'सुना बेशा' अनुष्ठान में 200 किलो सोने के आभूषणों से सजाई गई पुरी की भगवान जगन्नाथ
परंपरा के अनुसार देवी एवं देवताओं की रथ यात्रा की वापसी के बाद वाले दिन सोने के आभूषणों से भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ को सजाया जाता है।
परंपरा के अनुसार देवी एवं देवताओं की रथ यात्रा की वापसी के बाद वाले दिन सोने के आभूषणों से भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ को सजाया जाता है। 'सुना बेशा' आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि या आषाढ़ के महीने में 11वें शुक्ल पक्ष में आयोजित की जाती है। हालांकि, श्रद्धालुओं को महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष तीन राजसी लकड़ी के रथों पर विराजमान भगवान की स्वर्ण पोशाक को देखने का दुर्लभ अवसर नहीं मिला।
जिला प्रशासन ने मंदिर और उसके 'लायन गेट' के पास कुछ स्थानों को छोड़ पूरे शहर से बंदी और कर्फ्यू वापस ले लिया, जहां अनुष्ठान के लिए रथ खड़े थे। भीड़ से बचने के लिए एहतियातन ग्रांड रोड के दोनों ओर के सभी होटल, लॉज और अतिथि गृह बंद कर दिए गए थे। प्रशासन की अधिसूचना में कहा गया था, '21 जुलाई को सुना बेशा, 22 जुलाई को अधरपना के मद्देनजर कुछ क्षेत्रों में 24 जुलाई को सुबह छह बजे तक बंद और कर्फ्यू लागू रहेगा।'
सुना बेशा, जिसे 'राजधिराज बेशा' भी कहा जाता है, साल में कम से कम पांच बार होता है। यह 12वीं शताब्दी के मंदिर के अंदर चार बार तब आयोजित किया जाता है जब देवताओं को रत्न सिंहासन पर और एक बार रथों पर बैठाया जाता है। एक वरिष्ठ सेवक ने कहा, 'दशहरा, कार्तिका पूर्णिमा, पौष पूर्णिमा और दोला पूर्णिमा पर मंदिर के अंदर सुना बेशा का आयोजन किया जाता है। त्रिमूर्ति को लगभग 200 किलो सोने के आभूषणों से सजाया जाता है।'