दिल्ली में मंगलवार को कोरोना (Corona Virus) के 21 हजार 259 नए मरीज सामने आए. कोरोना की पॉजिटिविटी रेट 25 फीसदी को पार कर गई. 25.65 फीसदी दर्ज की गई. दिल्ली में पिछले साल 5 मई के बाद ये सबसे ज्यादा संक्रमण दर है. दिल्ली में कोरोना से मौत का आंकड़ा भी चिंता बढ़ा रहा है. पिछले 24 घंटे में 23 कोरोना मरीजों की मौत हुई. 16 जून 2021 के बाद एक दिन में मौत की ये सबसे ज्यादा फिगर है. इसका असर ये हुआ कि दिल्ली सरकार ने कुछ और पाबंदियां लगा दीं. दिल्ली में अब सब प्राइवेट दफ्तर बंद रहेंगे. कर्मचारी घर से ही काम करेंगे. वहीं दफ्तर खुलेंगे जो Exempted Category में हैं. यानी एक तरह से दिल्ली लॉकडाउन की तरफ बढ़ने लगी है. दिल्ली के साथ यूपी में भी कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं. बीते 24 घंटे में 11 हजार 89 नए केस सामने आए. गाजियाबाद और नोएडा में 3121 नए मरीज़ सामने आए हैं.
हालांकि मुंबई में केस की संख्या लगातार दूसरे दिन कम हुई है. आज 11 हजार 647 नए कोरोना मरीज़ों का पता चला है. लेकिन पॉजिटिविटी रेट करीब 19 परसेंट है. केरल में एक बार फिर कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ. एक दिन में 9 हजार 66 नए मरीज सामने आए.19 लोगों की मौत हो गई. हरियाणा सरकार ने हालात को देखते हुए एस्मा लागू कर दिया है. अब 6 महीने तक हड़ताल नहीं कर सकेंगे स्वास्थ्य कर्मी.
अलग-अलग एक्सपर्ट्स तीसरी लहर की पीक को लेकर दावे कर रहे हैं. कोई पांच लाख कोई आठ लाख केस रोजाना की बात करता है. लेकिन सवाल है क्या जो आकड़े आ रहे हैं वो भी कोरोना संक्रमण की सही तस्वीर बता रहे हैं या नहीं. क्योंकि पिछले कुछ दिनों में केस तो बढ़े लेकिन टेस्टिंग ने उतनी रफ्तार नहीं पकड़ी. क्या जितना दिख रहा है …कोरोना उतना ही है ? क्या देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सिर्फ 4000+ मरीज़ ही हैं ? क्या हर शख्स कोरोना की जांच के लिए आगे आ रहा है ? देश में जीनोम सीक्वेसिंग और टेस्टिंग के कैसे इंतजाम हैं?
अगर इन सवालों के जवाब ठीक से समझ लेंगे. तो फिर कोरोना के असली खतरे को जानने में उसे पहचानने में आसानी होगी क्योंकि अब तो कोरोना हर घर पर दस्तक दे रहा है. तीसरी लहर शुरू हो चुकी है. हर कोई कोरोना और कोरोना के डर को लेकर चिंता जाहिर कर रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फिर से कोविड को लेकर ज्ञान का आदान प्रदान हो रहा है. लेकिन ये फिक्र आज की तारीख में सबसे बडी इसलिए है क्योंकि पिछले दो हफ्ते में कोरोना जिस स्पीड से बढ़ा है उसी रफ्तार से कोरोना की टेस्टिंग नहीं बढ़ी. उस रफ्तार से केसों की जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं की गई.
27 दिसंबर को देश में कोरोना के 6270 केस मिले थे, उसी दिन ICMR के मुताबिक देश में 11.41 लाख सैंपल्स टेस्ट किए गए थे. 9 जनवरी को कोरोना के मरीजों की संख्या 1 लाख 79 हजार 723 थी लेकिन 9 जनवरी को टेस्ट की संख्या 15.14 लाख थी. यानी 2 हफ्ते में कोरोना संक्रमितों की संख्या 28 गुना बढ़ गई. मगर टेस्टिंग दोगुना भी नहीं बढ पाई.
यूपी में हर लाख की जनसंख्या पर 98 टेस्ट हो रहे हैं. मध्य प्रदेश में लाख की आबादी पर 95 टेस्ट, राजस्थान में प्रति लाख लोगों में 81 टेस्ट जबकि प बंगाल में इतने ही लोगों पर 73 टेस्ट हो रहे हैं. अब अगर टेस्टिंग के इसी फॉर्मूले को पूरी दुनिया से कंपेयर करें..तो भी हालात का सही अंदाजा लगने में मदद मिलेगी पता चल सकेगा कि आखिर आसपास कितने लोग कोरोना लिए घूम रहे हैं..क्योंकि लैब टेस्ट की संख्या तो लिमिटेड ही हैं. ब्रिटेन में प्रति लाख आबादी पर 2200 लोगों की टेस्टिंग हो रही है. इसके चलते केस ज्यादा डिटेक्ट हो रहे हैं इटली में भी एक लाख की आबादी पर 2000 टेस्ट हो रहे हैं. फ्रांस में एक लाख आबादी पर 1800 टेस्ट, अमेरिका में एक लाख की पॉपुलेशन पर 500 टेस्ट हो रहे हैं. भारत में एक लाख आबादी पर ये फिगर सिर्फ 115 है.
इन आंकड़ों का मतलब किसी पर उंगली उठाना..या दोषारोपण करना नहीं है. ये बात सही है कि ICMR ने कोविड के दौर पर शानदार काम किया. पहले सिर्फ पुणे में एक लैब हुआ करती थी लेकिन आज 1000 से ज्यादा लैब डेवलप हो चुकी है. इसी की वजह से इतने टेस्ट भी मुमकिन भी हो पा रहे हैं. ये सबकुछ दो साल के भीतर ही हुआ. लेकिन ये बात भी सही है कि देश की आबादी काफी ज्यादा है.इसलिए वक्त के साथ हेल्थ सिस्टम को थोड़ा और मजबूत करने की दिशा में भी काम निरंतर होना चाहिए.
कुछ ऐसी ही हालत जीनोम सीक्वेंसिंग को लेकर भी है. जीनोम सीक्वेंसिंग से ही पता चलता है कि आखिर कोरोना संक्रमित मरीज़ में कौन सा वैरिएंट है. डेल्टा,अल्फा, बीटा या फिर ओमिक्रॉन. और चूंकि आजकल एक्सपर्ट्स का दावा है कि देश में ओमिक्रॉन की वजह से कोरोना की तीसरी लहर आई है. खुद दिल्ली के हेल्थ मिनिस्टर ऑन रिकॉर्ड कह चुके हैं कि दिल्ली के कुल मामलों में से 80 परसेंट से ज्यादा ओमिक्रॉन मरीज़ हैं. लेकिन जब नंबर्स की बात आती है तो पता चलता है कि अभी देश में कुल मिलाकर 4000+ ओमिक्रॉन मरीज़ ही मिले हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे पास जीनोम सीक्वेंसिंग वाली लैब की भी कमी है. शुरुआत में सिर्फ 10 लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग हो रही थी. जुलाई 2021 तक बढकर देश में 28 लैब्स हो गईं. लेकिन नौ जनवरी 2022 तक ये संख्या सिर्फ 38 तक ही पहुंच पाई. इसीलिए सरकारों को कहना पड़ गया कि सभी पॉजिटिव मरीजों की जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं करवा सकते..क्योंकि लैब्स की कमी है…
इन सारे आकड़े को देखने के बाद दो तीन बातें क्लीयर हो जाती हैं. पहली बात की ये अगर टेस्टिंग नहीं होगी तो फिर आपके आसपास कितने लोगों को कोरोना है, कितने मरीज़ संक्रमित हैं, ये सटीक तौर पर पता नहीं चल सकेगा. दूसरी बात ये है कि अगर मान लीजिए किसी को कोरोना का पता चल भी गया लेकिन अगर जीनोम सीक्वेंसिंग की प्रॉपर व्यवस्था नहीं होगी तो फिर ये कहना मुश्किल होगा कि मरीजों में कौन सा वैरिएंट मिल रहा है.
जाहिर है जिस रफ्तार से केस बढ़ रहे हैं. आने वाले दिनों में हेल्थ सिस्टम पर दबाव बढ़ सकता है क्योंकि ओमिक्रॉन जिस तरह तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है, वो वाकई में हर दिन डर और फिक्र को एक नए लेवल पर पहुंचा रहा है. हर दिन एक के बाद कई बड़ी हस्तियों को फिर कोरोना अपनी चपेट में ले रहा है.
देश और पूरी दुनिया में संक्रमण की सुनामी लाने वाले कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन सुपर स्प्रेडर है. ये सब जान गए हैं लेकिन कितना घातक है, इसको लेकर पिक्चर क्लियर नहीं थी. लेकिन अब हो गई है. ओमिक्रॉन पर हुई नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि ओमिक्रॉन को हल्के में लेना बहुत भारी पड़ सकता है! क्योंकि ओमिक्रॉन का हल्का इंफेक्शन भी अंगों को डैमेज कर रहा है. जी हां ये बिल्कुल सच है. जिस ओमिक्रॉन वैरिएंट को लेकर ये कहा जा रहा था कि इसके लक्षण हल्के है ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा रहा है वो संक्रमित लोगों के अंगों को नुकसान पहुंचा रहा है.
इसको लेकर जर्मनी के एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है. यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित एक नई स्टडी बताती है कि वायरस का इंफेक्शन अपना असर छोड़ जाता है, फिर भले ही मरीजों में इसके लक्षण ना दिखते हों स्टडी के मुताबिक हल्का संक्रमण भी शरीर के अंगों को डैमेज कर सकता है. स्टडी के लिए 45 से 74 साल की उम्र के कुल 443 लोगों की बड़े पैमाने पर जांच की गई. स्टडी में शामिल किए गए संक्रमितों में हल्के या किसी तरह के लक्षण नहीं थे और स्टडी का रिजल्ट बताता है कि संक्रमितों के अंदर संक्रमित ना होने वाले लोगों के मुकाबले मीडियम टर्म ऑर्गेन डैमेज देखा गया.
यूरोपियन हार्ट जर्नल में छपी इस स्टडी के मुताबिक लंग फंक्शन टेस्ट में फेफड़े का वॉल्यूम तीन प्रतिशत घटा पाया गया और एयर-वे से जुड़ी दिक्कतें भी देखी गईं. हल्के लक्षण और कम लक्षण वाले संक्रमितों पर हुई स्टडी में संक्रमण के दिल पर पड़ने वाले असर को भी देखा गया. हार्ट की पम्पिंग पावर में औसतन 1 से 2 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई जबकि खून में प्रोटीन का स्तर 41 प्रतिशत तक बढ़ पाया गया, जो कि हार्ट पर पड़ने वाले तनाव के बारे में बताता है.
रिसर्च में वैज्ञानिकों को फिक्र बढ़ाने वाली एक और बात पता चली है और वो है पैरों की नसों में खून के थक्के ज्यादा बनना. स्टडी के नतीजों के मुताबिक हल्के या कम लक्षण वाले लोगों में दो से तीन गुना ज्यादा बार लेग वीन थ्रोम्बोसिस यानी पैरों की नसों में खून के थक्के बनते देखे गए हैं. पैर की नसों में खून का थक्का जमने से हुआ ब्लाकेज बेहद खतरनाक हो सकता है क्योंकि कई बार यह थक्का टूट कर फेफड़े की नली में रुकावट पैदा कर देता है जो मरीज के लिए जानलेवा हो जाता है.