चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के सलाहकार पद से इस्तीफा दिया. किशोर ने पंजाब से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रधान सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है. प्रशांत किशोर ने अमरिंदर को लिखे खत में कहा कि मैं सार्वजनिक जीवन में सक्रिय राजनीति से अस्थायी तौर पर ब्रेक चाहता हूं. इसलिए मैं आपके प्रधान सलाहकार पद की जिम्मेदारी नहीं उठा सकता. भविष्य में मुझे क्या करना है यह मुझे अभी तय करना बाकी है. इसलिए मैं आपसे दरख्वास्त करता हूं कि मुझे इस पद से मुक्त कर दिया जाए. प्रशांत किशोर ने कहा कि मुझे इस पद के लिए चुनने के लिए आपका शुक्रिया.
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस ऊहापोह की स्थिति में हैं। पार्टी नेतृत्व इस बारे में सभी से चर्चा कर रहा है। पर पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहते। ज्यादातर पार्टी नेताओं का मानना है कि प्रशांत किशोर को फौरन कांग्रेस में शामिल किया जाना चाहिए। ताकि, उनकी विशेषज्ञता का फायदा मिल सके।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव बहुत दूर नहीं है। प्रशांत किशोर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ जुड़े हुए हैं। पर पंजाब के साथ उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस जीत सकती है। प्रशांत पार्टी के साथ जुड़ते हैं, तो इन सभी राज्यों में जीत की संभावना बढ़ जाएगी।
वर्ष 2022 के आखिर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी चुनाव हैं। गुजरात राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सौ सीटें पार करने का मौका नहीं दिया था। पर अब और तब में फर्क है। पिछले साढे़ चार साल में पार्टी में गुटबाजी बढ़ी है। कई विधायक कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं।
ऐसे में कांग्रेस को गुजरात चुनाव के लिए नए सिरे से रणनीति बनाने की जरूरत होगी। गुजरात कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी को देर नहीं करनी चाहिए। संगठन की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में प्रशांत किशोर को पार्टी में शामिल कर फौरन उनकी सलाह पर अमल किया जाए। ताकि, पार्टी चुनाव में बेहतर प्रर्दशन कर पाए।
राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आंतरिक कलह चरम पर है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस अपनी सरकार खुद गंवा चुकी है। पार्टी नेताओं का कहना है कि लगातार कई चुनाव हारने के बाद भी प्रशांत कांग्रेस का हाथ थामना चाहते हैं, तो इसे एक सकारात्मक संकेत के तौर पर लेना चाहिए।