ललित गर्ग
विश्व शांति दिवस अथवा अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस प्रत्येक वर्ष 21 सितम्बर को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, शांति, अहिंसा और खुशी का एक आदर्श माना जाता है। यह दिवस मुख्य रूप से पूरी पृथ्वी पर शांति और अहिंसा स्थापित करने के लिए मनाया जाता है। पहला शांति दिवस कई देशों द्वारा राजनीतिक दलों, सैन्य समूहों और लोगों की मदद से 1982 में मनाया गया था। इस साल 40वां अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस 21 सितंबर 2022 को बुधवार के दिन मनाया जा रहा है, जिसकी थीम 'जातिवाद खत्म करें, शांति का निर्माण करें' है। शांति सभी को प्यारी होती है। अहिंसा एवं शांति जीवन का सौन्दर्य है। इसकी खोज में मनुष्य अपना अधिकांश जीवन न्यौछावर कर देता है। किंतु यह काफी निराशाजनक है कि आज इंसान दिन-प्रतिदिन इस शांति एवं अहिंसा से दूर होता जा रहा है। आज चारों तरफ फैले बाजारवाद ने शांति एवं अहिंसा को व्यक्ति से और भी दूर कर दिया है।
मनुष्य, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि सभी जीना चाहते हैं। कोई मरने की इच्छा नहीं रखता। जब कोई मृत्यु चाहता ही नहीं, तो उस पर उसको थोपना कहां का न्याय है। शांति एवं अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग किसी प्राणी को सताते नहीं, मारते नहीं, मर्माहत करते नहीं, इसी में से अहिंसा एवं शांति का तत्त्व निकला है। अहिंसा है स्वयं के साथ सम्पूर्ण मानवता को मानवता को ऊपर उठाने में, आत्मपतन से बचने में और उससे किसी को बचाने में। अशांति अंधेरा है और शांति उजाला है। आंखें बंद करके अंधेरे को नहीं देखा जा सकता। इसी प्रकार अशांति से शांति को नहीं देखा जा सकता। शांति को देखने के लिए आंखों में अहिंसा का उजाला आंजने की अपेक्षा है। पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। यूँ तो 'विश्व शांति' का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है, लेकिन विश्व युद्ध की संभावनाओं के बीच इसकी आज अधिक प्रासंगिकता है।
विगत अनेक माह से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, और इस युद्ध की तमाम आशंकाओं और संभावनाओं के बीच शांति वार्ता की कोशिशें लगातार निस्तेज होती जा रही है। इस युद्ध की दूसरी बड़ी समस्या है की वास्तव में युद्ध यूक्रेन और रूस के बीच का युद्ध तो है ही नहीं। वास्तविक युद्ध तो पश्चिमी गठबंधन और रूस के बीच चल रहा है, और यह पक्ष तो शांति वार्ता से नदारद ही हैं। रूस को ये भली-भांति पता चल चुका है कि वो यूक्रेन पर कब्ज़ा नहीं कर सकता है, और यूक्रेन भी इस बात को समझता है कि इस युद्ध के दौरान जिन इलाकों को वो खो चुका है, वो उसे अब वापिस मिलने से रहे। आज जब हम वापस उसी शीत युद्ध के बीच अपने को पाते हैं तो उस शीत युद्ध में रूस के साथ-साथ चीन अब खड़ा है। और इस अंतराल में चीन सेर का सवा सेर नहीं बल्कि सवा सौ सेर बन चुका है। वास्तव में विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही दुनिया को अयुद्ध, शांति एवं अहिंसा के पुनर्निर्माण की ज़रूरत है। और अगर ये पुनर्निर्माण नहीं किया गया तो यूक्रेन में धधकता उबाल सिर्फ़ यूक्रेन को ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों को अपनी चपेट में लेगा।
ज़ाहिर है कि रणनीतिक दृष्टि में एक ग़हरी खामी थी जिसके कारण यह स्थिति पैदा हुई। यह उन त्रुटिपूर्ण सुरक्षा विचारों पर फिर से विचार करने का समय है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो अकेले यूक्रेन में शांति से समस्या का समाधान नहीं होगा। यह आग आगे भी यूं ही सुलगती रहेगी। सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है। इसलिए संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष इस दिवस का आयोजन करती हैं। शांति का संदेश दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत की विश्वविख्यात हस्तियों को शांतिदूत भी नियुक्त कर रखा है।
भारत अहिंसा एवं शांति को सर्वाधिक बल देने वाला देश है, यहां की रत्नगर्भा माटी ने अनेक संतपुरुषों, ऋषि-मनीषियों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने त्याग एवं साधनामय जीवन से दुनिया को अहिंसा एवं शांति का सन्देश दिया। महात्मा गांधी ने अहिंसा एवं शांति पर सर्वाधिक बल दिया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने विश्व में शांति और अमन स्थापित करने के लिए पाँच मूल मंत्र दिए थे, इन्हें 'पंचशील के सिद्धांत' भी कहा जाता है। मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के ये पंचशील के पाँच आधारभूत सिद्धांत हैं-एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना, एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना, एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना, समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना। माना जाता है अगर विश्व उपरोक्त पाँच बिंदुओं पर अमल करे तो हर तरफ चैन और अमन, अहिंसा एवं शांति का ही वास होगा।
'विश्व शांति दिवस' के उपलक्ष्य में हर देश में जगह-जगह सफेद रंग के कबूतरों को उड़ाया जाता है, जो कहीं ना कहीं 'पंचशील' के ही सिद्धांतों को दुनिया तक फैलाते हैं। एक शायर का निम्न शेर बहुत ही विचारणीय है-लेकर चलें हम पैगाम भाईचारे का, ताकि व्यर्थ खून न बहे किसी वतन के रखवाले का। आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक कुचेष्टाओं से है। विकसित देश युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं, ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता। आज सैन्य साजो-सामान उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है। आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैलाकर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत संपत्ति जमा करते हैं।
हिंसा एवं अशांति विश्व की एक ज्वलन्त समस्या है। अहिंसा एवं शांति ही इस समस्या का समाधान है। भारतीय संस्कृति के घटक तत्वों में अहिंसा भी एक है। यहां सभी धर्मों के साधु-संन्यासी अहिंसा का उपदेश देते रहे हैं। इस संदर्भ में आचार्य श्री महाप्रज्ञ का कथन समस्या के स्थायी समाधान की दिशा प्रशस्त करने वाला है। उन्होंने अपनी अहिंसा यात्रा के दौरान बार-बार इस बात को दोहराया था कि वे अपनी यात्रा में हिंसा के कारणों की खोज कर रहे हैं। भगवान महावीर का दर्शन अहिंसा का दर्शन है। अहिंसा, समता, मैत्री, करुणा, संयम, उपशम आदि शब्द एक ही अर्थ को अभिव्यंजना देने वाले हैं।
अहिंसा सव्वभूयखेमंकरी-विश्व के समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाली तेजोमयी अहिंसा की ज्योति पर जो राख आ गई, उसे दूर करने के लिए तथा अहिंसा की शक्ति पर लगे जंग को उतार कर उसकी धार को तेज करने के लिए अहिंसक समाज रचना की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया में विश्वशांति एवं अहिंसा की स्थापना के लिये प्रयत्नशील है, समूची दुनिया भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है कि एक बार फिर शांति एवं अहिंसा का उजाला भारत करें। हिंसा एवं अशांति के प्रतिरोध में शांति एवं अहिंसा दिवस का आयोजना के बारे में कुछ लोग कह सकते है-ंएक दिन शांति एवं अहिंसा-दिवस मना भी लिया तो क्या हुआ? लेकिन शांति एवं अहिंसा दिवस बनाने की बहुत सार्थकता है, उपयोगिता है, इससे अंतर-वृत्तियां उद्बुद्ध होंगी, अंतरमन से अहिंसा-शांति को अपनाने की आवाज उठेगी और हिंसा-अशांति में लिप्त मानवीय वृत्तियों में अहिंसा एवं शांति आएगी।