लखनऊ: मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट 'नमामि गंगे' को लेकर इलाबाद हाई कोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए नमामि गंगे परियोजना का हिसाब मांगा. कोर्ट ने कहा पूछा कि क्यों ना उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को खत्म कर दिया जाए?
अदालत ने आईआईटी कानपुर और बीएचयू की टेस्ट रिपोर्ट को आंखों में धूल झोंकने वाला बताया. इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच कर रही है. हाईकोर्ट ने नमामि गंगे के डायरेक्टर को भी तलब किया है. मामले में अगल सुनवाई 31 अगस्त को होगी.
इससे पहले बीजेपी सांसद वरुण गांधी भी नमामि गंगे परियोजना पर सवाल उठा चुके हैं. वरुण गांधी ने एक वीडियो शेयर करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने लिखा था कि गंगा हमारे लिए सिर्फ नदी नहीं, 'मां' है. करोड़ों देशवासियों के जीवन, धर्म और अस्तित्व का मां गंगा आधार है. इसलिए नमामि गंगे पर 20,000 करोड़ का बजट बना. लेकिन 11,000 करोड़ खर्च के बावजूद प्रदूषण क्यों? गंगा तो जीवनदायिनी है, फिर गंदे पानी के कारण मछलियों की मौत क्यों? जवाबदेही किसकी?
नमामि गंगे प्रोजेक्ट को लोकप्रिय बनाने सरकार पहले कई कदम उठा चुकी है. केंद्र सरकार ने फैसला किया था कि बच्चों के बीच में नमामि गंगे प्रोजेक्ट को लोकप्रिय बनाएगी. बच्चों के जरिए समाज में गंगा सफाई को लेकर जागरूकता फैलाई जाएगी.
ऐसा करने के लिए बच्चों से सीधा संवाद स्थापित करना जरूरी था. उस संवाद का काम चाचा चौधरी को सौंपा गया था. केंद्र ने कार्टून करेक्टर चाचा चौधरी की कॉमिक मार्केट में रिलीज करने की योजना बनाई थी. नई पहल के लिए केंद्र 2.26 करोड़ रुपए खर्च करने का प्लना बनाया था.
बता दें कि कोरोना के दौरान गंगा की लहरों पर तैरती लाशों की तस्वीरें देशभर में सुर्खियां बनी थीं. सोशल मीडिया पर मचे हंगामे के बाद गंगा एक्शन प्लान भी चौकन्ना हो गया था. नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक ने आनन-फानन में जिला गंगा रक्षा समितियों से रिपोर्ट मांगी थी.