पुरुषों के लिए बड़ा खतरा है पॉल्यूशन, प्राइवेट पार्ट पर पड़ रहा असर

स्टडी में दावा

Update: 2021-03-26 14:17 GMT

इंसानों के लिए बड़ा खतरा महामारी तो है ही, लेकिन उससे ज्यादा घातक प्रदूषण है. एक नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि प्रदूषण की वजह से इंसानों के लिंग छोटे हो रहे हैं. सिकुड़ रहे हैं. न्यूयॉर्क स्थित माउंट सिनाई हॉस्पिटल की स्टडी के मुताबिक पॉल्यूशन का स्तर बढ़ने की वजह से पुरुषों के लिंग का आकार छोटा होता जा रहा है. बच्चे विकृत जननांगों के साथ पैदा हो रहे हैं. आइए जानते हैं इस हैरान कर देने वाली स्टडी में और क्या खुलासा किया गया है?  प्रदूषण की वजह से साल 2019 में भारत में 17 लाख लोगों की मौत हुई थी. जबकि, हर साल दुनिया में 42 लाख लोग मारे जाते हैं. अगर प्रदूषण का स्तर ऐसे ही बढ़ता रहा तो मानव जाति के लिए कई नए खतरनाक बदलाव होंगे. माउंट सिनाई हॉस्पिटल (Mount Sinai Hospital) में एनवॉयरॉनमेंटल मेडिसिन और पब्लिक हेल्थ की प्रोफेसर डॉ. शान्ना स्वान (Dr. Shanna Swan) के मुताबिक सिर्फ लिंग का आकार ही छोटा नहीं हो रहा है. बल्कि इंसान की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ रहा है. 

डॉ. स्वान ने कहा कि ये इंसानों के लिए अस्तित्व संबंधी संकट है. उन्होंने बताया कि स्टडी में एक ऐसे खतरनाक रसायन की पहचान हुई है जो इंसानों की प्रजनन क्षमता को कम कर रहा है. साथ ही इसकी वजह से लिंग छोटे और सिकुड़ रहे हैं. बच्चे विकृत जननांगों (Malformed Genitals) के साथ पैदा हो रहे हैं. प्रदूषण को लेकर डॉ. स्वान ने पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) को ट्वीट भी किया है. इसमें उन्होंने कहा है कि प्रदूषण के मामले में मैं ग्रेटा के साथ हूं.  इस रसायन का नाम है फैथेलेट्स (Phthalates). इस केमिकल का उपयोग प्लास्टिक बनाने के लिए होता है. इसकी वजह से इंसान के एंडोक्राइन सिस्टम (Endocrine System) पर पड़ता है. इंसानों में हॉर्मोंस के स्राव एंडोक्राइन सिस्टम के जरिए ही होता है. प्रजनन संबंधी हॉर्मोंस का स्राव भी इसी सिस्टम से होता है. साथ ही जननांगों को विकसित करने वाले हॉर्मोंस भी इसी सिस्टम के निर्देश पर निकलते हैं. (फोटोःगेटी)

स्काई न्यूज के मुताबिक डॉ. स्वान ने बताया कि प्रदूषण की वजह से पिछले कुछ सालों में जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनके लिंग का आकार छोटा हो रहा है. उन्हों इस मुद्दे पर एक किताब लिखी है. जिसका नाम है काउंट डाउन (Count Down). किताब में आधुनिक दुनिया में पुरुषों के घटते स्पर्म, महिलाओं और पुरुषों के जननांगों में आ रहे विकास संबंधी बदलाव और इंसानी नस्ल के खत्म होने की बात कही गई है. डॉ. स्वान ने फैथेलेट्स सिंड्रोम की जांच सबसे पहले तब शुरू की जब उन्हें नर चूहों के लिंग में अंतर दिखाई दिया. उन्हें दिखाई दिया सिर्फ लिंग ही नहीं मादा चूहों के भ्रूण पर भी असर पड़ रहा है. उनके प्रजनन अंग छोटे होते जा रहे हैं. तब उन्होंने फैसला किया कि वो इंसानों पर अध्ययन करेंगी. 

अध्ययन के दौरान उन्हें पता चला कि इंसानों के बच्चों में भी ये दिक्कत आ रही है. उनके जननांग छोटे और विकृत हो रहे हैं. एनोजेनाइटल डिस्टेंस कम हो रहा है. यह लिंग के वॉल्यूम से संबंधित समस्या है. फैथेलेट्स रसायन का उपयोग प्लास्टिक बनाने के काम आता है. ये रसायन इसके बाद खिलौनों और खाने के जरिए इंसानों के शरीर में पहुंच रहा है.  फैथेलेट्स (Phthalates) शरीर के अंदर एस्ट्रोजेन (Oestrogen) हॉर्मोन की नकल करता है. उसके बाद शरीर के अंदर शारीरिक विकास संबंधी हॉर्मोन्स की दर को प्रभावित करता है. इसी वजह से शरीर के ये जरूरी अंग बिगड़ते जा रहे हैं. 

इससे पहले साल 2017 में एक स्टडी आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि पश्चिमी देशों में पुरुषों के स्पर्म काउंट में 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. पिछले चार दशकों में इस तरह की 185 स्टडीज हुई हैं. जिनमें 45,000 स्वस्थ पुरुषों को शामिल किया गया था. उनके स्पर्म काउंट में हर दशक के बाद कमी दर्ज की गई.  डॉ. स्वान कहती हैं कि अगर इसी तरह प्रजनन दर कम होता रहा तो दुनिया में मौजूद ज्यादा पुरुष साल 2045 तक पर्याप्त स्पर्म काउंट पैदा करने की क्षमता खो देंगे. यानी नंपुसकता की ओर बढ़ जाएंगे. 


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