पिता के मिजाज अपना रहे राकेश टिकैत पुलिस की 'चेतावनी' को दिखाया ठेंगा, सड़क पर बैठकर खाया खाना
किसानों के मसीहा कहे जाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत (Mahendra Singh Tikait) की विरासत उनके दोनों बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत संभाल रहे हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | किसानों के मसीहा कहे जाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत (Mahendra Singh Tikait) की विरासत उनके दोनों बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत संभाल रहे हैं। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ राकेश टिकैत (Rakesh Tikait news) जहां गाजीपुर बॉर्डर (Ghazipur border updates) पर मोर्चा संभाले हैं, तो वहीं नरेश टिकैत पश्चिमी यूपी में महापंचायतें कर किसानों को एकजुट कर रहे हैं। 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद जहां टिकैत बंधु बैकफुट पर नजर आ रहे थे, वहीं एक हफ्ते बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। किसान आंदोलन नए रंग के साथ जोर पकड़ रहा है। भारी जनसमर्थन मिलने के बाद राकेश टिकैत के व्यक्तित्व में भी 'चौधराहट' वापस आई है और इसकी एक बानगी मंगलवार को गाजीपुर बॉर्डर पर भी देखने को मिली।
तो इसलिए राकेश टिकैत की हो रही बाबा टिकैत से तुलना!
दरअसल पुलिस ने गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को देखते हुए भारी सुरक्षा-व्यवस्था की है और धारा 144 लगा रखी है। मंगलवार को इन्हीं बैरिकेड्स के नीचे सड़क पर बैठकर राकेश टिकैत ने खाना खाया। उनके समर्थकों में से एक ने कहा भी कि ऊपर पुलिस की चेतावनी लिखी है तो उन्होंने कहा इसीलिए तो यहीं बैठकर खाना है। सोशल मीडिया पर उनके इस अंदाज की काफी चर्चा है। लोग उनके इस अंदाज की उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत के अक्खड़ मिजाज से भी तुलना कर रहे हैं।
बाबा टिकैत ने किसानों को लड़ना सिखाया
राकेश टिकैत के अंदाज को देखकर बाबा टिकैत से उनकी तुलना यूं ही नहीं हो रही। महेंद्र सिंह टिकैत का व्यक्तित्व इससे भी कहीं ज्यादा बड़ा था। महेंद्र सिंह टिकैत ने ही किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाया। उनके एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। कहा जाता है कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं।
विजयचौक से लेकर इंडिया गेट तक 5 लाख किसानों का हो गया कब्जा
बाबा टिकैत के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाने के लिए साल 1988 के किसान आंदोलन का उदाहरण ही काफी है। महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में पूरे देश से करीब 5 लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था। अपनी मांगों को लेकर इस किसान पंचायत में करीब 14 राज्यों के किसान आए थे। सात दिनों तक चले इस किसान आंदोलन का इतना व्यापक प्रभाव रहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई थी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को किसानों की सभी 35 मांगें माननी पड़ीं, तब जाकर किसानों ने अपना धरना खत्म किया था।
बदले-बदले से अंदाज में नजर आ रहे राकेश टिकैत! पुलिस की 'चेतावनी' को दिखाया ठेंगा, सड़क पर बैठकर खाया खाना
मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह पर ऐसे तंज कसे कि उन्हें मंच छोड़ना पड़ा
11 अगस्त 1987 को सिसौली में एक महापंचायत की गई, जिसमें बिजली दरों के अलावा फसलों के उचित मूल्य, गन्ने के बकाया भुगतान के साथ सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जनआंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते वीर बहादुर सिंह भी मंच पर उपस्थित रहे। जब उन्होंने पानी पीने की इच्छा जाहिर की तो उन्हें मंच पर ही अपने हाथ से पानी पिलाया गया जो वहां की स्थानीय रीति-रिवाजों का हिस्सा रहा है, हालांकि उनके मंत्रिमंडल के साथियों को मंच पर स्थान नहीं मिल पाया और वे भीड़ का हिस्सा बन कर रह गए। टिकैत के भाषण की भाषा और शैली ऐसी थी, जिसमें व्यंग्य और तिरस्कार दोनों शामिल थे। वीर बहादुर सिंह इतने कुपित हुए कि बिना आश्वासन दिए ही वापस लौट गए और टिकैत को और भी क्रोधित कर आए। इसके बाद 27 जनवरी 1988 को मेरठ कमिश्नरी के घेराव की घोषणा हुई। इसमें 5 लाख से अधिक संख्या में किसान शामिल हुए। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मंत्रिमंडलीय सहयोगी राजेश पायलट उनके दूत के रूप में मेरठ जाकर सभी मांगों पर अपनी सहमति जताकर ही वापस आ पाए।