लाउडस्पीकर पर सियासत जारी, 3 मई तक धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का अल्टीमेटम
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महाराष्ट्र में धार्मिक स्थलों पर पर लगे लाउडस्पीकर को उतारने की सियासत जारी है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना चीफ राज ठाकरे ने 3 मई तक धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने का अल्टीमेटम दिया है। दूसरी ओर राज्य सरकार अब लाउडस्पीकर लगाने को लेकर कड़ी गाइडलाइन ला रही है। इस विवाद के बीच नांदेड़ जिले की एक ग्राम पंचायत ने मिसाल पेश करते हुए अपने यहां बने सभी मंदिर, मस्जिद और जैन मंदिर पर लगे लाउडस्पीकर हटाने का निर्णय पांच साल पहले ही ले लिया था।
हम बात कर रहे हैं नांदेड़ की बारड़ गांव के बारे में। यह जिले की सबसे बड़ी और आर्थिक रूप से सबसे संपन्न ग्राम पंचायत है। मुख्य शहर से इसकी दूरी तकरीबन 30 किलोमीटर है और यहां लोग केले, गन्ने और फूलों की खेती करते हैं।
गांव के बीच में मौजूद है यह जैन मंदिर।
सभी धर्मों के लोगों से विचार के बाद पांच साल पहले यहां धार्मिक स्थलों और धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर इस्तेमाल नहीं करने का फैसला लिया गया था। पांच साल बाद भी लोग कड़ाई से इसका पालन कर रहे हैं। उनका कहना है कि लाउडस्पीकर से सबसे ज्यादा दिक्कत बच्चों और बुजुर्गों को हो रही है। इस परेशानी को खत्म करने के लिए सभी धर्मों से जुड़े लोग आगे आये और सर्वसम्मति से पांच साल पहले लाउडस्पीकर बैन का निर्णय लिया गया। सिर्फ मंदिर, मस्जिद में ही नहीं धार्मिक आयोजनों में भी यहां स्पीकर नहीं लगाया जाता है।
गांव में एक जामा मस्जिद है समेत 16 धार्मिक स्थल हैं।
प्रसिद्ध शीतला माता के मंदिर में भी नहीं है लाउडस्पीकर
तकरीबन 20 हजार की आबादी वाले इस गांव में हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध और जैन धर्म के लोग कई सालों से मिलजुल कर रह रहे हैं। गांव में करीब 12 हिंदू मंदिर हैं। इनमें शीतला माता का मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। भक्तों का मानना है कि यह एक जागृत मंदिर है। इसी श्रद्धा के साथ, मराठवाड़ा सहित,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के भक्त जो महाराष्ट्र की सीमा पर हैं, हर साल बड़ी संख्या में यहां आते हैं। इसके बावजूद मंदिर में कोई लाउडस्पीकर नहीं लगा है। मंदिर में होने वाली आरती भी बहुत धीमी आवाज में की जाती है।
मस्जिदों में भी अजान के दौरान आवाज न के बराबर होती है।
राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षिक कार्यक्रमों में भी लाउडस्पीकर बैन
गांव में एक मस्जिद, दो बौध मठ और एक जैन मंदिर सहित 16 धार्मिक स्थल हों। सभी पर अब कोई लाउडस्पीकर या शोर नहीं होता है। इतना ही नहीं, गांव की शादियों, धार्मिक समारोहों, राजनीतिक सभाओं, शोभायात्रा, गणेश विसर्जन और दुर्गापूजा पर भी लाउडस्पीकर नहीं लगता है। इतना ही नहीं किसी शैक्षिक या सामाजिक कार्यक्रमों में भी लाउडस्पीकरों का उपयोग नहीं किया जाता है।
धार्मिक स्थलों से उतारे गए लाउडस्पीकर ग्रामपंचायत के स्टोर रूम में पड़े हुए हैं।
पहले लाउडस्पीकर की वजह से गांव में हुईं कई लड़ाइयां
सघन बसे हुए इस गांव में फूलों की खेती लगभग हर घर में होती है। यहां से निकलने वाले फूल सिर्फ नांदेड़ ही नहीं आसपास के जिलो में सप्लाई होते हैं। गांव में दो कॉलेज, चार स्कूल, एक सरकारी अस्पताल, एक डिस्पेंसरी मौजूद हैं। यहां कहा जाता है कि एम्बुलेंस भी बिना आवाज के चलती है। इस निर्णय को कड़ाई से लागू करवाने वालों में तात्कालीन सरपंच बालासाहेब देशमुख का बहुत बड़ा हाथ रहा है। उन्होंने बताया कि लाउडस्पीकर की वजह से कई बार गांव में लड़ाई हुई और बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों को दिक्कत हो रही थी, इसलिए हमने यह निर्णय लिया और इसे आज तक लागू रखा है।