नई दिल्ली (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने 16 साल की एक लड़की को उसके पिता की असहमति के बावजूद गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) कराने की अनुमति दे दी। नाबालिग कथित तौर पर यौन शोषण की शिकार है। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की एकल पीठ ने फैसला सुनाया कि निर्मल छाया परिसर के अधीक्षक, जहां लड़की पिछले साल अक्टूबर से रह रही है, सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन के लिए 24 सप्ताह की कानूनी सीमा पूरी होने में कुछ ही दिन बचे हैं।
बाल कल्याण समिति ने अधीक्षक को बालिका के अभिभावक (सीडब्ल्यूसी) के रूप में नामित किया।
न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि पीड़िता को उसकी उम्र और शारीरिक और मानसिक अक्षमता को देखते हुए गर्भवती होने और बच्चे का पालन-पोषण करने की अनुमति देना अनुचित होगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि एक संवैधानिक अदालत के रूप में, पीड़िता के सर्वोत्तम हितों पर विचार करना उसकी जिम्मेदारी है।
यह अदालत मानती है कि पीड़िता द्वारा दी गई सहमति के मद्देनजर केवल उसके पिता के गैर-जिम्मेदाराना कृत्य के कारण निराश नहीं किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने लेडी हाडिर्ंग मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक और मेडिकल बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि लड़की की चिकित्सा योग्य डॉक्टरों द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि भ्रूण के टिश्यू को संरक्षित करने से डीएनए पहचान और अन्य सभी उद्देश्यों में मदद मिलेगी क्योंकि यौन हमले के बाद एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।
इसमें कहा गया है, ''याचिकाकर्ता के गर्भपात, उसकी दवाइयां, भोजन आदि के लिए आवश्यक सभी खर्च भी राज्य वहन करेगा। स्वास्थ्य लाभ के दौरान आगे की देखभाल के लिए भी राज्य सभी खर्च वहन करेगा।''
अदालत ने कहा, दिल्ली उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति अन्य सभी एजेंसियों के साथ समन्वय करने और नाबालिग के पुनर्वास और भलाई के लिए इस अदालत के समक्ष एक योजना पेश करने के लिए नोडल एजेंसी होगी।
अदालत नाबालिग की कस्टडी के लिए उसके पिता द्वारा उसकी ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीड़िता के गर्भवती होने की बात अदालत में सामने आने के बाद मेडिकल बोर्ड की स्थापना की गई है।