नई दिल्ली, (आईएएनएस)| भारत ने सोमवार को 27वें पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी27) के दौरान जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को अपनी दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर विशेष ध्यान देना है। इसमें आगे कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन से अन्य स्रोतों में बदलाव न्यायसंगत, सरल, स्थायी और सर्व-समावेशी तरीके से किया जाएगा। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव, जो भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, ने दीर्घकालिक कम-उत्सर्जन विकास रणनीति का शुभारंभ किया। कॉप 27 6 से 18 नवंबर तक मिस्र के शर्म-अल-शेख में आयोजित किया गया है। यह आगे जैव ईंधन के बढ़ते उपयोग, विशेष रूप से पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण पर केंद्रित है। उत्सर्जन रणनीति में परिवहन क्षेत्र के निम्न कार्बन विकास को चलाने के लिए हरित हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग को अधिकतम करने की भी परिकल्पना की गई है।
उत्सर्जन रणनीति में कहा गया, भारत 2025 तक इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को अधिकतम करने, 20 प्रतिशत तक इथेनॉल का सम्मिश्रण करने एवं यात्री और माल ढुलाई के लिए सार्वजनिक परिवहन के साधनों में एक सशक्त बदलाव लाने की आकांक्षा रखता है। हालांकि शहरीकरण की प्रक्रिया हमारे वर्तमान अपेक्षाकृत कम शहरी आधार के कारण जारी रहेगी। भविष्य में स्थायी और जलवायु सहनीय शहरी विकास निम्न द्वारा संचालित होंगे- स्मार्ट सिटी पहल, ऊर्जा और संसाधन दक्षता में वृद्धि तथा अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के लिए शहरों की एकीकृत योजना, प्रभावी ग्रीन बिल्डिंग कोड और अभिनव ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन में तेजी से विकास।
भारत की कम उत्सर्जन रणनीति परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (पीएटी) योजना, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, सभी प्रासंगिक प्रक्रियाओं और गतिविधियों में विद्युतीकरण के उच्च स्तर, भौतिक दक्षता को बढ़ाने और चक्रीय अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए पुनर्चक्रण एवं स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम और अन्य जैसे कठिन क्षेत्रों में अन्य विकल्पों की खोज आदि के माध्यम से ऊर्जा दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
रणनीति आगे उल्लिखित है- भारत का उच्च आर्थिक विकास के साथ-साथ पिछले तीन दशकों में वन और वृक्षों के आवरण को बढ़ाने का एक मजबूत रिकॉर्ड रहा है। भारत में जंगल में आग की घटनाएं वैश्विक स्तर से काफी नीचे है, जबकि देश में वन और वृक्षों का आवरण 2016 में कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन का 15 प्रतिशत अवशोषित करने वाला शुद्ध सिंक मौजूद है। भारत 2030 तक वन वृक्षों के आवरण द्वारा 2.5 से 3 अरब टन अतिरिक्त कार्बन अवशोषण की अपनी एनडीसी प्रतिबद्धता को पूरा करने के मार्ग पर है।
सबसे महत्वपूर्ण रूप से विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त का प्रावधान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और इसे यूएनएफसीसीसी के सिद्धांतों के अनुसार मुख्य रूप से सार्वजनिक स्रोतों से अनुदान और रियायती ऋण के रूप में काफी बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि पैमाने, दायरे और गति को सुनिश्चित किया जा सके।