एनसीपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म, लेकिन शरद पवार का अखिल भारतीय कद अप्रभावित
मुंबई (आईएएनएस)| लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से बमुश्किल एक साल पहले विभिन्न राजनीतिक दलों को दिए गए दर्जे पर भारत के चुनाव आयोग के पिछले सप्ताह के आदेश के बाद देश में विपक्ष की जगह पर मंथन हुआ।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का 'राष्ट्रीय पार्टी' का दर्जा खत्म हो गया है। अब इसे केवल दो राज्यों महाराष्ट्र और नागालैंड में राज्य पार्टी का दर्जा हासिल है।
इसे अब शिवसेना, शिवसेना (यूबीटी), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसी अन्य राज्य स्तर की पार्टियों के समान माना जाएगा। लेकिन एनसीपी के नेता शरद पवार की साख हमेशा की तरह मजबूत बनी हुई है। पवार इस पार्टी के एकमात्र सर्वमान्य नेता हैं।
सत्तारूढ़ सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और विपक्षी कांग्रेस अब महाराष्ट्र में मुख्य राष्ट्रीय पार्टियां होंगी, साथ ही कुछ अन्य छोटी इकाइयां भी होंगी, जिसमें आम आदमी पार्टी (आप) की संभावना अब बड़े पैमाने पर महाराष्ट्र में बढ़ रही है।
हालांकि, एनसीपी के वरिष्ठ नेताओं ने दावा किया है कि 'राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का प्रभाव राज्य में पार्टी की लोकप्रियता को प्रभावित नहीं कर सकता है, क्योंकि पवार की प्रतिष्ठा असीम है।
नाम न छापने का अनुरोध करते हुए एक वरिष्ठ नेता ने कहा, हमने 2000-2023 से लगातार राष्ट्रीय पार्टी का आनंद लिया। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के बीच बीजेपी लहर के कारण हमारा समर्थन आधार कम हो गया। इसलिए ईसीआई ने हमें विशेषाधिकार से वंचित कर दिया है।
राज्य के एक पदाधिकारी ने बताया कि राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने पहले ही पार्टी का रुख स्पष्ट कर दिया है कि उसे बहुत मेहनत करनी होगी और अगले चुनावों में पुरानी स्थिति को पुन: प्राप्त करना होगा।
उन्होंने कहा, हम उस उद्देश्य के लिए पूरी तरह से तैयार हैं, अब हमारे कैडर न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि कुछ अन्य राज्यों में भी सक्रिय हो रहे हैं, ताकि 'राष्ट्रीय पार्टी' की मान्यता के लिए ईसीआई के मानदंडों को पूरा किया जा सके।
कानून विशेषज्ञ विनोद तिवारी को लगता है कि 'राष्ट्रीय पार्टी' का स्थायी विशेषता नहीं है, यह आता-जाता रहता है, जैसा कि पिछले कुछ दशकों में कई बार देखा गया है।
तिवारी ने कहा, किसी झटके के बजाय, यह राकांपा के लिए खुद को फिर से मजबूत करने, अगले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन में सुधार करने और फिर से राष्ट्रीय पार्टी का का दावा करने का एक सुनहरा अवसर है।
भारत में अब केवल 6 मान्यता प्राप्त 'राष्ट्रीय दल' हैं। इनमें सत्तारूढ़ भाजपा, विपक्षी कांग्रेस, बसपा, सीपीएम, आप और नेशनल पीपुल्स पार्टी (नागालैंड) शामिल है।
एनसीपी को अपनी मान्यता वापस पाने के लिए, उसे लोकसभा चुनाव में डाले गए 6 प्रतिशत वैध वोट और 4 लोकसभा सीटें मिलनी चाहिए, तीन अलग-अलग राज्यों से चुने गए उम्मीदवारों के साथ कम से कम 2 प्रतिशत लोकसभा सीटें और कम से कम 4 राज्यों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त होना चाहिए।
चुनाव अंकगणित के कारण, एनसीपी अब गोवा, मणिपुर और मेघालय में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी नहीं है। यह अब महाराष्ट्र और नागालैंड तक ही सीमित है, इसलिए यह 'राष्ट्रीय पार्टी' का दर्जा खो चुकी है।
यह एक कारण है कि एनसीपी अब मई में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ संभावित गठजोड़ में एक मजबूत उपस्थिति की योजना बना रही है (जिसकी संभावना नहीं लगती), और बाद में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है।
इसके अलावा, 2024 में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होंगे और साथ ही 2024 की पहली छमाही में बहुप्रतीक्षित लोकसभा चुनाव होंगे, जिससे एनसीपी को खोई हुई जमीन को पुन: प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर मिलेंगे।
तब तक, एनसीपी को दिल्ली में अपने राष्ट्रीय मुख्यालय कार्यालय को छोड़ना होगा, 'स्टार प्रचारकों' जैसी चीजों में कटौती करनी होगी, चुनावी खर्च पर प्रतिबंध, ऑल इंडिया रेडियो-दूरदर्शन जैसे राज्य मीडिया पर मुफ्त एयर टाइम का नुकसान होगा। फिलहाल पार्टी अपने चुनाव चिह्न् 'घड़ी' का उपयोग जारी रख सकती है।
स्थिति में बदलाव से आप का मनोबल बढ़ेगा और कांग्रेस व सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को 11 साल पुरानी आप पर लगाम लगाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।