जान से खिलवाड़! गैंग 10 रुपये का इंजेक्शन एक लाख में बेचता, फिर...चौंकाने वाला खुलासा

आरोपी अस्पताल में इस्तेमाल हो चुकी दवा की खाली शीशी तीन से पांच हजार में, जबकि भरी हुई शीशी चोरी कर 40 से 50 हजार रुपये में गिरोह को देते थे।

Update: 2024-07-17 02:56 GMT
नई दिल्ली: कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवा के नकली इंजेक्शन बनाकर बेचने वालों के खिलाफ अपराध शाखा ने 11 हजार से ज्यादा पन्नों का आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। आरोपपत्र में बताया गया है कि किस तरह आधा दर्जन अस्पतालों के कर्मचारी इस रैकेट में शामिल थे। यह गैंग 10 रुपये की फंगल इंफेक्शन की दवा भरकर इसे बाजार में एक लाख रुपये में बेचता था। इतना ही नहीं, आरोपी अस्पताल में इस्तेमाल हो चुकी दवा की खाली शीशी तीन से पांच हजार में, जबकि भरी हुई शीशी चोरी कर 40 से 50 हजार रुपये में गिरोह को देते थे।
जानकारी के अनुसार, गत मार्च में अपराध शाखा ने मोती नगर स्थित डीएलएफ फ्लैट से कैंसर की नकली दवा तैयार करने वाले गिरोह को पकड़ा था। इस मामले में सरगना समेत 12 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें मुख्य सरगना विफिल जैन है। सूरज उसके लिए नकली दवा तैयार करता था। खाली शीशी लाने और दवा बेचने का काम नीरज चौहान और तुषार चौहान संभालता था। इस रैकैट में आधा दर्जन अस्पतालों के कर्मचारी परवेज, कोमल तिवारी, अभिनय, रोहित सिंह, जितेंद्र, माजिद और साजिद को भी गिरफ्तार किया है। यह अस्पताल में इस्तेमाल होने वाली दवा की खाली शीशी और चोरी की गई दवा इस गैंग को बेचते थे।
आरोपपत्र में बताया गया है कि कैंसर की नकली दवा बनाने के लिए आरोपियों को असली दवा की खाली शीशी चाहिए थी ताकि किसी को शक न हो। इसके लिए उन्होंने विभिन्न अस्पतालों के कैंसर वार्ड में काम करने वाले कर्मचारियों को गिरोह का हिस्सा बनाया। खाली शीशी में आरोपी फंगल इंफेक्शन रोकने वाली दवा भरते थे। एक शीशी में लगभग 10 रुपये की दवा भरी जाती थी। इसके बाद आरोपी उसे बाजार से कम कीमत (90 हजार से लेकर 1.20 लाख तक) पर कैंसर पीड़ित परिवार को बेच देते थे। इसके लिए उन्होंने इंडिया मार्ट पर खुद को पंजीकृत करवा रखा था। वहां से ऑर्डर मिलने पर वह कूरियर के माध्यम से लोगों को यह दवा बेच देते थे।
आरोपपत्र में उन आठ लोगों का बयान शामिल किया गया है, जिन्होंने इन जालसाजों से नकली दवा अपने परिवार के सदस्यों के लिए खरीदी थी। इनमें से एक शख्स की पत्नी ने दवा लेने के कुछ दिन बाद ही दम तोड़ दिया था। बिहार के मधुबनी निवासी मनीष ने पुलिस को बताया है कि उनकी पत्नी को मुंह और फेफड़े का कैंसर था। डॉक्टर ने उन्हें किट्रूटा इंजेक्शन लाने को कहा। इंडियामार्ट के माध्यम से वह लवी नरूला के संपर्क में आए। उन्होंने 90 हजार रुपये प्रति इंजेक्शन के हिसाब से अप्रैल 2022 और अगस्त 2022 में चार इंजेक्शन खरीदे, लेकिन जब इसका इस्तेमाल किया तो पत्नी की हालत बिगड़ने लगी और 11 सितंबर 2022 को उसकी मौत हो गई।
पश्चिम बंगाल की रहने वाली युवती ने भी लीवर कैंसर से पीड़ित अपने पिता के उपचार के लिए इस गैंग से 1.20 लाख रुपये में 24 इंजेक्शन खरीदे थे। इसी तरह किसी ने अपनी दादी तो किसी ने अपनी मां के लिए आरोपियों से यह दवा लाखों रुपये में खरीदी, लेकिन उन्हें पता नहीं चला कि यह दवा नकली है।
आरोपी नीरज चौहान गुड़गांव का रहने वाला है। वह पारस हॉस्पिटल में मैनेजर था और लंबे समय तक अलग-अलग अस्पतालों में काम कर चुका है। इसलिइए विभिन्न अस्पतालों के कर्मचारियों को वह जानता है। प्रवेश राजीव गांधी कैंसर इंस्टिट्यूट में 2022 तक काम करता था। कोमल तिवारी और अभिनय राजीव गांधी कैंसर इंस्टिट्यूट में कार्यरत है। रोहित सिंह बिष्ट वेंकटेश्वर हॉस्पिटल में कार्यरत था। जितेंद्र गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में कार्यरत था। आरोपी माजिद और साजिद गुरुग्राम के मिलेनियम हॉस्पिटल में कार्यरत थे।

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