भारत में हिंदी पर छिड़ी बहस के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान
अहमदाबाद: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के चीफ मोहन भागवत ने कहा है कि भारत में कई भाषाएं हैं, लेकिन उन सभी में एक ही भाव या भावना है, जो देश की एकजुटता का स्रोत है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत का हमेशा से मानना रहा है कि एकजुट रहने के लिए एक जैसे होने की जरूरत नहीं है.
भागवत ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि बोलियों सहित लगभग 3,800 भाषाएं हैं. एक ही भाषा को अलग-अलग तरीके से बोले जाने के कारण समझना मुश्किल है. मैंने सौराष्ट्र में गुजराती बोली जाती है, जिसे समझने के लिए प्रयास की आवश्यकता है, लेकिन भाषाएं भले ही अलग हों, फिर भी भाव एक ही है. यह भारत की एकजुटता है.
उन्होंने कहा कि भारत जैसा कोई दूसरा देश नहीं है, जबकि दुनिया भर के लोग कहते हैं कि एकजुट रहने के लिए एक जैसा होना चाहिए. भारत प्राचीन काल से यह मानता रहा है कि एकजुट होने के लिए समान होने की कोई आवश्यकता नहीं है. भागवत ने कहा कि हम 'अनेकता में एकता' कहते रहे हैं, लेकिन हम सभी को कुछ और शब्दों का इस्तेमाल करना होगा और 'एकता की विधाता' (एकता की विविधता) कहना होगा."
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि रामायण, महाभारत सभी भाषाओं में है, लेकिन सभी का भाव एक ही है. उन्होंने कहा, " देश में कई भाषाएं, कई संप्रदाय, रीति-रिवाज और परंपराएं हैं, लेकिन प्राचीन काल से भारत एक ही है. भागवत ने कहा कि भारत की राष्ट्रीय भावना की स्वाभाविक अभिव्यक्ति संकटग्रस्त देशों की मदद करना है न कि युद्ध करना.
भागवत ने कहा कि भारत बड़ा हो गया है. बड़ा होने के बाद, क्या भारत युद्ध में गया? भारत ने मालदीव को पानी की आपूर्ति की, युद्ध में दूसरे देशों में फंसे लोगों को निकाला, दो बार और तीन बार श्रीलंका को चावल की आपूर्ति की, जो संकट का सामना कर रहा है. यह हमारे राष्ट्रीय भावना की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है.