नई दिल्ली: भारत ने अमेरिका (America) से 30 प्रीडेटर ड्रोन (Predator drones) खरीदने की योजना को होल्ड पर रखा दिया है. एचटी की खबर मुताबिक, भारत ने अपने इस निर्णय के बारे में पेंटागन को बता दिया है. प्रीडेटर ड्रोन को खरीदने की योजना इसलिए भी ठंडे बस्ते में डाल दी गई है क्योंकि भारत के पास इस तरह के ड्रोन को बनाने की क्षमता है. नरेंद्र मोदी की सरकार ने हाल ही में 9 फरवरी को ड्रोन के आयात, मानव रहित वाहनों यानी यूएवी के अधिग्रहण पर पाबंदी लगा दी थी. हालांकि इस प्रतिबंध में सुरक्षा उद्देश्यों के लिए मानव रहित हवाई वाहनों के अधिग्रहण को छूट दी गई थी. फिर भी, इन्हें अधिग्रहण के लिए विशिष्ट मंजूरी की आवश्यकता है.
रक्षा मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि फिलहाल इस डील को रद्द ही समझा जाए. 30 प्रीडेटर ड्रोन में से तीनों सेनाओं को 10-10 ड्रोन मिलने वाले थे. बता दें कि तीनों सेनाओं के लिए खरीदे जाने वाले इन ड्रोन पर तीन अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 22,000 करोड़ रुपए ) का खर्च आने वाला था. हालांकि भारतीय नौसेना पहले ही दो सर्विलांस प्रीडेटर ड्रोन अमेरिकी कंपनी से लीज पर ले चुकी है. इसका इस्तेमाल चीन और पाकिस्तान बॉर्डर पर दुश्मन के नापाक हरकतों के टोह लेने के लिए किया जा रहा है.
प्रीडेटर ड्रोन को खरीदने की योजना इसलिए भी होल्ड पर रख दिया गया है क्योंकि भारत के पास इस तरह के ड्रोन को बनाने की क्षमता है. वर्तमान में भारत इजरायल के हेरॉन ड्रोन को अपग्रेड कर रहा है. प्रीडेटर टाइप के ड्रोन को हथियारों से लैस किया जा सकता है. इसमें मिसाइलों और लेजर-निर्देशित बमों को निशाने पर लगाया जा सकता है. सशस्त्र पेलोड के साथ एक प्रीडेटर प्लेटफॉर्म की कीमत लगभग 10 करोड़ डॉलर है, लेकिन इसे सुसज्जित करने में 27 घंटे का समय लगता है. भारतीय नौसेना इस तरह के ड्रोन का इस्तेमाल अदन की खाड़ी से इंडोनेशिया में सुंडा जलडमरूमध्य तक समुद्री निगरानी के लिए करती है.
बता दें कि भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा मार्च तक मध्यम ऊंचाई वाले (MALE) ड्रोन का अनावरण करने की उम्मीद है. देश के राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकार निगरानी और लक्ष्यीकरण क्षमता के लिए भविष्य में उच्च ऊंचाई वाले छद्म उपग्रह (HAPS) तकनीक पर विचार कर रहे हैं. भारत पहले ही झुंड ड्रोन (swarm drones) के निर्माण के लिए अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुका है जैसा कि इस साल बीटिंग रिट्रीट समारोह में दिखाया गया था. डीआरडीओ के अलावा, निजी भारतीय कंपनियां भी ड्रोन के विकास में शामिल हैं जो इस तरह के प्रीडेटर ड्रोन बना सकती हैं.