जन्म देने वाली मां से ज्यादा हक पालने वाली मां का, दो महिलाओं में छिड़ी जंग पर मद्रास हाईकोर्ट का अहम फैसला
नई दिल्ली: 10 साल की बच्ची के लिए दो महिलाओं में छिड़ी जंग को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि एक दशक तक नाबालिग बच्ची की देखभाल और पालन-पोषण करने वाली पालक मां को उससे अलग नहीं किया जा सकता है.
दरअसल, एक बच्ची की जैविक मां ने 100 दिन की उम्र में उसको अपनी भाभी को सौंप दिया था. अब जब वह बच्ची 10 साल की हो गई है तो महिला उसे वापस मांग रही है. महिला की भाभी ने जब गोद ली हुई बच्ची को वापस करने से इंकार कर दिया तो मामला कोर्ट पहुंचा. यहां अदालत ने साफ कर दिया कि बच्ची को उसकी पालक मां से नहीं छीना जा सकता. हालांकि, उसकी जैविक मां और भाई बहन वीकेंड पर उससे मिलने आ सकते हैं.
न्यायमूर्ति पीएन प्रकाश और न्यायमूर्ति आर हेमलता की खंडपीठ ने सलेम में बाल कल्याण समिति के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बच्ची को स्थानीय देखभाल गृह में रखा गया था. कोर्ट ने कहा कि बच्चे को उसकी दत्तक मां सत्या को वापस सौंप दिया जाना चाहिए. उसे बच्ची को उसके जैविक माता-पिता से वीकेंड में मिलने देना होगा.
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि शिवकुमार और सरन्या नाबालिग को सत्या से नहीं छीन सकते. शिवकुमार और सरन्या ने साल 2012 में निःसंतान सत्या और रमेश दंपति को अपनी दूसरी बेटी को गोद दे दिया था. तब बच्ची लगभग 100 दिन की थी. रमेश की जून, 2019 में कैंसर से मौत हो गई और दोनों परिवारों के बीच विवाद पैदा हो गए, जिससे संबंधों में खटास आ गई. अंत में, सरन्या ने सत्या से अपनी बेटी वापस मांगी. मामला स्थानीय थाने में गया और बच्ची को सलेम के बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया.
इस बीच, उन दोनों ने हेबियस कॉर्पस याचिका दायर कर बच्चे को वापस लाने को कहा. उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश ने कहा कि बच्ची इस सब से परेशान हो गई है और सोशल मीडिया के माध्यम से मदद मांग रही है. दोनों पार्टी को जज के सामने पेश होने के लिए कहा गया था और उन्होंने पाया कि लड़की को दोनों मां से प्यार है और वह चाहती है कि दोनों के साथ रहे ताकि वह अपने भाई-बहनों के साथ भी रह सके.
सरन्या के अनुसार भी उसने बच्ची को तब गोद में दिया गया था, जब वह मुश्किल से साढ़े तीन महीने की थी. पीठ ने कहा कि पुलिस की ओर से सरन्या की शिकायत पर विचार करना, जांच करना, लड़की को देखभाल और संरक्षण की जरूरत के नाम पर उसे बाल कल्याण समिति में रखना उचित नहीं था. पुलिस को पक्षों को दीवानी न्यायालय के समक्ष मामले को निपटाने के लिए निर्देश देना चाहिए था.