महाराष्ट्र का सियासी संग्राम: सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई, उद्धव और शिंदे गुट से मांगा हलफनामा

Update: 2022-07-20 08:45 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सियासी संग्राम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज जो बहस हुई, उसमें वकीलों के बीच भी जोरदार बहस देखने को मिली। एक तरफ उद्धव ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा तो वहीं एकनाथ शिंदे गुट की ओर से नामी अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पक्ष रखा। बहस की शुरुआत करते हुए कपिल सिब्बल ने विधायकों की अयोग्यता के मामले पर कहा कि इस पर फैसले से पहले शपथ ग्रहण नहीं होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि ठाकरे सरकार को गिराते समय संविधान का उल्लंघन किया गया, अगर ऐसा ही चलता रहा तो किसी भी सरकार को गिराया जा सकता है।

इस पर जवाब देते हुए हरीश साल्वे ने कहा कि यदि विधायकों ने बगावत की है तो इसमें गलत क्या है। उन लोगों ने किसी और दल का दामन नहीं थामा है। ऐसे में इसे दलबदल नहीं माना जा सकता है। हरीश साल्वे ने कहा कि पार्टी में रहना और आवाज उठाना बगावत नहीं है। अगर पार्टी के विधायक अपना नेता बदलना चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है? पार्टी छोड़ने के बाद दलबदल कानून लागू होता है, लेकिन शिंदे के साथ विधायकों ने पार्टी नहीं छोड़ी है। एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को नहीं छोड़ा, न ही उनके विधायकों ने शिवसेना को छोड़ा, अगर वे किसी अन्य पार्टी से हाथ मिलाते हैं, तो दलबदल कानून लागू होता है।
हरीश साल्वे ने कहा कि 16 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता कार्रवाई नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसे विद्रोह तभी कहा जा सकता है, जब वे किसी अन्य पार्टी में शामिल हों। उन्होंने कहा कि पार्टी मेंबर के रूप में नेता के खिलाफ आवाज उठाना संबंधित लोगों का अधिकार है। सर्वोच्च नेता के खिलाफ आवाज उठाना विद्रोह नहीं है, यह अयोग्यता नहीं है। हरीश साल्वे ने यह भी सवाल उठाया कि यदि संबंधित दल का कोई नेता बहुमत के बल पर अपने नेता को चुनौती देना चाहता है तो उसे दलबदल कानून के तहत क्यों रोका जाए? आइए जानते हैं, किसने दी अदालत में क्या दलील-
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में क्या कहा
- मूल पार्टी से अलग होने के बाद भी शिंदे समूह का विलय नहीं हुआ है।
- व्हिप का उल्लंघन बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करता है।
- संविधान की 10वीं अनुसूची के मुताबिक शिंदे गुट के विधायक अयोग्य हैं।
- शिंदे समूह का चुनाव आयोग के प्रति दृष्टिकोण कानून का मजाक है।
- लोकतंत्र के लिए इस मामले का परिणाम जल्द से जल्द आना जरूरी है।
- बहुमत परीक्षण के दौरान बागियों द्वारा व्हिप का उल्लंघन।
- जब मामला विचाराधीन हो तो राज्यपाल की भूमिका अनुचित होती है। ऐसी स्थिति में शपथ ग्रहण नहीं होना था।
एकनाथ शिंदे गुट के बचाव में क्या बोले हरीश साल्वे
- जब बागी विधायकों ने कोई दल जॉइन ही नहीं किया तो फिर दलबदल कैसा?
- किसी पार्टी की सदस्यता का मतलब चुप्पी की शपथ नहीं होता है।
- यदि बहुमत के आधार पर कोई पार्टी के नेता को चुनौती देता है तो यह लोकतांत्रिक अधिकार है।
- पार्टी छोड़ने के बाद दलबदल कानून लागू होता है, लेकिन शिंदे के साथ विधायकों ने पार्टी नहीं छोड़ी है।

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