Kapkot: जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय से बर्फ हो सकते हैं विलुप्त

देश की आधी आबादी मुसीबत में

Update: 2024-06-26 03:13 GMT

कपकोट: जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इस कारण दिल्ली जैसे महानगरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। टिहरी से भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय ने इस मामले पर चेताया है।

जलवायु परिवर्तन को लेकर वैज्ञानिकों की लाख चेतावनियों के बावजूद भी अब तक कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जा सका है। दुनिया भर के मौसम में जलवायु परिवर्तन के कारण अजीब बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इन सब का बुरा असर हिमालय पर भी पड़ा है। अब उत्तराखंड के टिहरी से भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय ने भी हिमालय को लेकर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में बर्फबारी में भारी कमी आई है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इसका असर पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे दिल्ली जैसे महानगरों पर भी पड़ेगा।

हिमालय से बर्फ गायब हो सकती है: टिहरी से भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय ने नई दिल्ली में एक प्रेस वार्ता में उन अध्ययनों का हवाला दिया जिनमें कहा गया है अगले दो से तीन दशकों में हिमालय से बर्फ गायब हो सकती है। भाजपा विधायक ने ये भी बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है और इससे भारतीय मानसून की समयावधि प्रभावित हो रहा है। 

 जीवाश्म ईंधन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे: भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय ने हिमालय की गंभीर स्थिति पर जागरूकता बढ़ाने के लिए ‘ग्लोबल हिमालयन ऑर्गनाइजेशन’ की शुरुआत की है। प्रेसवार्ता में नीति आयोग के पूर्व सलाहकार अविनाश मिश्रा द्वारा बताया गया कि हिमालय में पहचानी गई हिमनद झीलों में से 27 प्रतिशत से अधिक का दायरा 1984 के बाद से काफी बढ़ गया है। इनमें से 130 भारत में स्थित हैं। ये भी बताया गया कि जीवाश्म ईंधन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे हिमनद झीलों का विस्तार हो रहा है। इन झीलों के फटने से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।

जंगल में आग की घटनाएं भी खतरा: प्रेस वार्ता में ये भी बताया गया कि जंगल में आग की घटनाओं की वृद्धि से हिमालय और भी गर्म हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघलना हिमालय ही नहीं बल्कि दिल्ली जैसे शहरों को भी प्रभावित करेगा। यहां तक ​​कि राष्ट्रपति आवास भी सुरक्षित नहीं रहेगा। भाजपा विधायक ने कहा कि पहले पहाड़ों पर छह से सात फुट बर्फबारी होती थी। अब यह घटकर एक से दो फुट रह गई है। इसका एक कारण निचले इलाकों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और कंक्रीटीकरण है।

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