सड़क किनारे अंडा बेचने वाला युवक बना अफसर, जानिए सफलता की पूरी कहानी

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Update: 2021-06-11 12:21 GMT

सड़क किनारे लोहे और लकड़ी से बनी छोटी सी गुमटी में सड़क किनारे अंडा बेचने वाले बीरेंद्र को देखकर शायद ही किसी ने सोचा हो कि एक दिन वो राज्य का बड़ा अफसर बन जाएगा. लेकिन औरंगाबाद के लोगों के लिए अब बीरेंद्र नजीर बन गया है. बीपीएससी परीक्षा पास करके बीरेंद्र अब अफसर बन चुका है. जानिए- कैसे बीरेंद्र ने यह परीक्षा पास की. क्या थी स्ट्रेटजी, कैसे किया संघर्ष... औरंगाबाद के कर्मा रोड स्थित एक छोटी-सी गुमटी में बैठकर अंडा बेचने वाले बीरेंद्र ने वो कर दिखाया है जो अभ्यर्थी तमाम कोचिंग के बाद भी करने से रह जाते हैं. इस तरह बीरेंद्र आज के युग में पैसा न होने को कारण मानकर पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों के लिए प्रेरणा बन गया है.

बिरेन्द्र औरंगाबाद जिले के बारुण प्रखण्ड के एक छोटे से गांव हाथीखाप के रहने वाले हैं. उनके पिता भिखारी राम ने जूता सिलकर अपने तीन बच्चों की परवरिश की. मगर साल 2012 में पिता की मौत के बाद तीनों भाइयों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. अपनी मां के साथ सबों ने गांव छोड़कर शहर का रुख किया.

घर की जिम्मेदारी बड़े भाई जितेंद्र पर आ पड़ी. शहर आकर सभी ने कर्मा रोड के दलित बस्ती में किराए की दुकान ली और जीवन की गाड़ी खींचने लगे. लेकिन बिरेन्द्र ने पढ़ाई का जुनून नहीं छोड़ा. घर की माली स्थिति बेहद खराब हो चली थी तो घर को आर्थिक रूप से सपोर्ट करने के लिए बिरेन्द्र ने अंडे की दुकान खोली और अंडा बेचने का काम शुरू कर दिया. इस व्यवसाय के साथ साथ बिरेन्द्र ने किताबों का साथ नहीं छोड़ा. जब ग्राहक नहीं रहते तो पढ़ाई शुरू हो जाती. इस तरह बिरेन्द्र ने दिन में व्यसाय और रात में अपनी पढ़ाई जारी रखी.

धीरे धीरे घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक हुई तो बड़े भाई ने बैग की एक छोटी- सी दुकान खोली जहां चमड़े के बैग, जैकेट और इससे संबंधित अन्य सामग्रियों की बिक्री होने लगी. इधर आय के स्थायी साधन होने के बाद बड़े भाई जितेंद्र ने अपने छोटे भाई को दुकान छोड़कर सारा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करने के लिए कहा. दोनों भाइयों ने बाबा भीमराव अंबेडकर की जीवनी को अपने हृदय में आत्म सात करते हुए हर कठिन और विषम परिस्थिति का सामना करने की ठानी.

बिरेन्द्र ने दुकान बंद कर बगल के ही एक प्रतियोगी राजीव कुमार जिन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली से पूरी की उनका साथ लिया और उनके मार्गदर्शन में अपनी पढ़ाई शुरू की. धीरे धीरे बैच बना और सभी ने कम्पीटिशन में पास होने की ठानी लेकिन सफलता बिरेन्द्र ने हासिल की. बिरेन्द्र ने बीपीएससी की परीक्षा में 201 वां स्थान प्राप्त किया. आज बिरेन्द्र का परिवार इस कामयाबी पर फूला नहीं समा रहा है और इस सफलता को लेकर बिरेन्द्र के तंग रास्ते वाले दो कमरों के घर पर बधाई देने वालों की भीड़ लगी हुई है.लोगो की ज़ुबान पर यही है कि पढ़ाई करके कुछ कर गुजरने की लगन हो तो पैसे की तंगी भी रुकावट नहीं बन सकता. बीरेंद्र ने 64वीं बीपीएससी को क्रैक करके अपने जिले में सफलता का परचम लहराया और गरीब युवाओं के लिए एक मिसाल बन गया. उसने अंडा बेचकर बीएपीससी में अपनी कामयाबी का झंडा बुलंद किया है.


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