राज्य विधानमंडलों में बैठकों की संख्या में कमी चिंता का विषय है : लोकसभा अध्यक्ष
इस बात का उल्लेख करते हुए कि लोकतंत्र की जननी के रूप में, भारत में लोकतांत्रिक निर्णय लेने की एक लंबी परंपरा रही है, बिरला ने कहा कि स्वतंत्रता के 75 वर्षों में भारत में लोकतान्त्रिक मूल्यों के अनुपालन के फलस्वरूप बड़े पैमाने पर और व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र कई लोगों की धारणाओं को गलत साबित करते हुए समय की कसौटी पर खरा उतरा है। नवनिर्वाचित सदस्यों से विधायी कार्यवाही में भाग लेने का आग्रह करते हुए, बिरला ने कहा कि सदस्यों को यथासंभव अधिकाधिक अनुभव प्राप्त करना चाहिए और विधायी कार्यवाही और बहस में भाग लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि वाद-विवाद और चर्चाओं के सावधानीपूर्वक विश्लेषण और शोध से विधायी अनुभव बढ़ता है।
उन्होंने हिमाचल विधान सभा को पहली पूरी तरह से डिजिटल और पेपरलेस विधानसभा बनने पर सराहना करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि विधान सभा के भीतर और बाहर विधायकों का आचरण निंदा से परे होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना प्रत्येक निर्वाचित जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी है कि विधायी निकाय हमेशा तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर बहस करें। जनप्रतिनिधियों को निराधार तथ्यहीन आरोपों से बचना चाहिए।
सदन की कार्यवाही में सुनियोजित व्यवधान को गलत बताते हुए बिरला ने कहा कि इस तरह के आचरण और अनुशासनहीनता को सभी सदस्यों को हतोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा अमर्यादित आचरण से सदन की गरिमा कम होती है और इससे शासन संस्थानों में जनता का विश्वास भी कम होता है।