ओड़िशा। महज 42 साल की उम्र में सेना से रिटायरमेंट लेने के बाद अपने गांव पहुंचे खिरोद जेना का कहना है कि जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि वहां की सम्सयाएं वैसी की वैसी ही है. समस्याओं के साथ अब गांव में हरियाली भी कम होने लगी है. सड़क के किनारे कोई पेड़-पौधे नहीं है और जंगल भी कम हुए हैं. उन्होंने कहा कि गांव की कम होती हरियाली को देखकर मैंने यहां पेड़ और पौधे लगाने का फैसला किया. 2005 से उन्होंने अपने गांव से पौधरोपण की शुरुआत की. देखते ही देखते, उनका काम आसपास के गांवों में भी फैल गया.
खिरोद जेना ने कहा, मैंने अब तक 20,000 पौधे लगाए हैं और मेरा लक्ष्य 1 लाख पौधे लगाने का है. मैंने अपने गांव के आसपास और फिर आस-पास के गांवों में वृक्षारोपण किया. मैं अपनी पेंशन का 80% इसी पर खर्च करता हूं. खिरोद जेना के अथक प्रयासों का ही ये नतीजा है कि आज उनके गांव और आसपास के क्षेत्र हरियाली से गदगद हो गए हैं. आज सिर्फ गांव के लोग ही नहीं बल्कि पूरे देश के लोग खिरोद जेना के काम की तारीफ कर रहे हैं.