अब नमक और पानी के गरारे से भी होगा कोरोना जांच, MSME को हस्तांतरित किया गया तकनीक का ब्योरा
अब नमक और पानी के गरारे से भी होगा कोरोना जांच
नई दिल्ली, महाराष्ट्र के नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण आभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने नमक-पानी के गरारे (सलाइन गार्गल) से आरटी-पीसीआर जांच करने की स्वदेशी तकनीक का पूरा ब्योरा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया है।
आरटी-पीसीआर जांच की यह तकनीक सरल, तेज, किफायती और सुविधाजनक है। रविवार को एक बयान में कहा गया कि इस तकनीक से जांच के तत्काल परिणाम मिल जाते हैं। यह ग्रामीण तथा जनजाति बहुल इलाकों के लिहाज से काफी उपयोगी है, जहां बहुत कम बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं। नीरी, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के तहत काम करती है।
बयान के अनुसार, 'तकनीक हस्तांतरण से इस नवोन्मेषी तरीके का व्यावसायीकरण होगा और सभी सक्षम पक्षों को लाइसेंस प्रदान किए जा सकेंगे। इनमें निजी, सरकारी और कई ग्रामीण विकास विभाग शामिल हैं।' लाइसेंसी आसानी से उपयोग वाले सुगम किट के व्यावसायिक उत्पादन के लिए इकाई लगा सकते हैं। कोविड की तीसरी लहर की आशंका के बीच सीएसआइआर-नीरी ने देशभर में तकनीक के तेजी से प्रसार के लिए इसका त्वरित हस्तांतरण किया है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में 11 सितंबर को एक कार्यक्रम में तकनीक हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी हुई। गडकरी ने इस संबंध में कहा, 'सलाइन गार्गल आरटी-पीसीआर जांच पद्धति को पूरे देश में, खासतौर पर ग्रामीण व जनजातीय इलाकों तथा कम संसाधन वाले क्षेत्रों में लागू करना जरूरी है। इससे तेजी से परिणाम आएंगे और महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई और मजबूत होगी।' नीरी के अनुसार, इस तकनीक में लोगों को दिए गए सलाइन (नमक-पानी) के गरारे लगभग 15 सेकंड तक करने होते हैं, जिसे जांच के नमूने के तौर पर प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
सरल, तेज, आरामदायक और किफायती यह टेस्टिंग
नमक और पानी के गरारे (सेलाइन गार्गल) की इस विधि से कई प्रकार के लाभ एक साथ मिलते हैं। यह विधि सरल, तेज, लागत प्रभावी, रोगी के अनुकूल और आरामदायक है और इससे परिणाम भी जल्दी मिलते हैं। न्यूनतम बुनियादी ढांचा आवश्यकताओं को देखते हुए यह विधि ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।