ICMR की रिपोर्ट में हुए कई बड़े खुलासे, जानिए क्यों बढ़ रहा कोरोना मरीजों की मौत का आंकड़ा

Update: 2021-05-28 15:04 GMT

हाल ही में हुए कोरोना पर एक अध्ययन से चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है. मुंबई में करीब 10 अस्पतालों में यह अध्ययन किया गया. ICMR के इस अध्ययन से पता चलता है कि जिन मरीजों में सेकेंडरी इंफेक्शन यानी एक बार संक्रमित हो जाने के बाद जब उन्हें दोबारा संक्रमण हो जाता है तो उनमें से आधे से अधिक मरीजों की मृत्यु हो जाती है. हाल ही में 'ब्लैक फंगस' सेकेंडरी इंफेक्शन के तौर पर उभर कर सामने आ रहा है. इस स्थिति में जब कोई व्यक्ति एक इंफेक्शन से जूझ रहा होता है तब पहले वाले इंफेक्सन के दौरान या बाद में दूसरा इंफेक्शन हो जाता है. इस अध्ययन को मुंबई के सायन और हिंदुजा हॉस्पिटल समेत कई अस्पतालों में किया गया.

हालांकि इस अध्ययन को मरीजों के छोटे समूह पर ही किया गया. इस समूह में कोरोना के करीब 17 हजार मरीज मौजूद थे. उन पर अध्ययन से पता चला कि सेकेंडरी इंफेक्शंन वाले मरीज जो कि 4% थे उन्हें बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शगन हो गया था. इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाली वैज्ञानिक 'कामिनी वालिया' ने बताया कि यदि इन आंकड़ों को सभी मरीजों की संख्या से जोड़कर देखा जाए तो ऐसे कई हजार मरीज मिलेंगे जिन्हें इस दूसरे संक्रमण ने अपने गिरफ्त में लिया है.

मृत्यु दर कई गुना ज्यादा है

अगर सेकेंडरी इंफेक्शन की तुलना कोरोना के मरीजों से की जाए तो उसकी तुलना में मृत्यु दर कई गुना ज्यादा है. दुनिया में कोरोना के कारण मृत्यु दर 10% है. जबकि इस अध्ययन के मुताबिक कोरोना मरीजों में सेकेंडरी इंफेक्शन होने के बाद मृत्यु दर 56.7% हो गई. यह भी बताया गया कि सुपरबग वाले मरीजों में साधारण एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं करती हैं. उन्हें बहुत शक्तिशाली एंटीबायोटिक देना पड़ता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि एंटीबायोटिक्स दवाओं का अत्यधिक सेवन करने से कुछ दुर्लभ इंफेक्शन के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है. यह भी बताया गया कि अस्पताल में ज्यादा दिन तक रहने से भी खतरा बढ़ता है. कुछ डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरीजों ने पहले से ही एंटीबायोटिक्स दवाएं ले रखी थी. इस परिस्थिति में हमें उन्हें और भी कड़े एंटीबायोटिक्स देने पड़े. ऐसे में अस्पताल में ज्यादा दिन तक भर्ती रहने के बाद लगातार एंटीबायोटिक्स के सेवन से उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है. ऐसे में सेकेंडरी इंफेक्शन के होने का खतरा और भी बढ़ जाता है.

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