अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में इसरो का बजेगा डंका, सुबह 5.45 को 'अंतरिक्ष में सीसीटीवी' वाला सैटेलाइट होगा लांच, जाने खूबियां

Update: 2021-08-11 10:12 GMT

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन - इसरो (ISRO) 12 अगस्त 2021 को अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में दो नए काम पहली बार करने जा रहा है. पहला ये कि वो सुबह 5:45 बजे अपना कोई सैटेलाइट लॉन्च करने जा रहा है. इस सैटेलाइट का नाम है EOS-3 (Earth Observation Satellite-3/Geosynchronous Satellite Launch Vehicle F10). इससे पहले कभी भी इस समय पर कोई अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट नहीं छोड़ा गया. इसके पीछे कोई शुभ समय नहीं बल्कि वैज्ञानिक वजह है. पहली बार होने वाला दूसरा काम है- जियो ऑर्बिट में अर्थ ऑब्जरवेशन उपग्रह को तैनात करना. इन दो विशेष काम के अलावा यह सैटेलाइट किस तरह से उपयोग साबित होगी. आइए बताते हैं आपको...

इसरो के विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक इसरो ने अभी तक जियो ऑर्बिट यानी धरती से 36 हजार किलोमीटर दूर की स्थैतिक कक्षा में किसी रिमोट सेंसिंग यानी अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट को नहीं तैनात किया था. यह पहली बार होगा जब यह EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) इतनी दूरी पर भारत की तरफ अपनी आंखें तैनात करके निगरानी करेगा. आप यूं भी कह सकते हैं कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष में सीसीटीवी लगा रहा है. यह सैटेलाइट पूरे दिन भारत की तस्वीरें लेता रहेगा. लेकिन हर आधे घंटे में यह पूरे देश की तस्वीर ले पाएगा. जिसे जरूरत के हिसाब से इसरो के वैज्ञानिक उपयोग कर सकते हैं. 
अब सवाल ये उठता है कि इसरो ने इस सैटेलाइट को सुबह 5.45 बजे ही लॉन्च करने का फैसला क्यों किया? इसके पीछे की वजह ये है कि सुबह लॉन्चिंग से मौसम के साफ रहने का फायदा मिलता है. दूसरा सूरज की रोशनी में अंतरिक्ष में उड़ रहे अपने उपग्रह पर नजर रखने में आसानी होती है. क्योंकि उस समय सूरज धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा होगा. ऐसे में उसकी रोशनी सैटेलाइट के एक हिस्से पर हमेशा पड़ती रहेगी. जिसे इसरो वैज्ञानिक लगातार देख सकते हैं. 
EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) सैटेलाइट सुबह 5.45 बजे लॉन्च होने के बाद करीब पांच घंटे बाद धरती के जियो-ऑर्बिट में पहुंच जाएगा. करीब 10:30 बजे से यह देश की तस्वीरें लेना शुरु कर देगा. हालांकि अगले एक-दो दिनों तक इसके ऑर्बिट में इसकी जगह को सेट करने में लग सकते हैं. इस दौरान साइंटिस्ट कोर्स करेक्शन और इसमें लगे कैमरे के सेंसर्स को सेट करने में बिताएंगे. ताकि इसके 50 मीटर रेजोल्यूशन वाले ताकतवर कैमरे से सटीक तस्वीरें और डेटा हासिल किए जा सकें. 
इसरो का EOS-3 (Earth Observation Satellite-3) सैटेलाइट देश के जमीनी विकास और आपदा प्रबंधन के लिए मददगार साबित होगा. सैटेलाइट सीमा की सुरक्षा के लिए भी काम आएगा. पहली बार 4 मीटर व्यास वाले ओजाइव (Ogive) आकार का सैटेलाइट को जीएसएलवी की नाक में रखा गया है. यानी EOS-3 सैटेलाइट OPLF कैटेगरी में आता है. इसका मतलब ये है कि सैटेलाइट 4 मीटर व्यास के मेहराब जैसा दिखाई देगा. 
यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदाओं और मौसम संबंधी रियल टाइम जानकारी देगा. यह पूरे देश पर दिनभर में 4 से 5 बार तस्वीरें लेने में सक्षम हैं. इसके अलावा यह सैटेलाइट जलीय स्रोतों, फसलों, जंगलों में बदलाव आदि की भी पूरी जानकारी देगा. लॉन्चिंग के लिए GSLV-MK2 रॉकेट का उपयोग किया जाएगा. रॉकेट EOS-3 सैटेलाइट को 18 मिनट 39 सेकेंड में जियोस्टेशनरी ऑर्बिट के नजदीक पहुंचा देगा. उसके बाद सैटेलाइट अपने प्रोपेलेंट सिस्टम का उपयोग करके कक्षा में स्थापित होगा.जहां पर ये 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर धरती का चक्कर लगाता रहेगा. 
यह जीएसएलवी की 14वीं उड़ान है. इसके अलावा स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ यह 8वीं उड़ान है. सतीश धवन स्पेस सेंटर शार (SDSC SHAR) का 79वां लॉन्च व्हीकल मिशन है. इस रॉकेट को श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर पर मौजूद दूसरे लॉन्च पैड से छोड़ा जाएगा. इस लॉन्च की उलटी गिनती शुरु हो चुकी है. 
इस सैटेलाइट की खास बात हैं इसके कैमरे. इस सैटेलाइट में तीन कैमरे लगे हैं. पहला मल्टी स्पेक्ट्रल विजिबल एंड नीयर-इंफ्रारेड (6 बैंड्स), दूसरा हाइपर-स्पेक्ट्रल विजिबल एंड नीयर-इंफ्रारेड (158 बैंड्स) और तीसरा हाइपर-स्पेक्ट्रल शॉर्ट वेव-इंफ्रारेड (256 बैंड्स). पहले कैमरे का रेजोल्यूशन 42 मीटर, दूसरे का 318 मीटर और तीसरे का 191 मीटर. यानी इस आकृति की वस्तु इस कैमरे में आसानी से कैद हो जाएगी. 
विजिबल कैमरा यानी दिन में कान करने वाला कैमरा जो सामान्य तस्वीरें खीचेंगा. इसके अलावा इसमें इंफ्रारेड कैमरा भी लगा है. जो रात में तस्वीरें लेगा. यानी भारत की सीमा पर किसी तरह की गतिविधि हुई तो EOS-3 सैटेलाइट के कैमरों की नजर से बचेगी नहीं. ये किसी भी मौसम में तस्वीरें लेने के लिए सक्षम है. इसके अलावा इस सैटेलाइट की मदद से आपदा प्रबंधन, अचानक हुई कोई घटना की निगरानी की जा सकती है. साथ ही साथ कृषि, जंगल, मिनरेलॉजी, आपदा से पहले सूचना देना, क्लाउड प्रॉपर्टीज, बर्फ और ग्लेशियर समेत समुद्र की निगरानी करना भी इस सैटेलाइट का काम है. 
साल 1979 से लेकर अब तक 37 अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट्स छोड़े गए. इनमें से दो लॉन्च के समय ही फेल हो गए थे. इसरो पहले इसकी लॉन्चिंग 5 मार्च को करने वाला था पर कुछ तकनीकी कारणों से इस टाल दिया गया. फिर खबर आई कि ये सैटेलाइट 28 मार्च को लॉन्च किया जा सकता है लेकिन इसे फिर टालकर 16 अप्रैल कर दिया गया है. लेकिन उस समय भी लॉन्चिंग नहीं हो पाई. 
2268 किलोग्राम वजनी EOS-3 सैटेलाइट अब तक का भारत का सबसे भारी अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट होगा. इसके पहले भारत ने 600 से 800 किलोग्राम के सैटेलाइट लॉन्च किए थे. ये सैटेलाइट्स धरती के चारों तरफ 600 किलोमीटर की ऊंचाई पर पोल से पोल तक का चक्कर 90 मिनट में एक बार लगाते थे. 
EOS-3 सैटेलाइट के बाद ISRO दूसरा जियो-इमेजरी सैटेलाइट EOS-2 भी लॉन्च करेगा, लेकिन उसकी तारीख अभी तय नहीं है. यह सैटेलाइट देश की सुरक्षा के लिए खास तरह के उपकरणों से लैस होगा. जिसमें थर्मल इमेजिंग कैमरा (Thermal Imaging Camera) का भी जिक्र किया जा रहा है. 
अगर यह कैमरा इस सैटेलाइट में लगा होगा तो रात के अंधेरे में गर्मी के अनुपात से आकृतियों के पता लगाकर ये जानकारी हासिल की जा सकेगी कि दिखने वाली आकृति जानवर है या इंसान. इससे देश की सीमाएं ज्यादा सुरक्षित होंगी. साथ ही देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी फायेदमंद होगा.
इसके पहले भेजे गए अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट्स Cartosat और RISAT सीरीज के सैटेलाइट्स ने सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट अटैक और चीन के साथ पिछले साल हुए विवाद के समय सीमा पर भरपूर नजर रखी थी. जिससे दुश्मन देशों की हालत खराब हो रही थी. 

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