रिटायर्ड ACP ने IPS अफसर पर लगाया गंभीर आरोप, छुपाया था आतंकी कसाब का फोन, पढ़े पूरी बात
नई दिल्ली: मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह (Parambir Singh Case) पर महाराष्ट्र पुलिस के रिटायर्ड ACP शमशेर खान पठान (Shamsher Khan Pathan) ने बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं. पठान ने खुलासा किया है कि साल 2008 में हुए 26/11 आतंकी हमले (Mumbai 26/11 Terror Attack) में शामिल आतंकी अजमल कसाब की मदद भी परमबीर ने ही की थी. उन्होंने आरोप लगाया है कि कसाब के पास से मिले फोन को परमबीर ने अपने पास रख लिया था और उसे कभी जांच अधिकारियों को नहीं सौंपा. इसी फोन के जरिए कसाब पाकिस्तान में बैठे अपने आतंकी आकाओं से निर्देश ले रहा था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सिर्फ कसाब ही नहीं परमबीर ने कुछ अन्य आतंकियों और उनके हैंडलर्स की भी मदद की थी. परमबीर ने कई मामलों में उनके खिलाफ सबूत भी मिटाए. मिली जानकारी के मुताबिक पठान ने चार पन्नों की एक शिकायत मुंबई के मौजूदा पुलिस कमिश्नर को भेजी है और जांच की मांग की है.
शमशेर खान ने मुंबई पुलिस कमिश्नर को लिखी शिकायती चिट्ठी में बताया है कि साल 2007 से 2011 के बीच वे पाईधूनी पुलिस स्टेशन में बतौर सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर तैनात थे. उनके बैचमेट एनआर माली बतौर सीनियर इंस्पेक्टर डीबी मार्ग पुलिस स्टेशन में पोस्टेड थे और दोनों का अधिकार क्षेत्र मुंबई जोन-2 में आता था.
चिट्ठी में कहा गया है कि 26/11 के दिन अजमल आमिर कसाब को गिरगांव चौपाटी इलाके में पकड़ा गया था. इसकी जानकारी जब मुझे हुई तो मैंने अपने साथी एनआर माली को फोन किया था और माली ने मुझे बताया कि अजमल कसाब के पास से एक मोबाइल फोन भी बरामद हुआ है. साथ ही उन्होंने मुझे बताया कि यहां पर कई बड़े अधिकारी आए हुए हैं, जिसमें ATS के तत्कालीन चीफ परमबीर सिंह भी हैं. माली के मुताबिक, यह फोन कॉन्स्टेबल कांबले के पास था और उससे ATS के चीफ परमबीर सिंह ने लेकर अपने पास रख लिया था.
पठान के दावे के मुताबिक मोबाइल फोन इस मामले का सबसे अहम सबूत था क्योंकि इसी फोन से कसाब पाकिस्तान से निर्देश पा रहा था. यह फोन उसके पाकिस्तान और हिन्दुस्तान में उनके हैंडलर को पकड़वा सकता था लेकिन बाद में मुझे पता चला कि ये फोन तो जांच में शामिल ही नहीं किया गया था. इस केस की जांच मुंबई क्राइम ब्रांच के पुलिस इंस्पेक्टर महालय कर रहे थे और परमबीर सिंह की ओर से यह मोबाइल फोन उन्हें सौंपा ही नहीं गया था. कोर्ट में भी ये बताया गया था कि कोई फोन बरामद नहीं हुआ.
हमें संदेह था कि मोबाइल फोन में आतंकियों के पाकिस्तान और भारत में मौजूद हैंडलर के अलावा भारत के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों के संपर्क नंबर भी हो सकते हैं. यदि फोन मुंबई क्राइम ब्रांच को उस समय दिया गया होता, तो शायद और अधिक महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठा करने की स्थिति में हम होते, क्योंकि 26 तारीख के बाद भी आतंकी अपने हमले को जारी रखे हुए थे. इंस्पेक्टर माली से बात की थी और उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने इस बाबत मुंबई दक्षिण क्षेत्र के आयुक्त वेंकटेशम से मुलाकात कर उनसे परमबीर से वह फोन लेने और उसे संबंधित जांच अधिकारी को जांच के लिए देने को कहा था.
पठान ने चिट्ठी में लिखा है- मैं रिटायर्ड हो चुका हूं और आजकल समाज सेवा का काम कर रहा हूं. माली भी अब असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर की पोस्ट से रिटायर्ड हो चुके हैं. इस बारे में कुछ दिन पहले मैंने फिर से जब माली से पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि वे इस सबूत की बात करने तत्कालीन ATS चीफ परमबीर सिंह के पास गए थे. उन्होंने परमबीर से इस सबूत को क्राइम ब्रांच को सौंपने को भी कहा था, लेकिन परमबीर उलटे उन पर ही भड़क गए. उन्होंने खुद के सीनियर होने की बात कहते हुए डांट कर माली को अपने ऑफिस से निकाल दिया था.
इस घटना की जानकारी कमिश्नर वेंकेटेशम को दिए जाने के बावजूद उन्होंने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया था. माली ने इस पूरे मामले में अपनी व्यक्तिगत जांच जारी रखी और आधिकारिक रिकॉर्ड खंगाला तो उसमें लिखा गया था कि कसाब के पास से कोई भी फोन बरामद नहीं हुआ था. इसका मतलब यह था कि मोबाइल फोन मिला था और उसे क्राइम ब्रांच के पुलिस इंस्पेक्टर महाले को नहीं सौंपा गया था. यह साबित करता है कि परमबीर सिंह ने सबूतों को नष्ट किया और इस पूरी क्रिमिनल साजिश में वह देश के दुश्मनों के साथ शामिल थे.