना है कि वह उन्हें कैसे लागू करेगा। कोर्ट ने साफ किया कि वह एम.नागराज के फैसले को दोबारा नहीं खोलेगा। कोर्ट लंबित मामलों को पहले तय किए जा चुके फैसलों के आधार पर निर्धारित करेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्यों से कहा कि वह अपने यहां के विशिष्ट कानूनी मुद्दों के बारे में दो सप्ताह में संक्षिप्त नोट दाखिल करें। कोर्ट दो सप्ताह बाद मामले पर अंतिम सुनवाई करेगा। कोर्ट ने मामले को पांच अक्टूबर को फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश दिया।

एससी एसटी आरक्षण में भी क्रीमी लेयर को बाहर किया जाना चाहिएसुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एम.नागराज के फैसले को दोबारा विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजे जाने की मांग खारिज कर दी थी हालांकि कोर्ट ने 2006 में दिए गए एम.नागराज के फैसले में एससी एसटी को आरक्षण देने से पहले पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की शर्त खारिज कर दी थी। कोर्ट ने कहा था कि एससी एसटी मामले में पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है। लेकिन पांच जजों की पीठ ने कहा था कि एससी एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा शामिल होनी चाहिए। यानी एससी एसटी आरक्षण में भी क्रीमी लेयर को बाहर किया जाना चाहिए। एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई है या फिर हाई कोर्ट के आदेशों को चुनौती दी गई है। ये मामला जनरैल सिंह बनाम लक्ष्मीनारायण केस के नाम से लगता है जिसके साथ बाकी मामले संलग्न हैं।
मुद्दे तय न होने के कारण रुकी हुई हैं बहुत सी नियुक्तियां और प्रोन्नतियां
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मंगलवार को एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर लंबित दर्जनों अर्जियों पर सुनवाई के दौरान उपरोक्त टिप्पणी की। कोर्ट में मंगलवार को करीब 133 याचिकाएं सुनवाई पर लगी थीं। जिसमे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र त्रिपुरा आदि की भी अर्जियां लंबित हैं। मंगलवार को कई राज्यों और केंद्र की ओर से कोर्ट में कहा गया कि प्रोन्नति में आरक्षण के विभिन्न मुद्दों पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। मुद्दे तय न होने के कारण बहुत सी नियुक्तियां और प्रोन्नतियां रुकी हुई हैं। कोर्ट को कुछ चीजें स्पष्ट करनी चाहिए जैसे कि किस तरह से पिछड़ापन तय हो, उचित प्रतिनिधित्व राज्य कैसे तय करेंगे आदि।पूर्व फैसलों में तय हो चुके मुद्दों पर विचार नहीं किया जाएगा

उधर दूसरे पक्ष से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि राज्यों ने एम.नागराज के फैसले को लागू नहीं किया है। तभी वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह ने कहा कि नागराज फैसले में कई अस्पष्टताएं हैं। खासकर केंद्र सरकार ने फैसले के बाद केंद्र ने स्पष्ट गाइडलाइन जारी नहीं की हैं। कोई राज्य यह कैसे तय करेगा कि उचित प्रतिनिधित्व है कि नहीं। इसका कोई बेंचमार्क नहीं है। कई हाई कोर्ट ने राज्यों द्वारा तय किए गए दिशा निर्देश रद कर दिए हैं। इन दलीलों पर पीठ ने कहा कि वह साफ कर देना चाहते हैं कि कोर्ट एम.नागराज के फैसले को दोबारा खोलने नहीं जा रहा न ही इस मुद्दे पर बहस सुनी जाएगी। जो फैसले आ चुके हैं उन पर विचार नहीं होगा। इन मामलों को तय हो चुके मामलों के आधार पर निर्धारित किया जाएगा। पीठ सरकार को नहीं बताएगी कि नीति कैसे लागू करें।
केंद्रीय गृह सचिव के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर रोक की मांग
केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला के खिलाफ लंबित अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अवमानना याचिका पर जो नोटिस जारी करने का आदेश दिया था उसे वापस ले लिया जाए क्योंकि केंद्र ने एडहाक प्रोन्नति का जो फैसला किया था वह अटार्नी जनरल की लिखित कानूनी राय के आधार पर लिया था।मामले पर दो सप्ताह बाद अंतिम सुनवाई करेगी शीर्ष अदालत

हालांकि दूसरी ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने मांग का विरोध किया। कोर्ट ने कहा कि वह इस मसले पर दो सप्ताह बाद विचार करेंगे। वेणुगोपाल ने कहा कि केंद्र की मुश्किल यह है कि 1400 प्रोन्नतियां एडहाक आधार पर वरिष्ठता के आधार पर की गई हैं जबकि करीब 2500 नियमित प्रोन्नतियां रुकी पड़ी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कोर्ट नहीं बताएगा कि सरकार कैसे नीति लागू करे। नागराज के फैसले में निर्देश जारी किए गए, प्रत्येक राज्य को तय करना है कि वह उसे कैसे लागू करेगा।


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