NCP प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने ली प्रेस कॉन्फ्रेंस, सुप्रिया सुले ने कही ये बड़ी बात
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नई दिल्ली। महाराष्ट्र में हुए सियासी उलटफेर को लेकर एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि, आज जो हुआ उसको लेकर पहले से बात चल रही थी और इसे लेकर प्लानिंग थी. उन्होंने ये साफ करने की कोशिश की रविवार को लिया गया फैसला सिर्फ सत्ता के लिए नहीं है, बल्कि ये स्थिरता की बात थी और इससे कहीं अधिक ये फैसला महाराष्ट्र और राज्य के विकास के हित में लिया गया है. आजतक से खात बातचीत करते हुए एनसीपी वर्किंग प्रेसिडेंट ने अजित पवार के बगावती फैसले को लेकर अपनी राय पेश की और कहा कि शिवसेना और बीजेपी में कोई फर्क नहीं है.
बातचीत के दौरान प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि, इसमें कोई दोराए नहीं कि कुछ समय से एनसीपी में ये चर्चा जारी थी कि एनडीए में जाना चाहिए. इसलिए नहीं कि ये सत्ता की बात थी. शिवसेना और एनसीपी के साथ सरकार बनाना हमारा कोई नेचुरल अलायंस नहीं था. शिवसेना बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. राजनीति में कम ज्यादा बातें नहीं होती. उस वक्त ऐसा हुआ. मेरे हिसाब से वो प्राकृतिक गठबंधन नहीं था.
शिवसेना टूटी, इसके बाद शिवसेना ही सबसे बड़ी पार्टी के तौर उस अलायंस में है. कांग्रेस अब भी मानने को तैयार नहीं कि वह सबसे बड़ी पार्टी नहीं है. हम विपक्ष में जरूर थे, लेकिन हमें ये समझ आ रहा था कि, साल भर बाद चुनाव में जाएंगे तो लोगों के सामने खुद को ठीक से प्रोजेक्ट नहीं कर पाएंगे. शिवसेना और कांग्रेस के सामने कंप्रोमाइज एनसीपी को ही करना पड़ेगा.
जब प्रफुल्ल पटेल से सवाल हुआ कि ऐसा कंप्रोमाइज तो आपको अभी भी करना पड़ेगा तो पटेल ने कहा कि, बीजेपी को ही देखिए वह 115 लोगों के समर्थन लेकर लार्जेस्ट पार्टी है. इससे इस सरकार में स्टेबिलिटी नजर आती है. भले ही सीएम एकनाथ शिंदे हैं, आज अजित पवार के माध्यम से हम जुड़े हैं तो ऐसे में एक स्थिरता दिखाई देती है.
देश के लेवल पर सोचिए पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर कोई सवाल नहीं है और वह 9 साल से देश के नेतृत्व कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा, मैं शरद पवार पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. साथ ही कहा कि 'शिवसेना और बीजेपी में कोई फर्क नहीं है. अगर आप आदर्श स्थिति की बात करें तो यह होना चाहिए, एनसीपी पूरे महाराष्ट्र में लड़े, जीते और सरकार बनाए.'
उन्होंने कहा कि, राजनीति में वक्त के हिसाब से फैसले होते हैं. पीएम मोदी की देश में देश से बाहर भी लोकप्रियता है. ये सभी बातें स्थिरता लाती हैं. प्रफुल्ल पटेल ने यह भी कहा कि, मैं आज के या कल के बयानों पर नहीं जाता हूं. राजनीति में टीका-टिप्पणी करना चलता रहता है. बीजेपी के साथ हम गए तो बीजेपी भी हमारे साथ आई, तभी तो तालमेल हुआ. मेरा तो इतना ही कहना है जो भी फैसला लिया, वह राज्य, विकास और स्थिरता को देखते हुए लिया है.
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार रविवार (02 जुलाई 2023) को अपने कई साथियों के साथ महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए. अजीत पवार ने प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. प्रदेश में फिलहाल बीजेपी और शिव सेना (एकनाथ शिंदे गुट) के गठबंधन की सरकार है जिसमें देवेंद्र फडणवीस पहले ही उपमुख्यमंत्री पद पर हैं. शपथ लेने के बाद अजीत पवार ने कहा कि उन्होंने 'एनसीपी पार्टी के तौर पर सरकार में शामिल होने का फ़ैसला लिया है और अगले चुनाव में वो पार्टी के चिन्ह और नाम के साथ ही मैदान में उतरेंगे.'
इधर उनके चाचा शरद पवार ने कहा है, "एनसीपी किसकी है इसका फ़ैसला लोग करेंगे." एनसीपी के मुख्य प्रवक्ता महेश भारत तपासे ने स्पष्ट किया है, 'ये बगावत है जिसे एनसीपी का कोई समर्थन नहीं है.' बीते कुछ महीनों से महाराष्ट्र के अख़बारों में 'अजीत पवार नॉट रिचेबल' और 'अजीत पवार बगावत करेंगे' जैसी सुर्खियां देखने को मिल रही थीं. कुछ सप्ताह पहले शरद पवार के पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने की बात मीडिया में छाई हुई थी. उस वक्त अटकलें लगाई जा रही थीं कि पार्टी की कमान अजीत पवार को मिलेगी. लेकिन शरद पवार ने इस्तीफा वापस ले लिया जिसके बाद इस तरह के कयास लगना बंद हुए.
अजीत पवार को जल्दबाज़ी से काम करने वाले और खुलेआम नाराज़गी जताकर पार्टी को एक्शन लेने पर मजबूर करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है. उन्हें बेहद महत्वाकांक्षी नेता भी माना जाता है. वो पांच बार प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने लेकिन मुख्यमंत्री बनते-बनते चूक गए. लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में कई लोगों की पसंद अजीत पवार नहीं है. लेकिन क्या इन बातों का मूल अजीत पवार के राजनीतिक सफर में खोजा जा सकता है. सतारा से बारामती आकर बसे पवार परिवार के पास किसान मजदूर पार्टी की विरासत थी.
शरद पवार की मां शारदाबाई पवार शेकाप से तीन बार लोकल बोर्ड की सदस्य रहीं थीं. उनके पिता गोविंदराव पवार स्थानीय किसान संघ का नेतृत्व करते थे. हालांकि शरद पवार ने 1958 में कांग्रेस का हाथ थाम लिया. 27 साल की उम्र में 1967 में वो बारामती से विधानसभा चुनाव में उतरे. उस वक्त उनके बड़े भाई अनंतराव पवार ने उनकी जीत के लिए कड़ी मेहनत की. शरद पवार पहली बार चुनाव जीतकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे. इसके बाद वो राज्य मंत्री बने, फिर कैबिनेट मंत्री और फिर 1978 में मुख्यमंत्री बने. 1969 में जब कांग्रेस दोफाड़ हुई तो शरद पवार और उनके राजनीतिक गुरु यशवंतराव चव्हाण इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस गुट में शामिल हुए.
1977 में जब कांग्रेस में एक बार फिर बंटने की कगार पर पहुंची तो शरद पवार और चव्हाण ने कांग्रेस यूनाईटेड का दामन थामा जबकि इंदिरा गांधी कांग्रेस (इंदिरा) का नेतृत्व कर रही थीं. साल भर बाद वो कांग्रेस यूनाईटेड का साथ छोड़ जनता पार्टी के साथ गठबंधन में आए और महज़ 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने. शरद पवार की पीढ़ी से किसी और ने राजनीति में कदम नहीं रखा. अगर पवार के बाद इस परिवार से कोई राजनीति में आया, तो वो हैं अनंतराव के बेटे अजीत पवार.
हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि उनकी एंट्री के दशकों बाद शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले की एंट्री के बाद पार्टी में हालात बदलने लगे. भारतीय जनता पार्टी के हिंदूवादी नेता कपिल मिश्रा (Kapil Mishra) अपने बयानों की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. एक बार फिर उन्होंने एक ऐसा ट्वीट किया है जिसकी वजह से वो फिर चर्चाओ में आ गए हैं. महाराष्ट्र में हुए सियासी घटनाक्रम के बाद रविवार को ट्वीट करते हुए उन्होंने विपक्षी एकजुटता पर निशाना साधा और कहा कि महागठबंधन का मटका अभी एक ही मीटिंग हुई और महाराष्ट्र में मटके में छेद हो गया. दो तीन मीटिंग होते होते विपक्षी एकता का मटका चकनाचूर ही मिलेगा. लड़खड़ाते विपक्ष के नेता मटकी सम्हाले या सिर. बता दें कि हाल ही में 23 जून को पटना में विपक्षी दलों का बैठक हुआ था. जिसमें एनसीपी नेता शरद पवार भी शामिल हुए थे. इस पर बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने महागठबंधन पर तंज कसते हुए ट्वीट किया है. उन्होंने अजित पवार को शिंदे गुट में शामिल होने पर कहा है कि महाराष्ट्र में मटके में अभी छेद हुआ है. आगे उन्होंने यह भी कहा है कि महागठबंधन की दो-तीन मीटिंग और होती है तो पूरा मटका ही फूट जाएगा.