पॉक्सो मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिग के खिलाफ जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी

Update: 2023-02-22 01:59 GMT
दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर छह सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने वकील हर्ष विभोर सिंघल के मामले की सुनवाई करते हुए याचिका पर नोटिस जारी किया और जुलाई में संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष दलीलों को पूरा करने के लिए मामले को सूचीबद्ध किया।

सिंघल ने पॉक्सो अधिनियम के विभिन्न वर्गो के 'न्यायिक अमान्यता' की मांग की है, क्योंकि ये नाबालिगों के मामले की रिपोर्ट नहीं करने के लिए सूचित सहमति देने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ हैं। याचिका में कहा गया है, .. कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि न तो कानून, न ही पुलिस और न ही कोई अदालत एक यौन हमले के उत्तरजीवी को प्राथमिकी दर्ज करके अपराध की रिपोर्ट करने के लिए मजबूर कर सकती है और कोई भी पुलिस या अदालत किसी भी नाबालिग को उसकी यौन गतिविधि की रिपोर्ट करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है। इस प्रकार, अनिवार्य रिपोटिर्ंग की आवश्यकता वाली विवादित धाराएं अस्थिर, मनमाना और असंवैधानिक हैं और इसे अलग रखा जाना चाहिए।"

याचिकाकर्ता ने तके दिया कि ये प्रावधान नाबालिगों और वयस्क महिलाओं को प्रसव पूर्व, प्रजनन और यौन स्वास्थ्य देखभाल से वंचित करते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा, ..18 साल से कम उम्र के नाबालिगों द्वारा सहमति से किया गया यौन कृत्य निजता के अधिकार के उपच्छाया के अंतर्गत आता है, जिसे पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ में नौ-न्यायाधीशों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ द्वारा भी मान्यता दी गई है। सिंघल ने खंडपीठ से चुनौती वाले प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया था।

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