ब्रिटिश अधिकारियों की सदियों पुरानी कब्र खोद रहे लोग, अब तक 200 कब्रों को किया नष्ट, कीमती सामानों की तलाश या कुछ और?
पढ़े पूरी खबर
पटना: अंग्रेज अपनी कब्रों में ही विलुप्त होने के कगार पर हैं। बिहार के पूर्णिया जिले के ग्रामीण कीमती सामान की उम्मीद में ब्रिटिश अधिकारियों और उनके परिवार के सदस्यों की सदियों पुरानी कब्र खोद रहे हैं। हालांकि, किसी ग्रामीण के हाथ अभी तक कोई कीमती सामान तो नहीं लगा है लेकिन शहरभर के चार कब्रिस्तानों में स्थित अधिकांश कब्रें नष्ट हो गई हैं।
पूर्णिया शहर में स्थित 250 से अधिक कब्रों में से करीब 200 को नष्ट कर दिया गया है। अंग्रेजों के 200 साल तक यहां रहने के दौरान मरने के बाद इन्हीं कब्रों में दफनाया गया था। अधिकांश अंग्रेजों की कब्रों को या तो पूरी तरह खोद दिया गया है या जिला प्रशासन की नाक के नीचे ही उसे क्षतिग्रस्त कर दिया गया है। आज की तारीख में कुछ दर्जन ही ऐसी कब्रें हैं जो सुरक्षित हैं।
इन कब्रिस्तानों की देखभाल करने वालों के अनुसार लोगों में यह धारणा है कि ब्रिटिश अधिकारियों और उनके परिजनों की कब्रों में सोने, हीरे और अन्य कीमती पत्थरों से बने गहने हो सकते हैं। पुराने समय में कई बार इस तरह की अफवाहें फैली थीं कि कीमती सामग्री और विलासिता की अन्य वस्तुओं को मृतकों के साथ दफनाया जाता था। कब्रिस्तान करीब 6.50 एकड़ जमीन में फैला हुआ है। ऐसे में हर जगह हर तरफ नजर रखना भी मुश्किल है। पहले कभी-कभार कब्रों को खोदने आदि की खबरें आती थीं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में इन घटनाओं में अचानक तेजी आई है।
1770 से 1947 के बीच तैनात रहे अंग्रेज अफसरों और उनके परिजनों को मृत्यु के बाद यहां की चार कब्रिस्तानों में दफनाया गया। जेराड गुस्तावस डुकारेल के पहले कलेक्टर बनने के साथ ही 1770 में पूर्णिया पूर्ण जिला बन गया था। इसके बाद अंग्रेजों ने यहां बड़े बंगले बनाने लगे और परिवारों के साथ रहने लगे थे।
पूर्णिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता प्रोफेसर नरेश कुमार श्रीवास्तव के अनुसार कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों सहित 200 से अधिक अंग्रेजों को यहां के चारों कब्रिस्तानों में दफनाया गया था। इनमें दो-दो कब्रिस्तान कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के लिए थे। यहां के कब्रों पर लगे शिलालेखों में इनके बारे में कई बातें प्रकाशित भी हैं।
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि हमें पूर्णिया के पहले सिविल सर्जन डॉ डेविड पिकाची की कब्र पर गर्व होना चाहिए, जो अपने कार्यकाल के दौरान बीमार लोगों की निस्वार्थ सेवा के लिए जाने जाते थे। उनका जन्म नवंबर 1828 और निधन 16 जनवरी 1911 को हुआ। उनकी कब्रगाह पर सफेद और काले संगमरमर के स्लैब पर इससे बारे में लिखा भी गया था। दुख की बात यह है कि इन शिलालेखों को अब घरों में स्नानागार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
बड़े जमींदार अलेक्जेंडर फोर्ब्स जिनके नाम के बाद फोर्ब्सगंज शहर (अब अररिया) का नाम पड़ा था। पुराने पूर्णिया जिले में ही उनको दफनाया गया था। बाद में सबसे पुराने सरकारी गर्ल्स हाई स्कूल को पूर्णिया शहर क्षेत्र में उनके भवन में शुरू किया गया। उसे 'फोर्ब्स मेंशन' के नाम से जाना जाता है। अलेक्जेंडर फोर्ब्स और उनकी पत्नी डायना की मृत्यु 1890 में मलेरिया से हुई थी।
इसी तरह, पूर्णिया कॉलेज की स्थापना 1948 में पुराने पूर्णिया के सबसे बड़े जमींदारों में से एक हेस के घर से हुई थी। हेस की एक भारतीय पत्नी थी और चर्च के साथ कुछ मतभेदों के कारण उन्होंने अपने परिवार के लिए अपना खुद का कब्रिस्तान बनवाया था। आज भी कुछ अंग्रेज अक्सर अपने पूर्वजों की कब्रों की तलाश में यहां आते हैं।
यहां दफन किए गए कुछ प्रमुख व्यक्तियों में लेफ्टिनेंट अलेक्जेंडर मैक वीघ (99), एमईएस स्टील एक प्रख्यात सर्जन भी थे। जो अपनी करुणा और विनम्रता और शिष्टाचार की सादगी के लिए जाने जाते थे। उन्हें यहां 1794 में दफनाया गया था।
कैप्टन बेंजामिन ब्लेक देश की समुद्री सेवा के कमांडर थे। उनकी मृत्यु 1820 में 65 वर्ष की आयु में हुई थी। एक अच्छे पिता और पति के रूप में भी वह जाने जाते थे और कई भारतीयों के लिए शानदार मित्र कहे जाते थे, उनको भी यहां दफन किया गया था। यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों की यहां समाधि भी बनाई गई है।
जमीन हथियाने वालों और नशा करने वालों की भूमिका
जब हिन्दुस्तान टीम ने कब्रों का दौरा किया तो युवाओं का एक समूह ड्रग्स लेते दिखाई दिया। वे हमें देखकर भागे नहीं बल्कि यह बताने की कोशिश की कि ड्रग्स लेने के लिए उन्हें कब्रिस्तान जैसी शांत जगह काफी पसंद आती है। यह भी कहा कि यह लोग नियमित रूप से इस जगर पर आते हैं।
गहनों या कुछ कीमती सामानों के लिए कब्र खोदने की बातों पर टिप्पणी करते हुए प्रोफेसर श्रीवास्तव ने कहा कि यह एक कारण हो सकता है लेकिन आप इसके पीछे भूमि हथियाने वालों की भूमिका से इंकार नहीं कर सकते।
उन्होंने आरोप लगाया कि जमीन हड़पने के लिए भी इस तरह की हरकतें की गईं और गहनों या कीमती सामानों के बारे में अफवाहें उड़ाई गईं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह के लोग अब भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। आस-पास रहने वाले लोगों ने कहा कि नशा करने वालों ने भी कब्रिस्तानों को नुकसान पहुंचाया है। संगमरमर के टुकड़े ले लिए और उन्हें ले जाकर बेच दिया।
एंग्लिकन चर्च के फादर जैकब ने अपने पूर्वजों की कब्रों को अपवित्र करने और तोड़फोड़ करने पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हमने कई बार पुलिस और प्रशासन से शिकायत की है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि भारत में केवल मुसलमानों को अल्पसंख्यक माना जाता है। उन्होंने अफसोस जताया कि पुरानी सिविल लाइंस में कब्रिस्तान खत्म हो गया है। वहां की जमीनें लोगों को बेच दी गई है।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह शिकायत लेकर शीर्ष अधिकारियों के पास गए। उन्होंने कहा कि नहीं, हम जानते हैं कि हमें कुछ नहीं मिलने वाला है। इसी तरह, रोमन कैथोलिक चर्च के फादर अनिल लुगुन ने कहा कि यहां कोई शिकायत दर्ज करने का कोई फायदा नहीं है। हम अपने पूर्वजों की कब्रों की रक्षा के लिए जो भी प्रयास कर सकते हैं, कर रहे हैं लेकिन उपद्रवी तत्वों से नहीं लड़ सकते। जो लोग कब्रों में तोड़फोड़ कर रहे हैं, वे नशे के आदी हैं।
इलाके के खज़ांची हाट पुलिस स्टेशन के एसएचओ अनिल कुमार सिंह ने कब्रिस्तानों में किसी तरह की तोड़फोड़ या खोदे जाने को लेकर कोई शिकायत मिलने से इनकार किया। उन्होंने कहा कि किसी ने भी कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है। उन्होंने कहा कि पुलिस मामले को प्रमुखता से देखेगी। उन्होंने कहा कि पुलिस ने कई नशा करने वालों को गिरफ्तार किया है और नशा करने वालों के खिलाफ अभियान जारी रहेगा।
आधुनिक पूर्णिया को आकार देने में अमूल्य योगदान देने वाले अंग्रेजों की दफन स्मृतियों को लुप्त होने से बचाने के लिए प्रो. श्रीवास्तव ने आज के युवाओं को आगे आने की अपील की है। उन्होंने गौरवशाली कृत्यों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर बल दिया। कहा कि यह हमारा मुख्य कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को उनके काम के बारे में सिखाएं।
फादर जैकब ने बताया कि 1908 के भूकर सर्वेक्षण के दौरान, इन सभी कब्रिस्तानों के क्षेत्र को पंजीकृत किया गया और खटियान (भूमि दस्तावेज) तैयार किया गया। वर्षों से न तो सरकार और न ही चर्च इन कब्रिस्तानों की सुरक्षा के लिए कोई प्रभावी कदम उठा सके। हाल ही में प्रशासन ने एक कदम उठाते हुए कला भवन के पास कब्रिस्तान की बाउंड्री कराई है। लेकिन वह भी हमारे पूर्वजों की स्मृति की रक्षा करने में विफल रहा।