श्री मद् भागवत कथा में निकाली गई रुक्मिणी विवाह की झांकी

Update: 2023-09-08 13:55 GMT
लखीसराय: नगर के चितरंजन रोड स्थित श्री राणी सती मंदिर के प्रांगण में चल रहे श्री मद् भागवत सप्ताह यज्ञ के छठे दिन में बनारस से आए हुए सुप्रसिद्ध कथा वाचक डा.मनोहर मिश्र महाराज ने बहुत ही विस्तार पूर्वक सुनाई रुक्मिणी विवाह की कथा एवं कंस बध की कथा सुनाते हुए कहा कि भगवान महाविष्णु हीँ भगवान श्रीकृष्ण हैं एवं माता महालक्ष्मी ही माता रुक्मिणी । रुक्मिणी का भाई रुकमी रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के साथ करवाना चाहता था। महाराज श्री ने शिशुपाल का अर्थ बताते हुए कहा कि शिशु यानि बच्चा। पाल यानी पालन पोषण करना। डा. मनोहर मिश्र महाराज ने इसका तात्विक अर्थ बताते हुए कहा कि जो भी मनुष्य लक्ष्मी यानि अपने धन का उपयोग केवल बाल-बच्चों के पालन पोषण में ही करते रहता है। उससे धन की देवी लक्ष्मी महारानी नाराज होकर अपने स्वामि नारायण यानी भगवान श्री कृष्ण को पुकारती है । लक्ष्मी जी की पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण आते हैं । रुक्मिणी रूपी लक्ष्मी का हरण कर लेते हैं। इस कथा का तात्विक अर्थ बताते हुए डा. मनोहर मिश्र महाराज ने कहा कि जो भी मनुष्य अपने कमाई का दशांस भाग भगवान के लिए खर्च करता है । दान करता है गरीबों की सेवा में लगाता है । उसके उपर धन की देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न रहती है। ज्ञान के देवता कृष्ण भी प्रसन्न रहते हैं ।
यानी फिर उस व्यक्ति के जीवन मे धन की भी कमी नहीं होगी। ज्ञान का भी अभाव नहीं होगा। दूसरी ओर जो व्यक्ति अपने कमाई का दशांस भाग धर्म के लिए खर्च नहीं करता है । उसके जीवन से धनरूपी लक्ष्मी का हरण भगवान कर लेते हैं । ज्ञान के देवता के अप्रसन्न होने से उसके जीवन में सद्बुद्धि का भी कमी देखने को मिलता है । अतः हर मनुष्य को चाहिए कि अपने कमाई का दशांस भाग धर्म के लिए दान करते रहें । जिससे उसके उपर लक्ष्मी नारायण दोनों की कृपा बरसते रहे। मौके पर डा. मनोहर मिश्र महाराज ने कंस बध की भी कथा सुनाई एवं महारास की कथा एवं गोपी गीत का पाठ भी सुनाए।
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