एनसीआरबी के आंकड़ों: 2020 में रोज 31 बच्चों ने की आत्महत्या, पढ़े पूरी रिपोर्ट

Update: 2021-10-31 07:38 GMT

नई दिल्ली: पिछले साल हर दिन औसतन 31 बच्चों ने आत्महत्या कर अपनी जान दी. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में 11 हजार 396 बच्चों ने सुसाइड की, जो 2019 की तुलना में 18% और 2018 की तुलना में 21% ज्यादा है. 2019 में देश में 9,613 और 2018 में 9,413 में बच्चों ने आत्महत्या की है.

एनसीआरबी के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह फैमिली प्रॉब्लम्स (4,006), लव अफेयर्स (1,337) और बीमारी (1,327) है.
बाल संरक्षण पर काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रन के डिप्टी डायरेक्टर प्रभात कुमार ने न्यूज एजेंसी को बताया कि कोविड महामारी और स्कूल बंद होने की वजह से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को और बढ़ा दिया है. वो कहते हैं कि बच्चों में बढ़ते सुसाइड के मामले सिस्टमैटिक फेलियर को दिखाता है. कुमार कहते हैं ये माता-पिता, परिवार, पड़ोसियों और सरकार सभी की जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को एक ऐसा सिस्टम दें जहां बच्चे अपनी क्षमता पहचान सकें और अपने सपनों को पूरा करने करने के लिए तैयार हो सकें.
वहीं, CRY-चाइल्ड राइट्स एंड यू में पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी के डायरेक्टर प्रीति महारा ने न्यूज एजेंसी को बताया कि महामारी की शुरुआत से ही ये सबसे बड़ा डर था कि इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है और एनसीआरबी के आंकड़े इस डर को बयां करते हैं कि महामारी ने बच्चों के साइकोलॉजिकल ट्रॉमा को काफी हद तक बढ़ा दिया है.
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में 11,396 बच्चों ने आत्महत्या की. इनमें 5,392 लड़के और 6,004 लड़कियां थीं. यानी पिछले साल हर दिन 31 और हर घंटे 1 बच्चे ने खुदकुशी की.
प्रीति महारा ने बताया कि कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने, घर में बंद रहने, दोस्तों या शिक्षकों से बातचीत नहीं कर पाने की वजह से बच्चों में तनाव बढ़ गया. उन्होंने कहा कि उनमें से कई बच्चों ने अपने घर में तनावपूर्ण माहौल, अपने प्रियजनों की मौत, संक्रमण का डर और गहराते वित्तीय संकट का सामना किया है. उन्होंने कहा कि कई बच्चे ऑनलाइन क्लास के लिए संघर्ष कर रहे थे तो कई सोशल मीडिया से पीड़ित हो चुके थे. इन सबने बच्चों पर गहरा असर डाला.
पोद्दा फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्ट और मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट प्रकृति पोद्दार ने कहा कि माता-पिता को ये समझने चाहिए कि उनके बच्चों की मानसिक स्थिति कितनी नाजुक है. उन्होंने ये भी कहा कि शिक्षकों को मानसिक मुद्दों के लक्षणों और पैटर्न की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत है.
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