PM CARES फंड: पीएम केयर्स फंड में वित्त वर्ष 2020-21 में तीन गुना बढ़त, खर्च केवल एक तिहाई
नई दिल्ली: कोरोना महामारी (Covid-19) जैसी आपात स्थिति से निपटने के लिए बनाए गए प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (PM-CARES Fund) में वित्त वर्ष 2020-21 में करीब तीन गुना वृद्धि हुई और इस कोष में राशि बढ़कर 10,990 करोड़ रुपये हो गई है, जबकि इस निधि से व्यय की रकम बढ़कर 3,976 करोड़ रुपये यानी 36.17% हो गई है. यह जानकारी इससे जुड़ी वेबसाइट (Website) की ओर से दी गई है.
इस कोष की स्थापना कोरोना प्रकोप जैसी आपात स्थितियों (प्राकृतिक आपदाओं से परे) के लिए दान एकत्र करने के मकसद से की गई थी. प्रधानमंत्री इस कोष के पदेन अध्यक्ष हैं, और सभी तरह के योगदान आयकर से पूरी तरह मुक्त हैं. दी गई जानकारी से पता चलता है कि अपने संचालन के पहले वर्ष में 7,014 करोड़ रुपये अप्रयुक्त धन के रूप में बचे हुए हैं.
वैक्सीन खरीद में फंड से खर्च हुए 14 सौ करोड़
व्यय में प्रवासी कल्याण के लिए 1,000 करोड़ रुपये और कोविड वैक्सीन की खरीद के लिए 1,392 करोड़ रुपये से अधिक की रकम भी शामिल है. वित्त वर्ष (2020-21) के दौरान फंड में करीब 494.91 करोड़ रुपये विदेशी चंदे के रूप में और 7,183 करोड़ रुपये से अधिक स्वैच्छिक अंशदान के रूप में आए.
जबकि इससे पहले वाले वित्तीय वर्ष (2019-20) के दौरान फंड में कुल 3,076.62 करोड़ रुपये का चंदा हासिल हुआ था, जो 27 मार्च 2020 को इस कोष के गठन के महज पांच दिनों के अंदर एकत्र हुआ था. पीएम केयर फंड को 2.25 लाख रुपये की शुरुआती राशि के साथ बनाया गया था.
प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड) की वेबसाइट पर पोस्ट किए गए ब्योरे के मुताबिक, इसमें 'केवल लोगों/संगठनों के स्वैच्छिक अंशदान शामिल हैं और कोई बजटीय सहयोग नहीं मिला है.'
कोर्ट में फंड को RTI के तहत लाने की मांग
सरकार ने निधि का एक हिस्सा वेंटिलेटर सहित मेडिकल उपकरण खरीदने, कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने और प्रवासियों को राहत मुहैया करने में भी किया है. हालांकि, विपक्षी दलों ने पीएम केयर्स फंड की आलोचना करते हुए दावा किया कि इसके अंशदान और व्यय पारदर्शी नहीं हैं. दूसरी ओर, सरकार ने इस आरोप से इनकार किया है.
वकील सम्यक गंगवाल की ओर से दाखिल एक याचिका में पीएम केयर्स फंड को संविधान के तहत एक "राज्य" घोषित करने की मांग की गई है ताकि इसके कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके. साथ ही उनकी अन्य याचिका में मांग की गई है कि पीएम केयर्स को "सार्वजनिक प्राधिकरण" के रूप में आरटीआई के तहत लाया जाए.
पिछले साल 23 सितंबर को, केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि पीएम-केयर्स फंड को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में नहीं लाया जा सकता क्योंकि यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, और न ही इसे राज्य के निकाय के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है. केंद्र ने 14 सितंबर, 2020 को सौंपे गए अपने हलफनामे में कहा, "… कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के दायरे में 'सार्वजनिक प्राधिकरण' नहीं है और इसलिए वर्तमान याचिका खारिज किए जाने योग्य है." इसमें कहा गया है कि ट्रस्ट के कामकाज में किसी भी तरह से केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई नियंत्रण नहीं है. मामला कोर्ट में विचाराधीन है.
स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने पर हुआ खर्च
नए लेखा परीक्षण बयान के मुताबिक इससे सरकारी अस्पतालों में 50,000 'मेड-इन इंडिया' वेंटिलेटर की खरीद के लिए 1,311 करोड़ रुपये, 50 करोड़ रुपये (बिहार के) मुजफ्फरपुर और पटना में 500 बिस्तरों वाले दो अस्पताल, और नौ राज्यों में 16 आरटी-पीसीआर जांच प्रयोगशाला स्थापित करने में व्यय किए गए. इसके अलावा 201.58 करोड़ रुपये जन स्वास्थ्य संस्थानों में ऑक्सीजन संयंत्र पर, जबकि 20.4 करोड़ रुपये कोविड टीके पर काम कर रही प्रयोगशालाओं के उन्नयन के लिए व्यय किया गया.
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रवासियों के कल्याण के लिए 1,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जबकि कोविड टीके की 6.6 करोड़ खुराक की खरीद के लिए 1,392.82 करोड़ रुपये व्यय किए गए. वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान कुल 10,990.17 करोड़ रुपये प्राप्त हुए.