अफगानिस्‍तान में फंसे भारतीयों को निकालने की कोशिश में जुटा भारत

यहां भारत की फिक्र भी बड़ी है क्योंकि अभी भी 1600 से ज्यादा भारतीय अफगानिस्तान में फंसे हैं और उनके रेस्क्यू के लिए दिल्ली में मिशन काबुल की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है. लेकिन ये कितना कठिन मिशन है, ये काबुल से लौटे भारतीय दल से समझिए.

Update: 2021-08-18 17:34 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :-  भारत के पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान की चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं. क्योंकि जिस तालिबान ने कल मीडिया के सामने आकर ये भरोसा दिलाया कि ये बदला हुआ तालिबान है, उदार तालिबान है. जिसने सारे गिले शिकवे भूला दिए हैं. जिसके राज में महिलाओं को भी शरिया के मुताबिक आजादी रहेगी. लेकिन अफगानिस्तान में उसी तालिबानी शासन से रोती-बिलखती महिलाओं और आम नागरिकों पर बर्बरता की तस्वीरें आ रही हैं. महिलाएं अमेरिकी फोर्स से मदद की गुहार लगा रही हैं.

इस बाबत आज 21 देशों ने अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों को लेकर चिंता जताई. अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा समेत 21 देशों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि हम अफगानी महिलाओं और लड़कियों, उनके शिक्षा, काम और आवाजाही की स्वतंत्रता के अधिकारों के बारे में बहुत चिंतित हैं. इसलिए अफगानिस्तान में सत्ता और अधिकार के पदों पर बैठे लोगों से उनकी सुरक्षा की गारंटी देने का आह्वान करते हैं.
अफगानिस्‍तान से निकलने की मची है होड़
दरअसल, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से वहां लोगों में डर बढ़ता जा रहा है. आम नागरिकों में देश से निकलने की होड़ है. काबुल एयरपोर्ट पर भी लोग यहां से निकलने की आस में भीड़ लगाए बैठे हैं और तालिबानी लगातार गोलीबारी कर इन्हें काबू में करने की कोशिश में हैं. यहां भारत की फिक्र भी बड़ी है क्योंकि अभी भी 1600 से ज्यादा भारतीय अफगानिस्तान में फंसे हैं और उनके रेस्क्यू के लिए दिल्ली में मिशन काबुल की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है. लेकिन ये कितना कठिन मिशन है, ये काबुल से लौटे भारतीय दल से समझिए.
काबुल एयरपोर्ट की ये तस्वीरें जब-जब आंखों के सामने आएंगी, तब-तब कलेजा कांप जाएगा. इतिहास याद रखेगा कि जब 15 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी तालिबान का कब्जा हो रहा था, तब काबुल एयरपोर्ट पर किस तरह से कोहराम मचा था. रनवे पर जान बचाने की होड़ लगी थी. वतन छोड़ने के लिए मौत की दौड़ लगी थी.
काबुल में बदहवास लोग घर-बार छोड़ रहे थे. अपने भी पीछे छूटे जा रहे थे, कोई विमान से लटक रहा था तो कोई विमान से गिरकर दम तोड़ रहा था और ये तस्वीरें देखकर पूरे हिंदुस्तान का दिल बैठा जा रहा था. क्योंकि जिस मुल्क से ये तस्वीरें आ रही थीं वहां सैकड़ों हिंदुस्तानी फंसे हुए हैं. जिन्हें काबुल से बाहर निकालना एवरेस्ट फतह करे से कम नहीं था. लेकिन भारत ने मिशन इंपॉसिबल को भी पॉसिबल बना दिया.
रोंगटे खड़ी कर देगी भारतीयों के मिशन एयरलिफ्ट की कहानी
ऐसे करीब डेढ़ सौ लोगों को लेकर भारतीय वायुसेना के विमान ग्लोबमास्टर ने काबुल के उसी रनवे से उड़ान भरी. जहां से एक दिन पहले ऐसी सांसें थाम लेने वाली तस्वीर आई थी. कोई बास्केट में सात महीने की बच्ची को छोड़कर भाग गया था, तो कोई अमेरिकी विमान के डैने पर चढ़कर देश की सरहद पार कर लेने के प्रयास में आसमान से टपक पड़ा था. जिस एयरपोर्ट पर एक दिन बाद भी अफगान महिलाएं अमेरिकी सैनिकों के सामने हेल्प-हेल्प की गुहार लगा रही हैं. ऐसे हालात में भारत के मिशन एयरलिफ्ट की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है.
ताबिलान के कब्जे में जा चुके अफगानिस्तान से लौटना आसान नहीं था. अभी भी वहां के एयरपोर्ट पर रह रहकर गोलियां गूज रही हैं. हिंसा की खबरें आ रही हैं और वहां से लौटे भारतीय पत्रकारों ने भी इस सफर की कहानी साझा की है. अफगानिस्तान से 150 भारतीयों को लाने वाले आईटीबीपी के कमांडेंट रविकांत गौतम ने जो वहां के 56 घंटों के संघर्ष की कहानी सुनाई, वो दहलाने वाली है. रविकांत ने एक अखबार को बताया कि भारतीय दूतावास में 15 अगस्त की सुबह 9 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाया ही गया था कि बाहर विस्फोट की आवाजें गूंजने लगीं. तालिबानी हमसे सिर्फ 50 मीटर दूर थे. हमें पता था कि वे काबुल की तरफ बढ़ रहे हैं. तब हमारे दो विमान काबुल एयरबेस पर थे और हमने 46 लोगों के पहले दल को दूतावास से सुरक्षित एयरपोर्ट तक पहुंचा दिया, लेकिन दूसरे दल के लिए हमें भारतीयों को शहर के अलग-अलग जगहों से लिफ्ट करना पड़ा.
कमांडेंट रविकांत गौतम ने बताया कि दूसरे दल में मैं, राजदूत, 99 कमांडो तीन महिलाएं, दूतावास स्टाफ शामिल थे. हम 15 अगस्त की शाम ही एयरपोर्ट के लिए निकले लेकिन पहुंच नहीं पाए. एक चेक पॉइंट पर तो हथियारबंद ग्रुप से झड़प हो गई. उन्होंने हवाई फायर किया. रॉकेट लॉन्चर निकाल लिए. हमने भी हथियार तान लिए. लगा आज या तो यहां शहीद होंगे या फिर एयरबेस पर पहुंचेंगे. लेकिन कुछ देर बाद हालात संभले.
भारतीय दूतावास पर तालिबान की थी कड़ी नजर
दरअसल, दूतावास से निकलते ही भारतीय दल का सड़कों पर इस तरह के हथियारबंद तालिबानियों से सामना हुआ, जिन्होंने पूरी सड़क पर कब्जा जमा रखा था. जगह-जगह चेकपोस्ट बना रखे थे. रविकांत गौतम के मुताबिक, 16 अगस्त की शाम तक चार बार निकलने की कोशिश की, लेकिन हर जगह हथियारबंद तालिबानी थे. दूतावास से एयरपोर्ट 15 किमी दूर ही है. अब सोच लिया, जो होगा, देखा जाएगा. रात 10.30 बजे फिर एयरबेस के लिए रवाना हुए. हथियारबंद लोगों को चकमा देते हुए रात 3.30 बजे एयरबेस पहुंचे. तब राहत की सांस ली.
17 अगस्त की सुबह 5.30 बजे भारतीय वायुसेना के C-17 विमान ने काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरी. तो सभी की जान में जान आई. क्योंकि इससे पहले 56 घंटों के संघर्ष के दौरान सभी लोग ना तो सो पाए और ना ही किसी ने खाना खाया. जानकारी के मुताबिक भारतीय दूतावास पर तालिबान की कड़ी नजर थी. इसके लिए अमेरिका के साथ भारत की रणनीति बनी. तब भारतीयों की वापसी हुई.
भारतीय दूतावास पर कब्‍जा करना चाहता था तालिबान
न्यूज एजेंसियों के मुताबिक, तालिबान भारतीय दूतावास पर कब्जा करना चाहता था.
कर्मचारियों का सामान तक छीन लिया था. एयरपोर्ट का रास्ता बंद कर दिया गया था.
ऐसे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन
और NSA अजीत डोभाल ने अमेरिकी समकक्ष जैक सुलिवान से बात की.
नतीजा ये निकला कि काबुल एयरपोर्ट पर अमेरिकी सुरक्षा में भारतीय विमान ने उड़ान भरी.
यानी बेहद मुश्किल भरे 56 घंटों के बाद करीब डेढ़ सौ भारतीयों को लेकर भारतीय वायुसेना का विमान मंगलवार को हिंदुस्तान पहुंचा और भारत अब इसी हौसले को आगे बढ़ा रहा है. अफगानिस्तान में अभी भी फंसे भारतीयों की वापसी का खाका खींचा जा रहा है, मिशन जारी है.
अफगानिस्तान में तालिबान राज के बाद से अभी तक करीब दो सौ भारतीय स्वदेश लौट चुके हैं लेकिन ऐसे भारतीयों की संख्या 1600 से ज्यादा है जिन्होंने अफगानिस्तान से लौटने के लिए वीजा का आवेदन दिया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के करीब 500 अधिकारी और सिक्योरिटी से जुड़े लोग अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं. इनमें करीब 300 लोग देहरादून के रहने वाले हैं. ये पूर्व सैनिक हैं जो वहां के यूरोपियन, ब्रिटिश एंबेसी सहित दूसरी जगहों पर सुरक्षा में तैनात थे.


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