बांदा कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों की भर्ती पर हो रही बवाल, बीजेपी विधायक ने उठाए ये सवाल

उत्तर प्रदेश का बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में है.

Update: 2021-06-11 11:08 GMT

उत्तर प्रदेश का बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एक बार फिर विवादों में है. यहां प्रोफेसर पद पर 15 में से 11 नियुक्तियां एक ही जाति से जुड़े अभ्यर्थियों की कर दी गई हैं. अब यूनिवर्सिटी पर जातिगत भेदभाव कर विशेष जाति के लोगों को फायदा पहुंचाने के आरोप लग रहे है. स्थानीय बीजेपी विधायक बृजेश प्रजापति पहले ही एक जांच शासन के माध्यम से करवा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके यह नियुक्तियां हो गईं है. यूनिवर्सिटी प्रशासन जातिगत भेदभाव के आरोप से इनकार करते हुए पूरे मामले को 'फेयर प्रोसेस' बता रहा है.

बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्विद्यालय ने 20 भर्तियां निकाली थीं. जिनमें 18 सामान्य वर्ग और 2 EWS कोटे की थी. इसके लिए पहले विज्ञापन निकाला गया और जून के पहले सप्ताह में रिजल्ट घोषित किया गया. इनमें 15 अभ्यार्थियों की नियुक्तियां हुई हैं, जिनमें से 11 एक ही जाति के हैं. नियुक्त हुए प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. सामान्य वर्ग के 15 प्रोफेसर में से 11 ठाकुर हैं, जबकि एक ओबीसी, एक एससी, एक भूमिहार और एक मराठी शामिल है.
यूनिवर्सिटी ने आरोपों को नकारा
वहीं इस मामले में यूनिवर्सिटी के कुलसचिव सुरेंद्र कुमार सिंह ने आरोपों को गलत बताते हुए बताया कि हमारे विश्वविद्यालाय में प्रोफेसर व अन्य पदों पर जो नियुक्तियां हुई हैं, उसमें पूरी तरह सही प्रक्रिया का पालन किया गया है. कुल 40 पोस्ट थीं, जिसमें से 24 पोस्ट भरी गई हैं, बाकी में कैंडिडेट ही नहीं आए. इसलिए वो खाली हैं. इसका बहुत ट्रांसपेरेंट सिस्टम होता है. कमेटी इसका चयन करती है, जिसमें कई सदस्य होते हैं, राज्यपाल की तरफ से भी प्रतिनिधि होता है. इसी के साथ अलग-अलग आयोग के मेंबर होते हैं. यह एक फेयर सिलेक्शन हुआ है, किसी को किसी का कास्ट नहीं पता होती. अनरिजर्व कैटेगरी में किसी का भी सिलेक्शन हो सकता है.
दोबारा करूंगा जांच की मांग
वहीं तिंदवारी से बीजेपी विधायक ब्रजेश प्रजापति ने कहा कि हमारी मांग थी कि रोस्टर आरक्षण सिस्टम से इन नियुक्तियों की भर्तियां निकाली जानी चाहिए थी. लेकिन इसका पालन नहीं हुआ है. सारी भर्तियां एक साथ निकालने से जिन वर्गों को आरक्षण का लाभ मिल सकता था, इससे उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा वंचित कर दिया गया है. इसकी मैंने पीएम, सीएम, राज्यपाल और पिछड़ा आयोग से शिकायत की थी. लेकिन फिर भी नियुक्तियां कर दी गईं, जिसपर मैं अब दोबारा लैटर लिखूंगा.
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