दतिया हादसे के एक दशक बाद भी मप्र सरकार ने नहीं की कोई कार्रवाई

Update: 2022-11-05 08:36 GMT
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भोपाल (आईएएनएस)| पिछले हफ्ते, गुजरात के मोरबी शहर में एक सदी पुराना झूला पुल गिर गया, जिससे 135 लोगों की मौत हो गई। इस घटना के चलते पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।
मध्य प्रदेश के दतिया जिले में अक्टूबर 2006 में इसी तरह की एक दुखद घटना में, सिंध नदी में अचानक बाढ़ आने से 57 लोग बह गए थे। अधिकारियों ने बिना पूर्व सूचना दिए पास के मदीखेड़ा बांध के द्वार खोल दिए थे।
रिपोर्ट के अनुसार, दतिया के एक मंदिर में हजारों लोग प्रार्थना करने के लिए एकत्र हुए थे, इस दौरान अचानक सिंध नदी में बाढ़ आ गई, जिसके चलते उस पर बना एक पुल गिर गया। राज्य सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, उस घटना में कम से कम 57 लोग बह गए थे।
अक्टूबर 2013 में इसी स्थान पर एक और भी भयावह घटना में, बच्चों और महिलाओं समेत 115 लोगों की भगदड़ में जान चली गई थी। संयोग से दोनों घटनाएं अक्टूबर में हुई थीं। मोरबी में भी दुखद घटना अक्टूबर के महीने में हुई है।
न तो दतिया के हादसे में और न ही भगदड़ वाली घटना में किसी तरह की कोई कार्रवाई की गई। लेकिन त्रासदियों के बाद बहुत से दावे किए गए थे।
दोनों दुर्घटनाएं भाजपा शासन के दौरान हुईं और उस समय की सरकार ने घटनाओं की जांच के लिए सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की अध्यक्षता में जांच आयोगों का गठन किया था।
हालांकि, इन दोनों मामलों में न तो आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई और न ही किसी अधिकारी को दंडित किया गया।
यही नहीं, 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद भी दोनों घटनाओं के लिए किसी भी अधिकारी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि 2006 की घटना के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट विधानसभा को सौंप दी थी, लेकिन जांच पैनल की रिपोर्ट को सत्तारूढ़ भाजपा ने खारिज कर दिया था।
एक सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा, शिवराज सिंह चौहान सरकार ने 2013 में भगदड़ घटना की जांच करने और दोषी अधिकारियों की पहचान करने के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश सक्सेना को नियुक्त किया था। तब से नौ साल बीत चुके हैं लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि न्यायमूर्ति सक्सेना के नेतृत्व वाले जांच पैनल ने मार्च-अप्रैल 2014 में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपे थे। हालांकि, इसे न तो सार्वजनिक किया गया और न ही राज्य विधानसभा में पेश किया गया।
दुबे ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट की कॉपी के लिए एक आरटीआई दायर की थी, लेकिन राज्य सरकार के निरंतर दबाव के कारण वह रिपोर्ट प्राप्त करने में विफल रहे।
दुबे ने कहा कि अगर राज्य सरकार समय पर कार्रवाई करती तो 2013 की भगदड़ से बचा जा सकता था।
उन्होंने आगे कहा, इस तरह के आयोगों का काम यह पहचानना और सुझाव देना है कि क्या गलत हुआ और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। अगर गलती करने वाले अधिकारियों को तलब किया जाता, तो वे 2013 में अधिक सावधान हो जाते। हालांकि, अब ये त्रासदियों को भुला दिया गया है।
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