अतुल्य चौबे
नकवी से लेकर विश्व भूषण हरिचंदन, आरिफ मो., जुएल ओराम, द्रौपदी मुर्मू के नाम चर्चा में
नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही उम्मीदवार के चयन को लेकर राजनीतिक दलों ने कवायद शुरू कर दी है। सरकार और विपक्ष दोनों अपने-अपने उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रहे हैं। एक ओर जहां भाजपा नित एनडीए गठबंधन आम सहमति से राष्ट्रपति चुनने के लिए रणनीति पर काम शुरू कर चुका है तो कांग्रेस भी अन्य विपक्षी दलों को एक कर संयुक्त विपक्ष की ओर से इस चुनाव में उम्मीदवार उतारने प्रयासरत है। हालाकि उसकी इस मुहिम को टीएमसी की ममता बनर्जी द्वारा विपक्षी दलों की बैठक बुलाने से झटका लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और रक्षामंत्री राजनाथसिंह को विपक्षी दलों से बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी है। इस बीच सरकार की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए जिनके नाम लिए जा रहे हैं, उनमें आरिफ मोहम्मद खान (केरल), उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, तेलंगाना के राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन, झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और पूर्व कैबिनेट मंत्री और आदिवासी नेता जुएल ओराम के नाम शामिल हैं।
केरल के राज्यपाल आरिफ खान सरकार के समावेशी पक्ष को प्रदर्शित करने के लिए एक विकल्प हो सकते हैं, जबकि वह विभिन्न मुद्दों पर सरकार की नीतियों के मुखर समर्थक रहे हैं। एक छात्र नेता के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करते हुए वह 1977 में अपने राजनीतिक पदार्पण से पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने, जब वे यूपी विधानसभा के लिए चुने गए। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और 1980 में कानपुर से और 1984 में बहराइच से लोकसभा के लिए चुने गए। 1986 में उन्होंने राजीव गांधी सरकार द्वारा शाह बानो के फैसले को रद्द करने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल के पारित होने पर मतभेदों के कारण कांग्रेस छोड़ दी थी। आरिफ मोहम्मद खान जनता दल में शामिल हो गए और 1989 में लोकसभा के लिए फिर से चुने गए और वी.पी. सिंह की सरकार में नागरिक उड्डयन और ऊर्जा मंत्री के रूप में कार्य किया। बाद में वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए और 1998 में बहराइच से फिर से लोकसभा के लिए चुने गए। 2004 में, वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए, लेकिन 2019 में केरल के राज्यपाल नियुक्त होने के बाद ही उन्हें प्रसिद्धि मिली।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी एक मजबूत संभावना हैं। उन्होंने 1983 में आंध्र प्रदेश विधानसभा में एक विधायक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्हें 1998 में कर्नाटक से राज्यसभा का सदस्य चुना गया। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और फिर नरेंद्र मोदी सरकार दोनों में केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया। द्रौपदी मुर्मू झारखंड में सबसे लंबी अवधि तक राज्यपाल रही हैं। वह 18 मई, 2015 से 12 जुलाई, 2021 तक झारखंड के राज्यपाल पद पर रहीं। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल रहीं। ओडिशा के मयूरभंज जिले की रहने वाली द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में दो बार रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक रही हैं। वह भाजपा-बीजू जनता दल की ओडिशा में बनी गठबंधन सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं।
विश्व भूषण हरिचंदन आंध्र प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल हैं। वे ओडिशा से बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। ओडिशा के चिल्का और भुवनेश्वर विधानसभा क्षेत्र से वह पांच बार विधायक रह चुके हैं। सन 1971 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने के दौरान वह जनसंघ से जुड़े थे। इसके बाद हरिचंदन 1977 में जनता पार्टी के गठन तक जनसंघ के आंध्र प्रदेश के महासचिव रहे। यही नहीं वह संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य भी रह चुके हैं। इसके अलावा विश्व भूषण हरिचंदन आंध्र प्रदेश के 1980 से 1988 तक प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष भी रहे। वहीं, 2004 में आंध्र प्रदेश की बीजेडी-बीजेपी गठबंधन सरकार में वह कैबिनेट मंत्री भी रहे।
जुएल उरांव पूर्ववर्ती मोदी सरकार में जनजातीय मामले के केन्द्रीय मंत्री रहे हैं। जुएल ने 16वीं लोकसभा में सुंदरगढ़ संसदीय क्षेत्र से बीजू जनता दल (बीजद) के दिलीप तिर्की को कड़ी शिकस्त दी। सुंदरगढ़ संसदीय क्षेत्र से लगातार तीन बार 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा में चुनाव जीतने वाले जुएल पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री हेमानंद से पराजित हो गए थे। जुएल भारत सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष हैं। वह ओडि़शा में भाजपा के अनुभवी नेताओं में से एक है। वह ओडि़शा में भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। मुख्तार अब्बास नकवी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं और वर्तमान में वे भारत सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के कैबिनेट मंत्री हैं। वे पार्टी के प्रमुख मुस्लीम चेहरा हैं। उन्हें राज्य सभा की टिकट नहीं देने के पीछे भी उन्हें राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने का प्रमुख कारण हो सकता है। इससे न सिर्फ विश्व समुदाय में भारत सरकार की छवि बेहतर होगी वहीं विपक्ष के पास भी मुस्लिम चेहरा होने के चलते समर्थन देने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं होगा। (शेष पृष्ठ 5 पर)
1998 में रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गए, ये पहली बार हुआ था कि कोई मुस्लिम चेहरा भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनकर पहली बार संसद पहुँचा था। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री भी बन गए वह दो किताबें स्याह और दंगा भी लिख चुके हैं। तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसई सुंदरराजन 1999 में दक्षिण चेन्नई जिला मेडिकल विंग सचिव के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया, और बीजेपी के प्रदेश इकाई में महत्वपूर्ण पदों पर रहीं।
तमिलिसई सुंदरराजन एक प्रसिद्ध कांग्रेस नेता कुमारी आनंद की बेटी हैं। उनके पति श्री रामचंद्र मेडिकल कॉलेजए चेन्नई में एक डॉक्टर-प्रोफेसर है। तमिलिसई सुंदरराजन अपने इलाके में लगभग तीन दशकों तक एक चिकित्सक के रूप में जनता के बीच जानी जाती रही हैं। उन्होंने तमिल दैनिक समाचार पत्रों और सप्ताहांत के लिए अंग्रेजी से तमिल तक कई चिकित्सा और राजनीतिक लेखों का अनुवाद किया है। तमिलनाडु की यात्रा के दौरान वे अपने लोकप्रिय राष्ट्रीय नेताओं के भाषणों के लिए बीजेपी में मुख्य अनुवादक भी हैं। बीजेपी के कार्यकर्ता तमिलिसई सुंदरराजन को तमिलनाडु के सुषमाजी कहते हैं।
अल्प संख्यक वर्ग से भी हो सकता है उम्मीदवार
सरकार की ओर से कई नामों पर चर्चा चल रही है, लेकिन यह भी माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई ऐसा नाम सामने ला सकते हैं, जैसे उन्होंने 2017 में बिहार के राज्यपाल राम नाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था। मोदी-शाह की जोड़ी अपने फैसलों से हमेशा लोगों को चौंकाते रहे हैं। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाने से लेकर नोटबंदी, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक और धारा 370 हटाने जैसे फैसलों से उन्होंने देश की राजनीति में हलचल पैदा कर दी थी। इस बार भी मोदी-शाह की जोड़ी ऐसे ही किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करके चौका सकती है। माना जा रहा है कि राष्ट्रपति का उम्मीदवार आदिवासी, अनुसूचित जाति अथवा अल्पसंख्यक वर्ग में से ही होगा। ऐसी भी चर्चा है कि हाल के दिनों में धार्मिक बयानों से मुस्लीम देशों में बिगड़ी छबि सुधारने और अगामी लोकसभा को देखते हुए पीएम मोदी अल्पसंख्यक वर्ग से किसी मुस्लिम राजनीतिज्ञ को राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति उम्मीदवार केंडिडेट घोषित कर सकते हैं।
पवार, आजाद हो सकते हैं संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार
अनुभवी कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को दोनों पक्षों से एक 'काला घोड़ाÓ माना जाता है, जिन्हें केंद्र सरकार में केंद्रीय मंत्री और राज्य में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में दशकों का अनुभव है। इनके अलावा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, जो अनुसूचित जाति से हैं और राकांपा सुप्रीमो शरद पवार विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में उभर सकते हैं। यह संभावना भी जताई जा रही है कि पवार अपने लंबे राजनीतिक अनुभव के साथ संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के रूप में उभर सकते हैं। वह तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षा और कृषि मंत्री रहे हैं। पार्टी लाइनों से परे, भाजपा को छोड़कर उनके सभी विपक्षी दलों से अच्छे संबंध हैं। पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की स्थापना 1999 में कांग्रेस से अलग होने के बाद की थी, वह इस समय राज्यसभा सदस्य हैं। वह 2005 से 2008 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष थे। कांग्रेस की ओर से मीरा कुमार उम्मीदवार हो सकती हैं, जो केंद्रीय मंत्री और लोकसभा रह चुकी हैं और पहले भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ चुकी हैं।