अलवर। अलवर सरकार के नियम हैं कि पर्यावरण संतुलन के लिए खनन क्षेत्रों में पौधे लगाए जाएं, लेकिन हकीकत इससे परे है। खान मालिक जमीन व पहाड़ी से खनिज का दोहन कर करोड़ों रुपए तो कमा रहे, लेकिन वनीकरण की ओर से ज्यादातर खान मालिकों का ध्यान नहीं। खनन क्षेत्रों में गड़बड़ाते पर्यावरण संतुलन को बचाने के लिए अब प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने खान मालिकों को वन विभाग में राशि जमा कराने के नोटिस जारी किए हैं। सरिस्का टाइगर रिजर्व के पास टहला क्षेत्र में मार्बल के अकूत भंडार हैं। यहां मार्बल की करीब 65 खानों में खनन कार्य जारी है, वहीं सरिस्का के इको सेंसेटिव जोन तय नहीं हो पाने से करीब 70 खाने फिलहाल बंद हैं। हालांकि इन बंद खानों में भी पूर्व में बड़ी मात्रा में मार्बल खनिज का दोहन किया जा चुका है। पूरे क्षेत्र में मार्बल की खानों में खनन कार्य कर खान मालिकों ने करोड़ा रुपए कमाए। इससे जमीन का सीना ही छलनी नहीं हुआ, बल्कि प्राकृतिक संतुलन भी गड़बड़ा गया।
खान मालिकों ने कई सालों से जमीन व पहाड़ से खनिज का दोहन कर करोड़ों रुपए कमाए। प्रदूषण नियंत्रण विभाग की ओर से अब उन्हें कुछ हजार रुपए जमा कराने के नोटिस दिए गए हैं। जिससे प्राप्त होने वाली राशि से वन विभाग खनन क्षेत्र में वनीकरण कर सके। यानी खनन कर करोड़ों रुपए कमाने के बाद यदि खान मालिक को 40- 50 हजार रुपए वनीकरण के नाम पर जमा कराने पड़े तो, उसके लिए खनन फायदे का सौदा है। खनन क्षेत्र के लिए नियम है कि छोटी खानों के पास वनीकरण होना जरूरी है। जिससे खनिज दोहन से होने वाले प्राकृतिक नुकसान की भरपाई हो सके। नियम है कि एक हैक्टेयर की खान के लिए 0.33 हैक्टेयर में वनीकरण करना जरूरी है। मौके पर खान मालिकों की ओर से बड़े पैमाने पर किया गया खनन तो दिखाई पड़ता है, लेकिन आसपास हरे पेड़ दिखाई नहीं देते। इसका कारण खनन क्षेत्रों में नियमानुसार हरे पेड़ों का नहीं लग पाना है।
सरकार ने नियम बनाए कि खनन क्षेत्रों में वनीकरण के लिए खान मालिक प्रति हैक्टेयर के हिसाब से राशि जमा कराए, इस राशि से वन विभाग खनन क्षेत्र में वनीकरण करे। लेकिन हकीकत यह है कि राशि तो जमा होती है, लेकिन वनीकरण नहीं हो पाता। नेशनल हाइवे एवं अन्य सड़कों के निर्माण के दौरान बड़ी संख्या में हरे पेड़ो को काटा जाता है। सम्बिन्धत विभाग इन पेड़ों की एवज में वन विभाग को राशि भी जमा कराता है, लेकिन वनीकरण कहीं दिखाई नहीं पड़ता। इससे पर्यावरण के नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। खनन क्षेत्र में ऐसी ही आशंका है। मानसून के दौरान लीजधारकों से खनन क्षेत्र में पौधरोपण कराया जाता है। इस साल भी कई खनन क्षेत्र में पेड़ लगवाए गए हैं। डीएमएफटी फंड से भी वन विभाग को पौधरोपण के लिए राशि दी गई है। छोटी खानों पर वनीकरण के नियमों का सर्कुलर भेजा गया है। खान मालिकों को खनन की एवज में राशि जमा कराने का प्रावधान है। इस राशि से वन विभाग खनन क्षेत्रों में वनीकरण कराता है।