मौसम विभाग का दावा- इस साल पड़ेगी कड़ाके की सर्दी...जलवायु परिवर्तन से तापमान में बढ़ोतरी

मौसम विभाग की मानें तो इस साल कड़ाके की सर्दी पड़ेगी।

Update: 2020-10-14 15:00 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मौसम विभाग की मानें तो इस साल कड़ाके की सर्दी पड़ेगी। मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने बताया कि इस साल ला नीना की स्थिति के कारण कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। उन्‍होंने कहा कि यदि शीत लहर की स्थिति के लिए बड़ी वजहों पर विचार करें तो अल नीनो और ला नीना बड़ी भूमिका निभाते हैं। चूंकि ला नीना की स्थिति कमजोर है इसलिए इस साल ज्यादा ठंड पड़ सकती है।

मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए (National Disaster Management Authority, NDMA) की तरफ से 'शीत लहर के खतरे में कमी' पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि यह नहीं समझना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन से तापमान में बढ़ोतरी होती है। सच्‍चाई यह है कि तापमान में बढ़ोतरी की वजह से मौसम अनियमित हो जाता है।

मोहापात्रा ने कहा कि शीत लहर की स्थिति के लिए ला नीना अनुकूल होता है जबकि अल नीनो की स्थिति इसके लिए सहायक नहीं होता। ला नीना प्रशांत महासागर में सतह के जल के ठंडा होने से जुड़ा हुआ है जबकि अल नीनो इसकी गर्मी से जुड़ा हुआ है। समझा जाता है कि दोनों कारकों का भारतीय मॉनसून पर भी असर पड़ता है।

बता दें कि मौसम विभाग हर साल नवंबर में शीत लहर का पूर्वानुमान भी जारी करता है जिसमें दिसंबर से फरवरी के दौरान शीत लहर की स्थिति की जानकारी दी जाती है। पिछले साल सर्दी के मौसम के दौरान शीत लहर अधिक लंबा खींची थी। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में शीतलहर के कारण काफी संख्या में मौतें होती हैं।

ला नीना और एल नीनो एक समुद्री प्रक्रिया है। ला नीना के तहत समुद्र में पानी ठंडा होना शुरू हो जाता है। समुद्री पानी पहले से ही ठंडा होता है, लेकिन इसके कारण उसमें ठंडक बढ़ती है जिसका असर हवाओं पर पड़ता है। जबकि, एल नीनो में इसके विपरीत होता है यानी समुद्र का पानी गरम होता है और उसके प्रभाव से गर्म हवाएं चलती हैं। दोनों ही क्रियाओं का असर सीधे तौर पर भारत के मॉनसून पर पड़ता है।

एल नीनो स्पैनिश भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है इशु शिशु। ला नीना भी स्पैनिश भाषा का ही शब्द है, जिसका अर्थ है छोटी बच्ची। बता दें कि इस साल 2020 में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो इस साल नौ फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई है।

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