बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर CM नीतीश के मंत्री ने कहा- थक चुके हैं हम;
CM नीतीश के मंत्री ने कहा
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि विशेष दर्जे की मांग करते-करते हमलोग थक चुके हैं। इसके लिए कमेटी बनी, जिसकी रिपोर्ट भी आई। पर, कोई नतीजा नहीं निकला। इस मुद्दे पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह ने भी कहा है कि अब आर्थिक पैकेज की बात हो रही है। जो भी प्रदेश राष्ट्रीय मानक से पीछे हैं, उन्हें विशेष सहायता मिलनी चाहिए। हमारे नेता नीतीश कुमार इस बात को बराबर उठाते रहे हैं।
योजना एवं विकास मंत्री ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि हमलोग एक सरकार में हैं और मांग की एक सीमा होती है। सात-आठ सालों तक मांक किये। अब कितने दिनों तक अनवरत यही किया जाए, हमलोग अपना काम कर रहे हैं। वहीं उन्होंने नीति आयोग की रिपोर्ट को विरोधाभासी बताया और कहा कि बिहार की सही तस्वीर पेश नहीं की गई है।
इधर, दिल्ली में इस मुद्दे पर पत्रकारों के सवाल पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि वित्त आयोग ने जो रिपोर्ट दी है, उसके आधार पर पिछड़ेपन को दूर करने के लिए विशेष पैकेज की बात हो रही है। हमलोग उस पर मजबूती से अपनी बात रख रहे हैं। फाइनेंस कमीशन की रिपोर्ट के बाद किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल रहा है। फाइनेंस कमीशन ने भी कहा है कि जो पिछड़े राज्य हैं उन्हें आर्थिक पैकेज मिलना चाहिए। इसी सवाल पर केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने पत्रकारों से कहा कि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने स्पष्ट कर दिया है। जो भी प्रदेश राष्ट्रीय मानक से पीछे हैं, सबको मानक तक आने के लिए अलग-अलग तरीके से आवश्यकता होती है। हमारे नेता नीतीश बाबू इस बात को बराबर उठाते रहे हैं। तो स्वाभाविक है कि यह मांग तो रहेगी। उन्होंने कहा कि जिन-जिन मानकों में हम पीछे हैं, उसमें संसाधनों की मांग हमलोग करते रहे हैं। मांग आगे भी होगी।
नीति आयोग की रिपोर्ट पर दर्ज की कड़ी आपत्ति
जून में वर्ष 2020-21 की नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट, जिसमें बिहार को विभिन्न विकास के मानकों पर संयुक्त रूप से देश में 28 वें नंबर पर रखा गया था, पर राज्य सरकार ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। योजना विकास मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि बिहार ने सड़कें, पुल-पुलिया, बिजली, गुणवत्ता शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि और गरीबी दर घटाने आदि मामलों में अच्छी प्रगति की है। रिपोर्ट में आयोग ने राज्य की प्रगति को शामिल नहीं किया है। यह बिहार के साथ न्याय नहीं है। इस संबंध में योजना एवं विकास विभाग ने नीति आयोग को ज्ञापन भेजा है, जिसमें मानक बदलने की भी बात कही गई है। ज्ञापन ने कहा गया है कि वर्ष 2019-20 में राज्य की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रही है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर इस वर्ष में 4.2 प्रतिशत रही है।
वर्ष 2018-19 में भी यह आंकड़ा क्रमश: 9.3 और 6.1 प्रतिशत रही थी। बिहार ने गरीबी दर में छह सालों में 21 प्रतिशत की कमी की है। वर्ष 2004-05 में गरीबी दर 54.4 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2011 में से 33.7 प्रतिशत थी। इन सालों में राष्ट्रीय स्तर में कमी सिर्फ 12.5 प्रतिशत की रही। पर, राज्यों की रैंकिंग में इस बात को महत्व नहीं दिया गया। इसी तरह गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोगों की संख्या वर्ष 2011 के आंकड़ों के आधार पर ही चली आ रही है। इसका नया आंकड़ा आना चाहिए। बिहार में पिछले छह साल में प्रति व्यक्ति विकास पर खर्च 17.9 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह बढ़त 11.6 प्रतिशत है। इस तरह के कई कार्य बिहार में काफी अच्छे हुए हैं, जिनको शामिल किये बगैर रिपोर्ट जारी की गई है। उन्होंने कहा कि बिहार में गाड़ियों की संख्या बढ़ी और बिजली की खपत में काफी वृद्धि हुई तो फिर गरीबी कैसे नहीं घटी।
बिहार में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र संभव नहीं
विकास आयुक्त आमिर सुबहानी ने कहा कि नीति आयोग द्वारा जारी सतत विकास लक्ष्य, राष्ट्रीय सूचकांक 2020-21 रिपोर्ट में कई ऐसे मानक रखे गये हैं, जो बिहार के लिए न्यायसंगत नहीं हैं। आयोग को सुझाव भी दिया गया है कि मानकों का चयन और उनके लक्ष्यों का निर्धारण राज्यों की सहमति से की जाये। सतत विकास लक्ष्य में राज्यों में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र को तय किया गया है। इसी आधार पर रैंकिंग होती है। बिहार की भौगोलिक स्थिति में यह संभव नहीं है कि यहां 33 प्रतिशत वन क्षेत्र हो। बिहार में पिछले 15 वर्षों में हरियाली क्षेत्र काफी बढ़ा है। इस पर नीति आयोग विचार करे। देश की आबादी का औसत घनत्व 382 है, जबकि बिहार का 1106 है। इसी तरह भूख का खात्मा करने के मामले में प्रति कृषि श्रमिक अनाज के उत्पादन को आधार बनाया जाता है। बिहार में आबादी का घनत्व काफी अधिक है। इसलिए यहां कम आता है। पर, यहां का उत्पादन और उत्पादकता काफी बढ़ी है, जिसे रिपोर्ट में शामिल किया जाना चाहिए।
एटीएम लगाना राज्य का काम नहीं
प्रति लाख राज्य में बैंकों के कितने एटीएम लगे हैं, इसको भी मानक बनाया गया है। पर, एटीएम लगाना राज्य सरकार का काम नहीं है। यह बैंकों का काम है, जो केंद्र सरकार के अधीन आते हैं। इस पर भी आयोग विचार करे। वर्ष 2001 में राज्य की साक्षरता दर 47 प्रतिशत थी, जो 2011 में 61.8 प्रतिशत हुई। बिहार में नवजात मृत्यु दर में वर्ष 2015 से 2018 के बीच दस अंकों की कमी आई, पर इसे भी शामिल नहीं किया गया। इसी प्रकार मैट्रिक परीक्षार्थियों की संख्या में 15 सालों में 15 लाख की बढ़ोतरी हुई, जिसे स्थान नहीं दिया गया।