मकड़ी की नई प्रजाति को मिला सब-इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले का नाम, जाने क्यों?

Update: 2021-06-28 03:21 GMT

हाल ही में पाई गई मकड़ी की नई प्रजाति, आइसियस तुकारामी, का नाम मुंबई पुलिस के असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले के नाम पर रखा गया है। तुकाराम ने मुंबई में हुए 26/11 के बड़े हमले में अपनी जान देकर आतंकी अजमल कसाब को पकड़ा था। पहली बार रिसर्चर्स की एक टीम द्वारा प्रकाशित एक पेपर में आइसियस तुकारामी शब्द का जिक्र किया गया था। इस पेपर में भारत के महाराष्ट्र में पाई गई मकड़ी जेनेरा फिंटेला और आईसियस की दो नई प्रजातियों के बारे में जानकारी दी गई है।

23 गोलियां खाकर भी नहीं छोड़ा कसाब का गिरेबान
रीसर्च में साफ किया गया है: "मकड़ी को ये खास नाम 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के हीरो, एएसआई तुकाराम ओंबले एसी को समर्पित है। उन्होंने अपने सीने पर 23 गोलियां खाकर भी कसाब का गिरेबान पकड़े रखा और उसकी बंदूक को अपनी ओर से हिलने नहीं दिया। यही वजह थी कि पीछे खड़े अन्य पुलिस कर्मियों की जान भी बची और आतंकी को पकड़ा जा सका।
क्या हुआ था 26/11 की रात को?
26/11 की रात सीएसटी रेलवे स्टेशन पर हमला कर अजमल कसाब और उसके साथी आतंकी इस्माइल खान ने कामा अस्पताल को निशाना बनाया था। दोनों आतंकी अस्पताल के पिछले गेट पर पहुंचे लेकिन स्टाफ ने सभी दरवाजे अंदर से बंद कर लिए थे। इसके बाद दोनों ने अस्पताल के बाहर एक पुलिस दल पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे सहित छह अधिकारी मारे गए।
कसाब और अन्य आतंकवादी इस्माइल खान को बाद में गिरगांव चौपाटी के पास रोका गया, जहां तुकाराम ओंबले ने कसाब का कॉलर और उसकी राइफल की बैरल पकड़ ली। यही वजह थी कि बाकी पुलिस टीम को कसाब पर काबू पाने और उसे जिंदा पकड़ने के लिए मदद मिली। तुकाराम कसाब के सामने खड़े हो गए और उसे गाड़ी से बाहर खींचने लगे। कसाब ने गोलियां तो चलाईं लेकिन बंदूक को तुकाराम के सीने से हिला नहीं सका। इस दौरान अन्य पुलिसकर्मियों ने कसाब को पकड़ा लेकिन तुकाराम को कुल 23 गोलियां लग चुकी थी और वे शहीद हो गए। अगर तुकाराम ने ऐसा न किया होता तो उस दौरान कसाब अन्य पुलिसकर्मियों पर गोली बरसाकर उनकी जान ले सकता था।
बहादुरी के लिए मिला अशोक चक्र
तुकाराम को बहादुरी के लिए अशोक चक्र पुरस्कार दिया गया। तुकाराम की याद में मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त राकेश मारिया ने लिखा है कि ओंबले के ही कारण कसाब को पकड़ा गया। उन्होंने जो किया उससे ही लश्कर-ए-तैयबा की साजिश को नाकाम किया जा सका।
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