मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत का अखंड भारत पर नया बयान आया है. एक सवाल के जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि भारत से अलग हुए देशों को अब अपनी गलती का अहसास होने लगा है. बुधवार को महाराष्ट्र के नागपुर में श्री अग्रसेन छत्रवास के छात्रों को मोहन भागवत ने संबोधित किया. यहां मौजूद एक छात्र ने उनसे सवाल किया, 'हम भारत को अखंड भारत के रूप में कब तक देख लेंगे.' इसका जवाब देते हुए भागवत ने कहा, 'कब तक बनेगा मैं ये नहीं बता सकता. उसके लिए ग्रह ज्योतिष देखना पड़ेगा. मैं तो जानवरों का डॉक्टर हूं. लेकिन अगर आप उसको करने जाएंगे तो आपके बूढ़े होने से पहले आपको दिखेगा.'
भागवत ने आगे कहा, 'क्योंकि परिस्थिति अब ऐसी करवट ले रही हैं. जो भारत से अलग हुए उनको लगने लगा है कि गलती हो गई. हमको फिर से भारत होना चाहिए. लेकिन वे मानते हैं कि भारत होना मतलब नक्शे की रेखाओं को पोछ डालना. लेकिन ऐसा नहीं है. सिर्फ उससे नहीं होगा.' संघ प्रमुख बोले कि भारत होना मतलब भारत के स्वभाव को स्वीकार करना. भारत का स्वभाव मंजूर नहीं था, इसलिए भारत का विखंडन हुआ. वो स्वभाव जब आ जाएगा तो सारा भारत एक हो जाएगा. अपने जीवन में सब पड़ोसी देशों को ये सिखाना, ये काम हमको करना होगा. कर भी रहे हैं. हम मालदीव को पानी पहुंचा रहे हैं, श्रीलंका को पैसा पहुंचाते हैं. नेपाल को भूचाल में मदद करते हैं. बांग्लादेश को मदद करते हैं. सबको मदद कर रहे हैं.
आगे भागवत ने एक पुराने किस्से का जिक्र किया. वह बोले, '1992-93 में सार्क (SAARC) का अध्यक्ष बनते वक्त प्रेमदासा (श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति) ने कहा था कि दुनिया के बड़े देश छोटे देशों को निगलते हैं. इसलिए हमें सावधान रहकर एक रहना चाहिए. दक्षिण एशिया के देशों के लिए ये कठिन काम नहीं है. दुनिया में अभी हम अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं. लेकिन वास्तव में हम एक ही भारत मुख्यभूमि के अंग हैं.'
भागवत बोले कि ये भाव उत्तपन्न हो जाए कि भारत मेरी माता है. हमारे पूर्वज समान हैं. हमारे मूल्य जिसके आधार पर संस्कृति बनती है वह भी समान है. बता दें कि RSS की नजर में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका और तिब्बत 'अखंड भारत' का हिस्सा हैं. संघ इन सबको एक राष्ट्र मानता है, इसके पीछे हिंदू सांस्कृति समानताओं का आधार है.