कर्नाटक की राजनीति में सोमवार को नया मोड़ आ ही गया. बीजेपी नेता और सूबे के सीएम बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद एक और दिलचस्प बात यह देखने वाली है कि बीजेपी सूबे की कमान किस नेता को सौंपती है.
संसद भवन में जेपी नड्डा और अमित शाह के बीच बैठक हुई और कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चर्चा की गई. बीजेपी ऑब्ज़र्वर का नाम आज शाम तक तय करेगी, जो अगले एक- दो दिन में कर्नाटक जाएंगे. इस सप्ताह के अंत तक मुख्यमंंत्री के नाम को लेकर फैसला किया जाएगा तब तक के लिए येदियुरप्पा सूबे के कार्यवाहक मुख्यमंत्री होंगे.सूत्रों के मुताबिक धर्मेंद्र प्रधान ऑब्ज़र्वर होंगे.
इन तीन नामों की चर्चा
अगले मुख्यमंत्री के तौर पर रविवार तक तीन नाम सामने आए थे. पहला नाम है बसवराज बोम्मई का, जो लिंगायत समुदाय से आते हैं और अभी कर्नाटक सरकार में गृह मंत्री होने के साथ-साथ संसदीय कार्य मंत्री और कानून मंत्री भी हैं. दूसरा नाम विश्वेश्वरा हेगड़े कगेरी का है, जो ब्राह्मण हैं और कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष हैं. तीसरा नाम है केंद्रीय कोयला खनन मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री प्रह्रलाद जोशी का.
माना जा रहा है कि RSS भी येदियुरप्पा की जगह लिंगायत समुदाय से ही आने वाले किसी और मंत्री या विधायक को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि इस बार बीजेपी गैर-लिंगायत को मुख्यमंत्री बनाने के बारे में भी सोच रही है.
लिंगायत संतों ने की थी नहीं हटाने की मांग
येदियुरप्पा के सीएम पद से हटाए जाने के बीच 500 से ज्यादा लिंगायत संतों ने येदियुरप्पा को नहीं हटाने की मांग की थी. रविवार को मुरुगा मठ के संत श्री शिवमूर्ति शरानारू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम चाहते हैं कि वो (येदियुरप्पा) सीएम बने रहें, लेकिन ये फैसला हाई कमांड (बीजेपी) पर है. उन्होंने ये भी कहा कि बीजेपी आलाकमान उचित फैसला लेगा.
दिल्ली में पीएम मोदी, जेपी नड्डा से की थी मुलाकात
कर्नाटक की सियासत में लंबे समय से चर्चाएं तेज थीं. हाल ही में बीएस येदियुरप्पा ने नई दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी. तभी ये बात कही जा रही थी कि अब येदियुरप्पा अपना पद छोड़ सकते हैं. जब से बीएस. येदियुरप्पा के इस्तीफे की अटकलें तेज़ हुई थी, तभी से लिंगायत समुदाय के लोगों का बीएस येदियुरप्पा से मिलना जारी था. ऐसे में इन मुलाकातों को केंद्रीय नेतृत्व को दिए जा रहे एक संदेश के तौर पर देखा जा रहा था. हालांकि, बाद में बीएस येदियुरप्पा ने साफ किया था कि अगर केंद्रीय नेतृत्व तय करेगा तो वह इस्तीफा दे देंगे.L