संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफोबिया पर प्रस्ताव पारित, भारत ने कही ये बात

Update: 2022-03-16 06:04 GMT

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र महासभा में मंगलवार को इस्लामोफोबिया से निपटने के लिए 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाए जाने को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया गया. भारत ने अंतरराष्ट्रीय इस्लामोफोबिया दिवस घोषित किए जाने पर यूएन में अपनी चिंता जाहिर की है. भारत ने कहा कि हिंदू, बौद्ध और सिख धर्मों के विरुद्ध भी फोबिया बढ़ रहा है, ऐसे में किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ ही फोबिया को इस तरह पेश किया जा रहा है कि इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करना पड़ा है.

भारत की तरह ही फ्रांस ने भी इस प्रस्ताव पर चिंता जताई और कहा कि प्रस्ताव किसी धर्म विशेष का चयन करके धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ लड़ाई में विभाजन पैदा करता है.
इस्लामिक देशों की तरफ से पेश किया गया था प्रस्ताव
193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने प्रस्ताव पेश किया था कि 15 मार्च को इस्लामोफोबिया से मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया जाए.
ये प्रस्ताव पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, जॉर्डन, कजाकिस्तान, कुवैत, किर्गिस्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, माली, कतर, सऊदी अरब, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, युगांडा, संयुक्त अरब अमीरात, उज्बेकिस्तान और यमन द्वारा सह-प्रायोजित था.
प्रस्ताव पर भारत की चिंता
संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने पर भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत समझता है कि पारित प्रस्ताव कोई मिसाल कायम नहीं करता. इससे कई और धर्मों से संबंधित फोबिया के प्रस्ताव भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में आएंगे और संयुक्त राष्ट्र धार्मिक खेमों में बंट जाएगा.
उन्होंने कहा, 'हिंदू धर्म के 1.2 अरब से अधिक मानने वाले हैं, बौद्ध धर्म के 53.5 करोड़ से अधिक और सिख धर्म के 3 करोड़ से अधिक मानने वाले दुनिया भर में फैले हुए हैं. अब समय आ गया है कि हम धार्मिक आधार पर फोबिया की उपस्थिति को स्वीकार करे न कि किसी एक धर्म के खिलाफ फोबिया पर बात करें.'
उन्होंने आगे कहा, 'यह जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र ऐसे धार्मिक मामलों में न पड़े. ये हमें शांति और सद्भाव के एक मंच पर साथ लाने और दुनिया को एक परिवार मानने के बजाय विभाजित करने की कोशिश कर सकता है.'
मसौदा प्रस्ताव पास होने के बाद हालांकि, तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत यहूदी-विरोधी, क्रिश्चियनोफोबिया या इस्लामोफोबिया से प्रेरित सभी कृत्यों की निंदा करता है और ये फोबिया सिर्फ इन्हीं धर्मों तक सीमित नहीं है.
'इस्लामोफिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस की जरूरत नहीं'
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य देशों को ये नहीं भूलना चाहिए कि 2019 में पहले ही ये तय हो चुका है कि 22 अगस्त को धार्मिक हिंसा के शिकार लोगों के साथ सहानुभूति के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इसमें सभी धर्मों के लोगों की बात आ जाती है.
उन्होंने आगे कहा, 'हम 16 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय सहिष्णुता दिवस भी मनाते हैं. हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि हमें एक धर्म के प्रति फोबिया को इस तरह से पेश किया जाए कि उसके लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने की जरूरत पड़े.'
उन्होंने दूसरे धर्मों के प्रति बढ़ते फोबिया के उदाहरण देते हुए कहा कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध को खत्म करना, गुरुद्वारा परिसर का उल्लंघन, गुरुद्वारा में सिख तीर्थयात्रियों का नरसंहार, मंदिरों पर हमला, मंदिरों में मूर्तियों को तोड़ने का महिमामंडन सहित इसके कई उदाहरण हैं.
उन्होंने कहा, 'ऐसे में हम बाकी सभी धर्मों को दरकिनार कर किसी एक धर्म के खिलाफ भय को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के स्तर तक बढ़ाने के बारे में चिंतित हैं.'
तिरुमूर्ति ने साथ ही भारत का जिक्र करते हुए कहा कि भारत को इस बात पर गर्व है कि वहां सभी धर्मों को बराबर सम्मान देने की परंपरा रही है. तिरुमूर्ति ने कहा कि सभी धर्मों का सम्मान करने वाले और लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत ने हमेशा सदियों से दुनिया भर में सताए गए लोगों का उनके धर्म और मान्यताओं के लिए स्वागत किया है.
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