NFHS Survey : खुले में शौच करने वालों की संख्या में कमी, देखें शौचालयों की आंकड़ा

देश के 19 प्रतिशत घरों में अभी भी शौचालय की सुविधा नहीं है।

Update: 2022-05-12 05:56 GMT

नई दिल्ली,  देश के 19 प्रतिशत घरों में अभी भी शौचालय की सुविधा नहीं है यानी इन घरों के लोग खुले में शौच करते हैं, जबकि सरकार ने 2019 में ही भारत को खुले में शौच से मुक्त यानी ओडीएफ घोषित कर दिया था। हाल ही में जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार व स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 में यह जानकारी सामने आई है। यह सर्वेक्षण 2019-21 में किया गया था।


खुले में शौच करने वालों की संख्या में कमी
हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि खुले में शौच करने वालों की संख्या में कमी आई है। 2015-16 में ऐसे लोगों की संख्या 39 प्रतिशत थी जो 2019-20 में घटकर 19 प्रतिशत पर आ गई है। शौचालय की सुविधा वाले घरों की संख्या बिहार में सबसे कम (62 प्रतिशत) है। उसके बाद झारखंड (70 प्रतिशत) और ओडिशा (71 प्रतिशत) का नंबर है।

69 प्रतिशत घरों में उन्नत शौचालय का इस्तेमाल
देश के 69 प्रतिशत घरों में उन्नत शौचालय का इस्तेमाल किया जाता है यानी उन्हें किसी दूसरे के साथ साझा नहीं किया जाता। आठ प्रतिशत ऐसे शौचालय ऐसे हैं जिन्हें दूसरे के साथ साझा नहीं किया जाए तो वो उन्नत शौचालय की श्रेणी में आ जाएंगे।

शहरी क्षेत्रों में 11 प्रतिशत घरों में साझा शौचाल

साझा शौचालय के मामले में शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति कुछ बेहतर है। शहरी क्षेत्रों में 11 प्रतिशत घरों में साझा शौचालय है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे घरों की संख्या सात प्रतिशत है।

58 प्रतिशत घरों में सुरक्षित पेयजल नहीं

रिपोर्ट के मुताबिक देश के 58 प्रतिशत घरों में लोग पीने के लिए सुरक्षित पानी का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसका मतलब है कि इन घरों में पेयजल को साफ करने की व्यवस्था नहीं है। असुरक्षित पानी का इस्तेमाल करने वाले घरों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 66 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 44 प्रतिशत है। ज्यादातर घरों में पानी को उबालकर शुद्ध बनाया जाता है।

 
15-24 वर्ष की 50 प्रतिशत महिलाएं माहवारी में करती हैं कपड़े का उपयोग

एनएफएचएस की रिपोर्ट में बताया गया है कि 15-24 साल की उम्र की करीब 50 प्रतिशत महिलाएं अभी भी माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। विशेषज्ञों ने इसके लिए माहवारी के बारे में जागरूकता की कमी और वर्जनाओं को जिम्मेदार ठहराया है। इससे इनके कई तरह की संक्रामक बीमारियों की चपेट में आने का खतरा भी बना रहता है।


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