NIA की ड्राफ्ट चार्जशीट में खुलासा, भारत के खिलाफ युद्ध का था प्लान, JNU का भी नाम आया सामने
भीमा कोरेगांव केस (bhima koregaon case) की जांच कर रही NIA टीम ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. दायर चार्जशीट की ड्राफ्ट कॉपी में दावा किया गया है कि आरोपी राष्ट्र के खिलाफ जंग की शुरुआत करना चाहते थे. ड्राफ्ट चार्ज में कुल 22 लोगों को आरोपी बनाया गया है, इसमें से 6 फिलहाल फरार हैं. आरोप है कि देश के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए फंड जुटाए गए थे और हथियार भी खरीदे गए थे.
NIA की चार्जशीट में आरोपी लोगों को प्रतिबंधित आतंकी संगठन CMI (M) का एक्टिव सदस्य बताया गया है. चार्जशीट में सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंजाल्विस, वरवर राव, हनी बाबू, आनंद तेलतुम्बडे, शोमा सेन, गौतम नवलखा समेत अन्य आरोपी हैं.
ड्राफ्ट चार्जशीट में एक बड़ा दावा यह भी किया गया है कि आरोपियों ने विभिन्न यूनिवर्सिटीज से छात्रों को आतंकी कृत्य के लिए रिक्रूट किया था. जिन यूनिवर्सिटीज से छात्रों को लिया गया उसमें जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस का नाम दिया गया है.
NIA की ड्राफ्ट चार्जशीट में लिखा है कि आरोपियों का मुख्य उद्देश्य मिलकर 'जनता सरकार' बनाना था, जिसके लिए ये लोग क्रांति और सशस्त्र संघर्ष की बात करते थे. आरोपी विस्फोटक पदार्थ का इस्तेमाल भी करना चाहते थे जिससे लोगों के मन में भय पैदा किया जा सके.
कहा गया है कि आरोपी देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता को खतरे में डालने का प्लान बना रहे थे. आगे लिखा है कि इनके निशाने पर महाराष्ट्र था. विस्फोटक बनाने के लिए रसद, तार, नाखून, नाइट्रेट पाउडर आदि जुटाया गया था. साथ ही साथ ये आरोपी चाइनीज QLZ 87 ऑटोमेटिक ग्रेनेड लॉन्चर, रूसी GM-94 ग्रेनेड लॉन्चर और M-4 कार्बाइन गन (400000 गोलियों के साथ) ट्रांसपोर्ट करने वाले थे.
क्या था भीमा कोरेगांव केस
यह सब 1 जनवरी 2018 को शुरू हुआ. जब लाखों की संख्या में दलित पुणे के पास एकत्रित हुए. वहां ये लोग भीमा कोरेगांव (bhima koregaon) की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए जुटे थे. 1818 में हुई पेशवाओं के खिलाफ यह लड़ाई ब्रिटिश आर्मी ने जीती थी, जिसमें बड़ी संख्या में दलित समुदाय के लोग भी शामिल थे. इस कार्यक्रम में कुछ भाषणों के बाद हिंसा हुई थी, जिसमें काफी नुकसान हुआ.
मौके पर मौजूद लोगों की गवाही पर पिंपरी थाने में FIR दर्ज हुई. इसमें दो हिंदूवादी नेता मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े का नाम शामिल था, जिनपर हिंसा को भड़काने का आरोप था. लेकिन फिर 8 जनवरी को दूसरी FIR दर्ज हुई. इसमें दावा किया गया कि हिंसा के पीछे एल्गार परिषद की मीटिंग थी, जो कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में बुलाई गई थी. इसके बाद पुलिस ने कुछ एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी की, उनके माओवादी संबंध बताए गए.