अहमदाबाद फ्लाईओवर नुकसान के मामले में नहीं मिली निजी फर्म निदेशकों को अदालत से जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक निजी फर्म के निदेशकों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। उन्हें अहमदाबाद में एक फ्लाईओवर के निर्माण के संबंध में दर्ज मामले में आरोपी बनाया गया है। इस फ्लाईओवर के निर्माण में कथित रूप से खराब गुणवत्ता की सामग्री का इस्तेमाल किया गया था, जिसके कारण नुकसान के चलते इसे सार्वजनिक उपयोग के लिए बंद कर दिया गया था।
शीर्ष कोर्ट हाटकेश्वर में एक बस टर्मिनल के पास फ्लाईओवर का निर्माण करने वाली कंपनी के चार निदेशकों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में गुजरात हाईकोर्ट के इस महीने पारित उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अग्रिम जमानत की मांग करने वाली उनकी अर्जियों को खारिज कर दिया गया।
जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की अवकाशकालीन पीठ ने कहा, ''यह अग्रिम जमानत का मामला नहीं है।'' उन्होंने कहा, ''चार साल के भीतर आपका पुल ढहने वाला है। क्षमा करें।" इस मामले में अप्रैल 2023 में भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात के लिए सजा) और 420 (धोखाधड़ी) सहित विभिन्न धाराओं के तहत दंडनीय कथित अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, फर्म ने फ्लाईओवर के निर्माण के लिए निविदा प्राप्त की थी और कथित तौर पर खराब गुणवत्ता वाली सामग्री का इस्तेमाल किया था, जिससे इसे गंभीर नुकसान हुआ है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि फ्लाईओवर को 2017 में इस्तेमाल के लिए चालू किया गया था, और चार-पांच वर्षों की अवधि के भीतर नुकसान के कारण इसे जनता के लिए बंद करने की आवश्यकता थी। इन निदेशकों ने हाईकोर्ट के सामने दलील दी थी कि फ्लाईओवर का डिजाइन मल्टी एक्सल हैवी लोड वाहनों के चलने का समर्थन नहीं करता है। उन्होंने बताया कि करीब तीन साल तक ऐसे वाहनों के इस्तेमाल से नुकसान हुआ है।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पुल नवंबर 2017 में पूरा हो गया था। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने पुल पर बहुत भारी यातायात की अनुमति दी, और मल्टी एक्सल भारी वाहनों के चलने के कारण फ्लाईओवर का सुपर स्ट्रक्चर क्षतिग्रस्त हो गया।
उन्होंने कहा, 'मैं (कंपनी के निदेशक) अग्रिम जमानत का अनुरोध कर रहा हूं। किसी की जान नहीं गई है, कुछ नहीं हुआ है। मेरे काम की देयता अवधि भी समाप्त हो गई है। अगर वे चाहें तो मैं अभी भी इसकी मरम्मत करने के लिए तैयार हूं, कोई समस्या नहीं है। मेरी ओर से कोई गलती नहीं है।" उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है।
दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह अग्रिम जमानत देने की इच्छुक नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि प्राथमिकी पर गौर करने के बाद ऐसा लगता है कि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों ने ढांचे का विस्तृत ऑडिट किया था और उन्होंने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें कहा गया था कि निर्माण के लिए इस्तेमाल किए गए कंक्रीट की गुणवत्ता संदिग्ध है।