पंजाबः अकाली दल और बसपा के बीच गठबंधन, मिलकर लड़ेंगे 2022 का चुनाव

Update: 2021-06-12 07:19 GMT

पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर शिरोमणि अकाली दल (SAD) और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) के बीच आज शनिवार को चुनावी गठबंधन हो गया है. अकाली दल के नेता सुखबीर बादल ने अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन की घोषणा करते हुए कहा कि पंजाब में हम मिलकर विधान सभा चुनाव लड़ेंगे.

सुखबीर सिंह बादल ने गठबंधन का ऐलान करते हुए कहा कि यह पंजाब की राजनीति में एक नया दिन है. शिरोमणि अकाली दल (SAD) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) अगले साल होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव और भविष्य में होने वाले चुनाव एक साथ लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि 117 सीटों में से बसपा 20 सीटों पर जबकि अकाली दल शेष 97 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
इस अवसर पर बसपा सांसद सतीश मिश्रा ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन किया गया है, जो पंजाब की सबसे बड़ी पार्टी है. 1996 में बसपा और अकाली दल दोनों ने संयुक्त रूप से लोकसभा चुनाव लड़ा और 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार नहीं गठबंधन टूटेगा.
अगले साल कई अन्य राज्यों के साथ पंजाब में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछले साल 3 केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर अकाली दल ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था और एनडीए से भी अलग हो गया था. इस बिखराव के बाद राज्य में यह नया चुनावी समीकरण है.
दोनों दलों के बीच गठबंधन की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. बीएसपी और एसएडी के बीच गठबंधन की घोषणा करने के लिए बसपा के महासचिव सतीश मिश्रा पहले ही ही चंडीगढ़ पहुंच गए थे. अकाली दल नेता सुखबीर बादल और सतीश मिश्रा ने गठबंधन का ऐलान किया.
अकाली दल नेता सुखबीर बादल ने कहा कि पंजाब में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. राज्य को कांग्रेस से मुक्त बनाना है.
पंजाब में करीब 33% दलित वोट हैं और अहम माने जा रहे दलित वोट बैंक पर अकाली दल की नजर है. अकाली दल बीएसपी के सहारे इस दलित वोट बैंक को हासिल कर एक बार फिर से सत्ता में आने की कोशिशों में जुटी है. अकाली दल ने दलित वोट बैंक को लुभाने को लेकर पहले ही ऐलान कर दिया है कि अगर प्रदेश में अकाली दल की सरकार बनती है तो उपमुख्यमंत्री दलित वर्ग से बनाया जाएगा.
बहुजन समाज पार्टी पंजाब में पिछले 25 सालों से विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव लड़ती रही है लेकिन पार्टी को राज्य में कभी बड़ी जीत हासिल नहीं हुई. इसके बावजूद, फिर भी वह दलित वोट बैंक को प्रभावित करती हैं. 


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