पश्चिम बंगाल (W Bengal) की ममता सरकार (Mamata banerjee) को शुक्रवार को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने प.बंगाल सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार ने बिना यूपीएससी (UPSC) के दखल के डीजीपी की नियुक्ति की अनुमति मांगी थी. कोर्ट ने कहा, हमारे पिछले आदेश में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है. साथ ही कोर्ट ने बार-बार एक ही तरह की याचिका दाखिल करने को लेकर ममता सरकार को फटकार भी लगाई.
ममता सरकार राज्य में DGP की नियुक्ति के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. पश्चिम बंगाल सरकार का कहना था कि UPSC के पास न तो अधिकार क्षेत्र है और न ही उसमें किसी राज्य के DGP पर विचार करने और नियुक्त करने की विशेषज्ञता है.
क्या है मामला?
दरअसल, प. बंगाल में 1986-बैच के IPS अधिकारी मनोज मालवीय को राज्य के कार्यवाहक DGP के रूप में नामित किया गया है. नए DGP के चयन को लेकर राज्य और UPSC के बीच खींचतान चल रही है. ऐसे में कार्यवाहक DGP नामित होने के एक दिन बाद ममता सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया.
ममता सरकार ने याचिका में कहा था कि यूपीएससी ने पद के लिए सुझाए गए नामों की बंगाल सरकार की सूची में कई खामियां निकाल दी हैं. यह भारतीय संघीय शासन प्रणाली के अनुरूप नहीं है. सरकार ने कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारें एक अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्र में समन्वय से काम करती हैं. लेकिन उसी समय वो एक दूसरे से स्वतंत्र होती हैं.
कोलकाता हाईकोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस मंजुला चेल्लूर बंगाल में चुनाव बाद फैली हिंसा की जांच करने के लिए बनाई गई एसआईटी की अध्यक्षता करेंगी. दरअसल, पिछले महीने कोलकाता हाईकोर्ट ने बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा में रेप और मर्डर के केस की जांच सीबीआई को सौंपी थी. इसके अलावा हिंसा के केसों की जांच के लिए एसआईटी के गठन का आदेश दिया था.