सावरकर के पोते रंजीत बोले- भारत जैसे देश में एक राष्ट्रपिता नहीं हो सकता, देखें वीडियो
मुंबई: एक बार फिर विनायक दामोदर सावरकर को लेकर राजनीति गरमा गई है. एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी की ओर से ये अब नया 'राष्ट्रपिता' बना देंगे की टिप्पणी पर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने कहा कि मैं महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में नहीं सोचता.
वीर सावरकर को लेकर फिर से छिड़े विवाद पर उनके पोते रंजीत सावरकर ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं. भारत जैसे देश में एक राष्ट्रपिता नहीं हो सकता, ऐसे हजारों हैं जिन्हें भुला दिया गया है जिनका देश की महानता को लेकर अपना योगदान दिया है. देश का इतिहास 40 या 50 साल का इतिहास नहीं है, बल्कि हजारों साल का इतिहास है.'
हैदराबाद से सांसद और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्विटर के जरिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई. ओवैसी ने ट्विटर पर एक पत्र साझा करते हुए दावा किया कि ये उन्होंने सावरकर को लिखा था. ओवैसी ने लिखा कि सावरकर को लिखे लेटर में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के सामने दया याचिका डालने का कोई जिक्र नहीं किया है. ओवैसी ने लिखा कि सावरकर ने अंग्रेजों के सामने पहली याचिका 1911 में डाली थी, तब गांधी अफ्रीका में थे. सावरकर ने फिर 1913-14 में याचिका दाखिल की थी.
सांसद ओवैसी ने आगे कहा कि क्या ये झूठ है कि 'वीर' ने तिरंगे को नकारा था और वो भगवा को झंडे के तौर पर चाहते थे? ओवैसी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के भाषण पर सवाल उठाते हुए आगे कहा, 'कल आपने अपने भाषण में कहा था कि सावरकर ने हिंदू उसको माना था जिसकी जन्मभूमि या मातृभूमि भारत था. लेकिन सावरकर कहते थे कि जो हिंदू है वही इस देश का नागरिक है.'
इससे पहले एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ ने जोर देकर कहा कि जेल में बंद सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर ही अंग्रेजों को दया याचिका लिखी थी. इस बारे में उन्होंने बताया कि सावरकर को लेकर कई तरह झूठ फैलाए गए. ऐसा कहा गया था कि सावरकर ने अंग्रेजों के सामने कई बार दया याचिका डाली थी. लेकिन सच तो ये है कि सावरकर ने ये सब महात्मा गांधी के कहने पर किया था. उन्हीं के कहने पर उन्होंने जेल में दया याचिका दाखिल की थी.
इस बारे में सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने आजतक से बातचीत में बताया कि गांधी ने सावरकर के भाई को याचिका दायर करने को कहा था. उन्होंने बताया कि 1920 में गांधी ने सावरकर के भाई को याचिका दायर करने के लिए पत्र लिखा था और उसके बाद याचिका लगाई गई थी.
रंजीत सावरकर ने कहा, 'सावरकर ने 1913 के बाद कई याचिकाएं लगाई थीं जो सभी कैदियों की रिहाई के लिए थी. इसमें उन्होंने ये भी कहा था कि अगर मेरी रिहाई अन्य कैदियों की रिहाई में आड़े आ रही है तो उन्हें रिहा कर देना चाहिए.'