गुजरात। पलाना गांव में ग्रामीणों ने पारंपरिक तरीके से जलते अंगारों पर चलकर 'होलिका दहन' मनाया।
वही पाल गांव के लोग भी चर्चा में
गजरौला क्षेत्र का गांव पाल के ग्रामीण अपनी परंपरा को जिंदा रखे हुए हैं। गांव में होली आज भी परंपरागत तरीके से मनाई जाती है। होली पर बम (बड़ा नगाड़ा) की थाप के साथ गाए जाने वाले गीतों और फाग की गूंज आस पास के गांवाें तक जाती है। बम की थाप की आवाज कानों में आते ही पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती है। गांव में शोक एकादशी से बम बजाना शुरू हो जाता है। आधुनिकता के दौर में जहां त्योहार मनाने का तरीका बदल गया है। लोग औपचारिकता ही निभा रहे हैं, वहीं नगर से करीब चार किमी उत्तर-पश्चिम में बसे पाल गांव के ग्रामीणों ने अपनी परंपरा को सहेज कर रखा है। गांव में होली बजाने के लिए एक सार्वजनिक बम है। जिसे दशकों पूर्व ग्रामीणों ने चंदा एकत्र करके खरीदा था।
बम बजाने वाले ग्रामीणों का कहना है कि शोक एकादशी से इस यंत्र को बजाने का क्रम शुरू हो जाता है। बम को ट्रैक्टर ट्राली या बुग्गी में रखकर पूरे गांव में घुमाया जाता है। उसके साथ होली गाने वाली टोली चारों तरफ घूम कर होली के गीत व फाग गाती है।
ग्रामीण बताते हैं कि बीती होली के बाद जिस घर में किसी की मौत हो जाती है, उसके घर या बैठक पर जाकर बम बजाते हुए होली के शोक गीत गाते हैं। जिसके बाद उस शोक संतृप्त परिवार के सदस्य अन्य खुशी के कार्यों में शामिल होते हैं। ग्राम प्रधान पति वीर सिंह भगत कहते हैं कि अपनी परंपरा को जिंदा रखने के लिए ही गांव में मिलकर बम बजाई जाती है। गांव की युवा पीढ़ी को भी होली पर बम बजाने का बेसब्री से इंतजार रहता है। बुधवार को शोक एकादशी पर पूरे दिन बम बजाई जाएगी। इसके बाद से शाम को रोजाना ग्रामीण बम पर होली की तैयारी करेंगे।